ब्लिट्ज ब्यूरो
अयोध्या। अयोध्या में 1990 के 2 नवंबर को क्या हुआ था? सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने घेरा बनाकर रोक दिया। वे जहां थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए। रामधुनी में रम गए।
फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए। आंसू गैस के गोले दागे गए। लाठियां बरसाई गईं लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए। अचानक बिना चेतावनी के उन पर फायरिंग शुरू कर दी गई। गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया।
3 नवंबर 1990 को अखबारों में छपी रिपोर्ट में लिखा गया-
“राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियां मारीं।”
– वो एक रामभक्त था खून से रंग गया तुलसी चौराहा
घायलों की मदद तक नहीं करने दी
3 नवंबर 1990 को समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट से लिए गए कुछ और विवरण पर गौर करिए- पुलिस और सुरक्षा बल न खुद घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे।
फायरिंग का लिखित आदेश नहीं था। फायरिंग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया।
राम भक्तों के सिर और सीने में मारी गई गोली
किसी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोली लगी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया। दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर गोली मारी गई।
राम अचल गुप्ता की अखंड रामधुन बंद नहीं हो रही थी, उन्हें पीछे से गोली मारी गई। रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिंग की गई।
कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। रामबाग के ऊपर से एक साधु आंसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे।
फायरिंग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव बोरियों में भरकर ले जाए गए।