ब्लिट्ज ब्यूरो
मित्रों, ब्लिट्ज इंडिया परिवार दिवंगत पद्मश्री पंकज उधास को उनकी शानदार विरासत और देश के युवाओं के लिए उनकी सीख के लिए याद कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी गज़ल किंग पंकज उधास के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि पंकज उधास की गज़लें सीधे आत्मा से बात करती थीं और वह भारतीय संगीत के प्रकाश स्तंभ थे।
हर दिल अजीज रहे पंकज उधास को ब्लिट्ज इंडिया की ओर से आखिरी सलाम और विनम्र श्रद्धांजलि।
पंकज अब दुनिया में नहीं रहे लेकिन उन्होंने आज अपने असंख्य दोस्तों को विरासत में वह बेशुमार कीमती जागीर दी है जिससे उनका कोई भी चाहने वाला उधास नहीं रहेगा।
कशिश भरी आवाज साथ रहेगी
उनके विचार, प्यार भरी, लहराती हुई दिल की धड़कनों को थाम देने वाली कशिश भरी आवाज़ सदियों तक हमारे साथ रहेगी।
संगीत की दुनिया में उनकी अद्भुत और जादुई आवाज हम सभी को सदा उनका स्मरण और अहसास कराती रहेगी।
‘नाम’ ने दिलाया नाम
‘नाम’ फिल्म के निर्देशक महेश भट्ट का कहना है कि मेरी उस फिल्म का जब भी जिक्र होगा तो ‘चिट्ठी आई है आई है, बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद, वतन की मिट्टी आई है’। गाने का जिक्र जरूर होगा। भट्ट का कहना है कि इस गाने ने पंकज उधास को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाया। इस गाने में उनकी यूनिवर्सल अपील थी। इस गाने के बाद, पंकज उधास जी ने दुनिया में जो नाम और शोहरत कमाई उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
सीधे आत्मा से बात करती थीं पंकज उधास की गज़लें : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
महेश भट्ट की जिद
बात साल 1986 की है। उस समय सलीम – जावेद की जोड़ी टूट चुकी थी और सलीम खान ने अकेले ही यह पहली फिल्म लिखी थी। इस फिल्म का मक़सद था अभिनेता राजेंद्र कुमार के बेटे कुमार गौरव के कैरियर को फिल्मी दुनिया में संवारना। फिल्म के निर्देशक महेश भट्ट ने ज़िद करके, उन दिनों के उभरते गायक, पंकज उधास का गीत ‘चिट्ठी आई है, आई है, चिट्ठी आई है’ इस फिल्म में रखा।
फिल्म हिट हुई और यह गाना सुपर हिट हो गया। विदेशों में बसे लाखों भारतीयों का आज भी ये सबसे पसंदीदा गाना है।
अब आपको, एक किस्सा बताते हैं। इस गाने के बारे में एक और किस्सा आपसे शेयर कर रहे हैं। डेविड धवन गाना एडिट कर रहे थे। उस दौरान निर्देशक राजेंद्र कुमार ने राज कपूर को डिनर के लिए अपने घर बुलाया था। तब राजेंद्र कुमार ने राज कपूर को ये गाना सुनवाया था। गाना सुनने के बाद राज कपूर की आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने कहा था कि यह गाना हिट होने वाला है और ऐसा हुआ भी।
17 मई, 1951 को गुजरात में पैदा हुए पंकज उधास का गाना, ‘चिट्ठी आई है’ हज़ार सालों के सौ सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक है। आपकी जानकारी में रहना जरूरी है कि इसे बीबीसी रेडियो ने सहस्राब्दी के सौ गीतों में से एक के रूप में चुना था।
पंकज उधास की कुछ सदाबहार फिल्मी गज़लें हर संगीत प्रेमी की ज़ुबान पर, कहीं न कहीं, कभी न कभी ज़रूर आती हैं।
फिल्म ‘एक ही मक़सद’ के गीत ‘चांदी जैसा रंग है तेरा’।
‘मोहरा’ के गीत ‘ना कजरे की धार’।
‘दयावान’ का गीत ‘आज फिर तुमपे प्यार आया है’।
‘साजन’ का गीत ‘जिएं तो जिएं कैसे’।
बहुत कम लोग जानते हैं कि पंकज ने 14 साल की उम्र में भारत और चीन युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की मदद के लिए आयोजित अपनी पहली स्टेज परफॉर्मेंस में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत गाकर, लोकप्रियता की दुनिया में अपना पहला कदम रखा था।
