मनोज जैन
“कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”
दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित स्वर्गीय बिंदेश्वर जी पाठक के व्यक्त्वि और कृतित्व पर सटीक बैठती हैं। उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल संस्था के माध्यम से मैला ढोने की प्रथा और खुले में शौच की समस्या खत्म करने का ऐसा असंभव कार्य संभव कर दिखाया कि जिसने पूरी दुनिया को एक नई राह दिखाई।
यकीन नहीं हो रहा कि पाठक जी अब हमारे बीच नहीं हैं। अभी पिछले दिनों, ब्लिट्ज इंडिया के लंदन में आयोजित लोकार्पण समारोह में बिंदेश्वर जी पाठक से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। वे इतने सज्जन व्यक्ति थे कि कोई भी देखते ही देखते उनका कायल हो जाता था। सहज, शालीन और सौम्य व्यक्तित्व के धनी बिंदेश्वर पाठक जी से मिलकर मन भाव-विभोर हो गया। इतनी उम्र में वे भी इतने सक्रिय थे कि देखकर अचंभा हुआ।
बिंदेश्वर जी पाठक से काफी देर बातचीत चलती रही। ज़रा भी नहीं लगा कि मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ बैठा हूंँ, जो अपने आप में एक पूरी संस्था हैं औैर जिसने देश से मेला ढोने और खुले में शौच की कुप्रथा को खत्म करने में अहम योगदान दिया है। उनके निधन की खबर सुनकर निस्तब्ध रह गया। देश को मैला ढोने की प्रथा से निजात दिलाने में अहम योगदान देने वाले पाठक जी आज़ादी की 76वीं वर्षगांठ पर हम सबको अलविदा कहकर प्रभु चरणों में लीन हो गए।
पटना विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र में एमए, पीएचडी और डीलिट श्री बिंदेश्वर पाठक, समाज को नई दिशा देने वाले विरले इन्सानों में थे। दो अप्रैल,
1943 को बिहार के पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे बिंदेश्वर पाठक ने अपनी पीएचडी के लिए जब ‘भंगी मुक्ति और स्वच्छता के लिए सर्व सुलभ संसाधन’ जैसे विषय को चुना, तो सभी हैरान रह गए। उन्होंने इस विषय पर गहन शोध भी किया। इसके बाद 1968 में श्री बिंदेश्वर पाठक भंगी मुक्ति कार्यक्रम से जुड़े। उन्होंने यह सामाजिक बुराई और इससे जुड़ी पीड़ा अनुभव की।
वाल्मीकि समाज को मैला ढोने के अमानवीय कार्य से मुक्ति दिलाने की शुरुआत उन्होंने बिहार के बेतिया की वाल्मीकि बस्ती में सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने से की। उनका मूलमंत्र था ‘स्वच्छ समाज, स्वच्छ मानस।’ उनकी इसी सोच और मैला ढोने की प्रथा समाप्त करने के दृढ़ निश्चय ने उन्हें सुलभ इंटरनेशनल जैसी संस्था खड़ी करने की प्रेरणा दी। पाठक जी ने 5 मार्च, 1970 को,भारत के इतिहास में एक अनोखे आंदोलन की शुरुआत करके इतिहास रच दिया और सारी दुनिया को नई राह दिखलाई।
सुलभ इंटरनेशनल एक सामाजिक संगठन है। सुलभ इंटरनेशनल में पाठक जी ने दो गड्ढों वाला फ्लश टॉयलेट विकसित किया। उन्होंने डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया। इसे कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाले सामान से ही बनाया जा सकता था। फिर उन्होंने देशभर में सुलभ शौचालय बनवाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते उन्होंने पूरे देश में सुलभ शौचालयों की एक श्रृंखला खड़ी कर दी। मिले आंकड़ों के अनुसार, बिंदेश्वर पाठक जी ने अपने जीवन काल में 16 लाख घरेलू शौचालय और 5.4 करोड़ सरकारी शौचालय बनवाए।
सुलभ इंटरनेशनल आज देश का सबसे बड़ा गैर-लाभकारी संगठन है। सुलभ इंटरनेशनल संगठन मुख्य रूप से मानवाधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन और समाज सुधार आदि क्षेत्रों में कार्य करता है। सुलभ इंटरनेशनल में 60
हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं। बिंदेश्वर पाठक जी के प्रयासों से राजस्थान के अलवर और टोंक शहरों में सैकड़ों परिवारों को मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्ति मिली। तदोपरांत, उन परिवारों को अनेक प्रकार की खाद्य सामग्री बनाने का और सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण भी दिलाया गया।
विश्व के अनेक देशों ने श्री बिंदेश्वर पाठक की स्वच्छता तकनीक को सराहा और अपनाया। श्री पाठक ने सुलभ शौचालयों के द्वारा, दुर्गंध रहित बायोगैस के प्रयोग की खोज की। इस सुलभ तकनीकि का प्रयोग भारत समेत अनेक विकाशसील देशों में बहुतायत से होता है। बिंदेश्वर पाठक जी के सामाजिक
कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1991 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मनित किया था। उन्हें 2016 में उसे प्रतिष्ठित गांधी शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री बिंदेश्वर पाठक के निधन को देश के लिए बड़ी क्षति बताया है। मोदी जी ने कहा कि श्री पाठक स्वप्नदर्शी व्यक्ति थे। उन्होंने समाज की प्रगति और हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त करने के लिए बहुत काम किया। बिंदश्वर जी ने स्वच्छ भारत बनाने को अपना लक्ष्य बना लिया था। उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन को काफी सहयोग दिया। उनसे कई बार बातचीत हुई और हर बातचीत में सफ़ाई को लेकर उनका उत्साह दिखता था। उनका काम लोगों को प्रेरित करता रहेगा।
बेशक आज बिंदेश्वर पाठक जी सशरीर हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन मानवता के हित में किए गए अपने कार्यों की बदौलत वे सदैव जीवित रहेंगे। बिंदेश्वर पाठक जी जैसे व्यक्ति कभी मरते नहीं। उनका जीवन और दर्शन हमेशा मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा।
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