ब्लिट्ज ब्यूरो
इस्लामाबाद। चीन और तुर्की के आगे घुटने टेकते हुए पाकिस्तान ने डेमोक्रेसी सम्मेलन से किनारा कर लिया। पाकिस्तान के कदम पीछे खींचने पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि मानवाधिकार पर विश्व भर की आलोचनाओं का लगातार केंद्र बनने वाले पाकिस्तान में विश्व समुदाय का सामना कर पाने की हिम्मत नहीं थी।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं, मूल्यों, मानकों, मान्यताओं पर पाकिस्तान से विश्व को कभी कोई अपेक्षा ही नहीं करनी चाहिए क्योंकि अलग देश बनने के बाद पाकिस्तान में लोकतंत्र के नाम पर मजाक बना है, लोकतांत्रिक व्यवस्था कभी नहीं बन पाई। डेमोक्रेटिक मीट के लिए अमेरिका ने चीन और तुर्की को आमंत्रित नहीं किया। आज के दौर में ये दोनों देश पाकिस्तान के घोषित आका (गॉडफादर) माने जाते हैं। संभव है गाॅडफादरों ने पाकिस्तान को धमका कर डेमोक्रेटिक मीट में शामिल न होने दिया हो। इन दोनों को हमारा पड़ोसी किसी कीमत पर नाराज नहीं कर सकता, इसलिए सम्मेलन से किनारा कर लिया। भलमनसाहत देखिये अमेरिका की कि उसने अपने पुराने पिट्ठू को याद रखा और डेमोक्रेटिक सम्मेलन के लिए निमंत्रण भेजा लेकिन शातिर पाकिस्तान ने अमेरिका के प्रति नाफरमानी करते हुए इसमें शामिल होने से इन्कार कर दिया। पाकिस्तान ने पिछले साल इमरान खान के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी अमेरिका से न्योता मिलने के बावजूद लोकतंत्र शिखर सम्मेलन से खुद को अलग कर लिया था। तब महासम्मेलन में भाग लेने वाले 100 से ज्यादा देशों में ताइवान भी शामिल था। इससे चीन भड़क गया था और इमरान ने ड्रैगन को खुश करने के लिए अमेरिका से दूरी बना ली थी। इस साल भी चीन और तुर्की के गुस्से के डर से पाकिस्तान ने इस अमेरिकी सम्मेलन से किनारा कर बाइडन से सीधे पंगा ले लिया है। अमेरिका ने फिर ताइवान को सम्मेलन के लिए बुला लिया। स्वाभाविक रूप से चीन को फिर भड़कना था और पाकिस्तान को उसकी अपेक्षा के सामने नतमस्तक होना ही था। सम्मेलन शुरू होने के ठीक पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा है कि हम अमेरिका के साथ दोस्ती को महत्व देते हैं। हम इसे और मजबूत करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। उसने कहा कि साल पिछले साल पाकिस्तान लोकतंत्र सम्मेलन का हिस्सा नहीं था और इस बार भी नहीं होगा। पाकिस्तान उन 100 से ज्यादा देशों में शामिल है जिन्हें बाइडन ने तीन दिन तक चले लोकतंत्र शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था। माना जा रहा है कि पाक के सम्मेलन से पीछे हटने की एक बड़ी वजह पाकिस्तान की कंगाली भी है। पाकिस्तान चीन के कर्ज तले बुरी तरह से दबा हुआ है। पाकिस्तान को चीन के 30 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज लौटाना है। पाकिस्तान के सामने एक तरफ अमेरिका था तो दूसरी ओर चीन और तुर्की थे। इसे देखते हुए पाकिस्तान ने चीन और तुर्की का साथ देने में भलाई समझी। इस बीच अब आईएमएफ पाकिस्तान को कर्ज देगा या नहीं यह बहुत कुछ अमेरिका के रुख पर निर्भर करता है जिसका इस वैश्विक संस्था पर दबदबा है। पाकिस्तान जब पिछले साल इस अमेरिकी शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ था, तब चीन ने इसका स्वागत किया था।