इस परफॉर्मेंस की सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी की, उस महफिल में से ही एक ऑडियंस ने 51 रुपये का इनाम पंकज उधास को देकर उनकी हौसला अफजाई की थी। यह इनामी राशि उन्होंने पूरी उम्र तक संभाल कर रखी। नियमों और उसूलों के पाबंद पंकज उधास स्वर सम्राज्ञी, लता मंगेशकर जी को सदैव साक्षात सरस्वती के रूप में मानते थे।
पंकज उधास ने अपनी फिल्मी गायिकी की शुरुआत 1970 में आई फिल्म ‘तुम हसीन मैं जवान’ के गाने ‘मुन्ने की अम्मा ये तो बता’ से की थी।
उनके जीवन की खास बात यह थी कि उन्होंने अपना पहला गाना ही लीजेंडरी किशोर कुमार के साथ गया था। इसके बाद 1980 से अपनी सोलो शुरुआत की थी।
बेहद सरल, सौम्य और प्यार भरी ज़ुबान रखने वाले पंकज उधास अपने नज़दीक के लोगों को हमेशा प्रोत्साहित और बैकअप करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते थे।
आपको बताना चाहते हैं कि पंकज उधास क्लासिकली ट्रेंड सिंगर नहीं थे। उनकी ग्रूमिंग किशोर कुमार जैसी थी। किशोर दा ने भी कोई औपचारिक क्लासिकल ट्रेनिंग नहीं ली थी।
‘साजन’ फिल्म के गीत, ‘जिएं तो जिएं कैसे’ के वक्त कंपोजर नदीम श्रवण की पहली पसंद पंकज उधास जी थे ।
उनके गाये गीत, ‘ना कजरे की धार, ऐ गमे ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा, आज फिर तुम पे प्यार आया है, मोहब्बत इनायत करम देखते हैं, और भला क्या मांगू मैं रब से ख़ुदा करे कि मोहब्बत में वो मुक़ाम आये और चिट्ठी आई है’, कालजयी माने जा रहे हैं ।
उन्होंने नशा, घूंघट, मुस्कान, धड़कन, रुबाई, लम्हा, मुक़र्रर, तरन्नुम और महफ़िल जैसे एलबम्स के ज़रिए भी यादगार गज़लें गाईं।
इनमें से ‘घुंघरू टूट गए, चांदी जैसा रंग है तेरा, थोड़ी थोड़ी पिया करो, दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है, घूंघट है अनमोल, इक तरफ उसका घर, और आहिस्ता कीजिए बातें’ जैसी सदाबहार गज़लें लोगों के दिल और दिमाग में गहरे तक बैठी हुई हैं।
पंकज ने अपना पहला एल्बम, ‘आहट’ रिलीज किया था। इसके बाद उन्होंने चार दशक के करियर में 50 एलबम बनाये जो उनके फिल्मों में गाये गीतों से बिलकुल अलग थे। उनकी इन सारी उपलब्धियों के लिए 2006 में उन्हें पद्मश्री समान से सम्मानित किया गया।
पंकज के बाबा भावनगर रियासत के जमींदार रह चुके थे। यही वजह थी कि पंकज उधास के उठने-बैठने और उनके बातचीत करने का अंदाज शुरू से ही राजसी रहा।
संगीत की दुनिया के सभी लोगों ने देखा है कि पंकज जब भी किसी से बात करते थे, तो ऐसे लगता था कि मानों उनके होठों से, रस बरस रहा हो। उनमें कभी भी ‘एटीट्यूड’ देखने को नहीं मिला। कंपोजर द्वारा दी गई धुन और गीतकार द्वारा रचे गए शब्दों को पंकज बड़े प्यार से गाकर चले जाते थे। गुज़ारिश करने पर वह दुबारा भी गा देते थे।
उदित नारायण से लेकर तलत महमूद, सोनू निगम, अनूप जलोटा जैसी कितनी, नामी – गिरामी शख़्सियतें हैं, जिनके कामों को उन्होंने सारे आम सराहा।
गायिकी में मास्टर नवरंग के शागिर्द रहे पंकज उधास ने गज़लों को मेहंदी हसन, गुलाम अली और जगजीत सिंह को सुनने वाले संभ्रांत लोगों से निकालकर आम संगीत प्रेमी तक पहुंचाया। उनकी गज़लों की पसंद, शराब के आस पास ज्यादा रही है जिसे सुनने वालों की भरपूर संख्या थी।
पंकज उधास ने एक मौके पर कहा था कि उन्होंने सैकड़ों गाने गाये। इनमें 20 से 25 गीत ही शराब और मयखाने से जुड़े थे लेकिन उन्हें ऐसे ही गीतों के सिंगर का टैग दे दिया गया।
उन्हें मलाल रहा कि उनके रोमांटिक गाने ज्यादा पसंद किए गए पर इनका ज्यादा जिक्र नहीं हुआ। मशहूर गीतकार, समीर अंजान का कहना है कि पंकज के होने से जगजीत सिंह जी की कमी महसूस नहीं होती थी। पर आज देश की गज़ल गायकी खामोश हो गई है।
गायन की बहुमूल्य विरासत छोड़कर जाने वाले दिग्गज गायक को ब्लिट्ज इंडिया की ओर से सादर नमन।