वर्तमान में चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंतरिम बजट 2024-25 में लोकलुभावन घोषणाओं के स्थान पर चहुंमुखी विकास को प्राथमिकता दी है। अर्थव्यवस्था को 7 प्रतिशत की गति से वृद्धि के लिए जहां एक ओर महिलाओं, ग्रामीण क्षेत्रों और सड़क-रेल जैसे बुनियादी ढांचे पर व्यय को बढ़ाया है, वहीं कुल खर्च को नियंत्रण में रखने के लिए राजकोषीय मोर्चे पर विवेकपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने 2024-25 में राजकोषीय घाटे को 0.7 फीसदी कम कर 5.1 फीसदी पर लाने के सरकार के लक्ष्य को महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ यथार्थवादी भी करार दिया है। उनके अनुसार यह तीन स्तंभों पर आधारित है। इन तीन स्तंभों- तार्किक राजस्व वृद्धि, गैर-कर राजस्व में उचित बढ़ोतरी और पूंजीगत खर्च में एक संतुलित वृद्धि के आधार पर यह भरोसा कर सकते हैं कि सरकार राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर लेगी। नीति आयोग ने भी अंतरिम बजट को राजकोषीय नजरिये से सूझबूझ वाला बताया है। उससे निजी निवेश दोबारा शुरू होने के भी बेहतर संकेत दिख रहे हैं। आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी के मुताबिक इस साल के बजट का राजकोषीय परिणाम अनुमान से बेहतर है। पूरी उम्मीद है कि 2025-26 तक 4.5 फीसदी का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पाने में यह मददगार साबित होगा।
भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा भी कहते हैं कि इस संतुलित बजट में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर बहुत समझदारी दिखाई गई है। कर संग्रह लगातार बढ़ रहा है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग का मत है कि अंतरिम बजट में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और स्टार्टअप को लेकर हुई घोषणाओं से देश की नवोन्मेष आधारित अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। अगले वित्त वर्ष के लिए पूंजीगत खर्च में 11 फीसदी वृद्धि कर 11.11 लाख करोड़ रुपये करने एवं राज्यों के सुधारों के समर्थन के लिए 50 वर्षों के लिए ब्याज मुक्त कर्ज के रूप में 75,000 करोड़ रुपये देने के प्रावधान से देश की लॉजिस्टिक दक्षता, संपर्क सुविधा और लॉजिस्टिक लागत में कमी लाने में मदद मिलेगी।
भारत की नवोन्मेष आधारित अर्थव्यवस्था को गति देने की बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी जोर देकर कही है। आईएमएफ के कार्यकारी निदेशक केवी सुब्रमण्यम के अनुसार अगर भारत को तीन शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक होना है तो उसे दुनिया के शीर्ष 10 नवोन्मेषी देशों में अपना स्थान सुनिश्चित करना होगा। अभी यह शीर्ष 50 देशों में है। संभवत: इसी लक्ष्य को गति प्रदान करने के लिए अंतरिम बजट में सरकार की ओर से नवाचार और अनुसंधान के लिए एक लाख करोड़ रुपये और 50 वर्षों के लिए ब्याज मुक्त ऋण देने का महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है। कर संग्रह पर नजर डालें तो हालात बहुत बेहतर दिख रहे हैं। राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा के मतानुसार 2024-25 में जीएसटी संग्रह करीब 11 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है। फिच रेटिंग्स भी मानती है कि राजकोषीय घाटे में तेज गति से कमी दिखी है। निदेशक जेरेमी जूक कहते हैं कि अंतरिम बजट चुनावी वर्ष के बावजूद क्रमिक राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर बने रहने की सरकार की दृढ़ इच्छा को भी दर्शाता है।
चार जातियों का विकास मोदी सरकार के मुख्य नारे ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ को भी मजबूत करेगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाने के सभी संभव प्रयास कर रही है पर इस बार के बजट में कुछ विशेषताएं भी हैं जो इसे और खास बना रही हैं। इस बार के बजट भाषण में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट कर दिया कि एनडीए सरकार ने पिछले दस वर्षों में पीएम मोदी के सूत्र वाक्य ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ की तर्ज पर कदम उठाए और उसके सकारात्मक परिणाम निकले। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जब दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही है, पिछले दस वर्षों में भारत का प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा है। भारत ने 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला है। बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पिछले तीन वर्षों में भारत सबसे तेजी से विकास कर रहा है। हम ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। हमें अब दूसरों से कहीं अधिक तेजी से विकास करना होगा। जापान, दक्षिण कोरिया और चीन ने वर्षों तक दोहरे अंकों की विकास दर बनाए रखी। ऐसे में हमें भी प्रति वर्ष सात-आठ फीसदी की विकास दर कायम रखनी है तथा दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए दो अंकों की विकास दर भी हासिल करनी है। नियमित आर्थिक सर्वे के बदले इस वर्ष जारी किया गया ‘द इंडियन इकनॉमिकः ए रिव्यू’ इस बात को लेकर आश्वस्त करता नजर आता है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह अंतिम बजट उम्मीदों से भरा है जो आर्थिक भविष्य की सुनहरी तस्वीर दिखाता है। इसमें मोदी सरकार के पिछले दस साल के कार्यों का लेखा-जोखा भी है। यह आर्थिक विकास की निरंतरता का विश्वास भी दिलाता है। बजट समावेशी एवं प्रगतिशील है। बजट में 2047 के विकसित भारत की नींव को मजबूत करने की पीएम मोदी की गारंटी भी है। सामाजिक न्याय की पिच पर इसमें पीएम मोदी की नई सोशल इंजीनियरिंग ‘ज्ञान’ का खाका भी दिखाई दे रहा है। कुछ समय पूर्व ही उन्होंने कहा था कि उनके लिए देश में गरीब (जी), युवा (वाई), अन्नदाता (ए),किसान) और नारी (एन) यानि ‘ज्ञान’ के मूल मंत्र के रूप में चार ही जातियां हैं। बजट के प्रावधान और वित्तमंत्री का भाषण भी पुष्टि कर रहे हैं कि भविष्य में सरकार भी अब इन चार जातियों की नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ ही आगे बढ़ेगी। इन्हीं चार जातियों का सशक्तिकरण और कल्याण देश को आगे बढ़ाएगा। इन्हीं का कल्याण अब सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और सामाजिक न्याय है। हमारा सामाजिक न्याय राजनीतिक नारा नहीं बल्कि एक प्रभाव और आवश्यक शासन मॉडल भी है। इनमें सियासत की जातिगत बेड़ियों को तोड़ने की क्षमता होती है। जनसंख्या के लिहाज से यह सबसे बड़ा वर्ग भी है जो जाति और धर्म से परे है। इनमें आधी आबादी महिलाओं की है जबकि किसान और गरीब भी बड़ी संख्या में हैं। इन चार जातियों का विकास मोदी सरकार के मुख्य नारे ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ को भी मजबूत करेगा।