ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिनमें शादी, तलाक, विरासत और गुजारा भत्ता पर लिंग और धर्म-तटस्थ विशेष कानून बनाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि कानूनों को बनाया जाना विशिष्ट रूप से विधायिका के क्षेत्राधिकार के तहत आता है। हम संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल की इस दलील पर संज्ञान लिया कि यह मुद्दा विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसलिए याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की जा सकती। वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं समेत इससे संबंधित अन्य याचिकाओं का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि यह मुद्दा विशेष रूप से विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। कानून बनाने के लिए संसद को आदेश जारी नहीं किया जा सकता।
– हम संसद को कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते
अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र को तलाक, गोद लेना, संरक्षण, उत्तराधिकार, विरासत, भरण-पोषण, विवाह की उम्र और गुजारे भत्ते के लिए लैंगिक और धार्मिक रूप से तटस्थ एक समान विशेष कानून बनाने के संबंध में केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए पांच अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह उम्र तय करने से जुड़ा फैसला सुनाने का मतलब होगा संसद को कानून बनाने का निर्देश देना। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिंह और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा था कि वह इस मुद्दे पर विचार नहीं करेगी, क्योंकि मामला विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यह कानून बनाने जैसा होगा। यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। एक प्रावधान को खत्म करने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां महिलाओं की शादी के लिए कोई न्यूनतम आयु नहीं होगी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि अगर अदालत इस दलील पर विचार करेगी तो यह संसद को न्यूनतम आयु तय करने का निर्देश देने जैसा होगा।