संजय द्विवेदी
लखनऊ। दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर निकलता है। यह बात 2024 के लोकसभा चुनाव के 4 जून को आये नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है। नतीजों पर नजर डालें तो सपा-कांग्रेस गठबंधन में ‘दो लड़कों’ यानि अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी ने यूपी में मोदी के ‘रथ’ को थाम दिया है। गठबंधन ने राज्य की 80 सीटों में से 43 सीटों पर फिलहाल बढ़त बनाकर रिकार्ड कायम कर दिया है। गठबंधन की यह जीत केन्द्र में ‘एक बार फिर मोदी सरकार बनने में रोड़ा बनकर खड़ी हो गयी है।
यूपी में गठबंधन को मिली जीत ने जहां समाजवादी पार्टी के आंकड़े को 4 से 37 तो कांग्रेस को 1 से 6 पर पहुंचा दिया है। वहीं राज्य में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को तगड़ा झटका लगा है। पार्टी का राज्य में कहीं भी खाता नहीं खुला, जबकि 2019 में सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ने पर बसपा को 10 सीटें हासिल हुई थीं। बसपा की इस पराजय की मुख्य वजह राज्यसभा और विधानपरिषद चुनाव में उसका भाजपा को समर्थन करना बना।
इंडिया का हिस्सा बनने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बड़ा दिल दिखाते हुए कांग्रेस को 17 सीटें दीं। सीटों का बंटवारा भी दोनों दलों के नेताओं ने जातीय समीकरण साधते हुए किया। इसमें अखिलेश यादव ने पार्टी के आधार वोट यादव समुदाय में सिर्फ पांच टिकट अपने परिवार को दिए। सपा ने चार मुस्लिम प्रत्याशी उतारे तो अपने खाते के अन्य टिकट पीडीए’ समीकरण के तहत पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की अधिकांश जातियों में दिए। दलितों में सभी वर्ग को उम्मीदवारी दी। तो कांग्रेस ने टिकट बंटवारे में जातीय समीकरण साधे। सपा-कांग्रेस गठबंधन होने के साथ ही मुस्लिम समुदाय को भाजपा के खिलाफ एक मजबूत मुकाम मिला, जो नतीजों से साफ दिखता है। ‘सत्ता विरोधी लहर और पार्टी के मौजूदा सांसदों से लोगों की नाराजगी भी भाजपा को भारी पड़ी। इनमें केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी, मंत्री डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय, स्मृति ईरानी, साध्वी निरंजन ज्योति के साथ ही अन्य कुछ सांसदों के व्यवहार उनकी हार का कारण बना।
यूं देखें तो यूपी में भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक और अन्य नेताओं की लम्बी फौज के मुकाबले गठबंधन के ‘दो लड़के (अखिलेश-राहुल) जिन्हें ‘दो शहजादे’ कहा गया, ने ही चुनावी प्रचार की कमान यामी। मगर अखिलेश राहुल ने प्रचार के शुरूआत से ही ‘संविधान बदल देने, आरक्षण खत्म कर देने, अग्निवीर की तरह सिपाही की नौकरी तीन साल कर देने, नौकरी ना देनी पड़े इसलिए योगी सरकार पर खुद ही भर्ती के पर्चे लीक करने के जो आरोप मढ़े उन्हें वे अंतिम समय तक लेकर चले। अपने इन मुद्दों पर गठबंधन के नेता भाजपा को घेरने में सफल भी रहे। शायद चुनावी नतीजे यह बताने के लिए काफी हैं कि गठबंधन अपने मुद्दों को आम मतदाताओं तक पहुंचाने में सफल रहा है। अपने इन्हीं मुद्दों के बूते राहुल गांधी ने रायबरेली में रिकार्ड 4 लाख से ज्यादा तो कन्नौज में अखिलेश यादव ने करीब दो लाख वोटों से जीत दर्ज की है।
मैनपुरी में डिम्पल यादव 2.50 लाख मतों से जीती हैं।
बेशक यूपी में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी से चुनाव जीत गये है मगर 2019 के मुकाबले उनकी जीत का आंकड़ा 60 फीसद घट गया। इस बार वे करीब 1.50 लाख वोट से जीते हैं। लखनऊ में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी सिर्फ 70 हजार से जीत सके, जबकि 2019 में उनकी जीत कई लाख में थी। अमेठी में स्मृति ईरानी को एक गैरराजनीतिक व्यक्ति किशोरी लाल शर्मा ने डेढ़ लाख वोट से पराजित कर दिया। इस तरह कहीं ना कहीं यह स्पष्ट है कि ‘इंडिया’ यूपी में भाजपा के मोदी- योगी जादू पर भारी पड़ा है।
मोदी की नीतियों पर मुहर है तीसरी बार बहुमत
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक्स के माध्यम से कहा कि भारत की जनता-जनार्दन ने लगातार तीसरी बार एनडीए को स्पष्ट बहुमत प्रदान किया है। अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में एनडीए को पूर्ण बहुमत का जनादेश प्राप्त हुआ है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति, नेतृत्व और निर्णयों पर देश की जनता के विश्वास की मुहर है। उन्होंने सभी विजयी प्रत्याशियों को बधाई दी