सिंधु झा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) की शुरुआत से लेकर अब तक 23.2 लाख करोड़ रुपये की राशि के 40.82 करोड़ से भी अधिक ऋण स्वीकृत किए गए हैं। इससे जमीनी स्तर पर बड़ी संख्या में रोजगार अवसर सृजित करने में मदद मिली है और यह भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ गेम चेंजर भी साबित हुई है। यह जानकारी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दी है। पीएमएमवाई की 8वीं वर्षगांठ के अवसर पर उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में शुरू की गई इस योजना से सूक्ष्म उद्यमों तक ऋणों की आसान एवं परेशानी मुक्त पहुंच संभव हो पाई है और इससे बड़ी संख्या में युवा उद्यमियों को अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद मिली है।’
आठ साल पहले शुरुआत : प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) आठ साल पहले पीएम मोदी द्वारा आय सृजित करने वाली गतिविधियों के लिए गैर-कॉरपोरेट, गैर-कृषि लघु और सूक्ष्म उद्यमियों को 10 लाख रुपये तक के गिरवी-मुक्त सूक्ष्म ऋण आसानी से मुहैया कराने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। पीएमएमवाई के तहत ऋण दरअसल सदस्य ऋणदाता संस्थाओं (एमएलआई) यथा बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) और अन्य वित्तीय मध्यस्थों द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
– बड़ी संख्या में रोजगार सृजित करने में मदद मिली
68 प्रतिशत खाते महिला उद्यमियों के वित्त मंत्री ने कहा कि इस योजना के तहत लगभग 68 प्रतिशत खाते महिला उद्यमियों के हैं और 51फीसद खाते एससी/एसटी और ओबीसी श्रेणियों के उद्यमियों के हैं। यह दर्शाता है कि देश के नवोदित उद्यमियों को आसानी से ऋण की उपलब्धता से नवाचार और प्रति व्यक्ति आय में सतत वृद्धि हुई है।
‘मेक इन इंडिया’ में व्यापक योगदान: एमएसएमई के माध्यम से स्वदेश में विकास पर वित्त मंत्री ने कहा, एमएसएमई के विकास ने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में व्यापक योगदान दिया है क्योंकि मजबूत घरेलू एमएसएमई की बदौलत घरेलू बाजारों के साथ-साथ निर्यात के लिए भी स्वदेश में उत्पादन काफी अधिक बढ़ गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि पीएमएमवाई का उद्देश्य देश में सूक्ष्म उद्यमों तक गिरवी-मुक्त ऋणों की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करना है।
संस्थागत ॠण ढांचा : इसने समाज के ऋणों से वंचित और बेहद सीमित ऋण पाने वाले वर्गों को संस्थागत ऋण के ढांचे के भीतर ला दिया है। ‘मुद्रा’ को बढ़ावा देने की सरकारी नीति से लाखों एमएसएमई अब औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गए हैं और इससे उन्हें अनाप-शनाप ब्याज दरों पर ऋण देने वाले साहूकारों के चंगुल से बाहर निकलने में मदद मिली है।