नई दिल्ली। पिछले सत्र की तुलना में अमेरिका ने इस बार व्यापक प्रतिनिधित्व दिखाने के लिए कोस्टा रिका, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया और जाम्बिया को सह-मेजबानी करने के लिए आमंत्रित किया था। लोकतंत्र, उपनिवेशवाद, कूटनीति आदि मुद्दों पर अमेरिका की नीति व नीयत पर जब तब उंगली उठती रही है लेकिन तमाम घरेलू व विदेशी विरोध के बावजूद अमेरिका में राजनीति पर अपने प्रोजेक्शन को लेकर एक नया दौर शुरू हुआ है। कुछ आलोचक फिर सक्रिय हो गए हैं। एक विद्वान का तो यहां तक कमेंट आ गया कि तथाकथित ‘लोकतंत्र शिखर सम्मेलन’ पुरानी शराब को नई बोतल में डालने वाली कार्रवाई है। उसके अनुसार अमेरिका लोकतंत्र के नाम पर समूह राजनीति और टकराव में संलग्न है, नई उथल-पुथल पैदा करता है। दुनिया को अमेरिका के इस आयोजन की जरा भी जरूरत नहीं थी।। आलोचकों का कहना है कि पहले अमेरिका स्वयं अपना आचरण सुधारे, कार्यशैली को न्यायसंगत करे।
अमेरिका हमेशा अपनी आलोचना को अनसुना करता है। वह लोकतंत्र को अपनी सेवा के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करता है। अमेरिकी आधिपत्य को बनाए रखने के लिए वह तथाकथित असंतुष्ट देशों को दबाता है।
एक अमेरिकी शोध संस्थान द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर के 43 फीसदी लोगों का मानना है कि उनके लोकतंत्र को अमेरिका से खतरा है। अमेरिका को लोकतंत्र को परिभाषित करने और न्याय करने के अधिकार पर एकाधिकार करने का कोई अधिकार नहीं है।