गुलशन वर्मा
नई दिल्ली। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को प्रतिस्थापित करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, भारतीय न्याय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 संसद के दोनों सदनों में पास हो गए हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था का संक्रमण और परीक्षा-प्रयोग काल खत्म हुआ।
देश चलेगा अपने कानून से तारीख पर तारीख का अंत
अब देश अपने खुद के कानून से चलेगा। दंड के बजाय न्याय को अधिमान मिलेगा। प्राण सुखाने वाली ‘तारीख पर तारीख’ की लंबी त्रासदी का अंत होगा। लोगों को समयबद्ध न्याय मिलेगा। लादे हुए अप्रासंगिक, अतार्किक व न्याय की दिशा भटकाने वाले अव्यावहारिक कानूनों के जुए को सरकार ने उतार फेंका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देशवासी नए साल में न्याय व्यवस्था के नए स्वरूप से राहत महसूस करेंगे। उन्हें अपनेपन का अहसास होगा और अपने कानून पर स्वाभिमान भी। कानून में अब अंग्रेज हित नहीं बल्कि देशहित के अक्स, प्रतिबिंब के साथ-साथ साकार रूप का भी दीदार होगा। आइए जानते हैं कि नए कानूनों से किस तरह समूची न्यायपालिका का कायाकल्प होगा।
चार साल गहन मंथन
158 बैठकें
कानून को लाने से पहले 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए थे। 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे।
कानूनों में क्या है खास
कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।
एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान।
सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है। इसके बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।
7 साल या इससे ज्यादा सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट कंपल्सरी। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा।
पहली बार ज़ीरो एफआईआर। अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा।
पहली बार ई-एफआईआर का प्रावधान। हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा।
यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी। यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी ।
पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी।
पीड़ित को सुने बिना 7 साल या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं होगा।
छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे। इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे।
आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समय सीमा तय। परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी। इस तरह 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा।
कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे, बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा। इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।
सिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमिशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा।
घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्रावधान। अंतरराज्यीय गिरोह और संगठित अपराधों के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सजा का नया प्रावधान।
शादी, रोजगार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है।
गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान।
18 साल से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान।
मॉब लिंचिग के लिए 7 साल, आजीवन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान।
मोबाइल फोन या महिलाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए अब कड़ी सजा का प्रावधान।
हमेशा के लिए अपंगता लाने या ब्रेन डेड करने वाले अपराधी के लिए 10 साल या आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान।
बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सज़ा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। अनेक अपराधों में जुर्माने बढ़ाने का प्रावधान।
सजा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सज़ा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सज़ा में ही बदला जा सकेगा व किसी भी गुनहगार को छोड़ा नहीं जाएगा।
सरकार ने राजद्रोह कानून पूरी तरह से समाप्त किया।
पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है।
अनुपस्थिति में भी ट्रायल होगा। सेशन्स कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सज़ा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो कहीं भी छिपा हो, उसे सज़ा के खिलाफ अपील करने के लिए अदालत की शरण में आना होगा।
कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा।
कानून में महिलाओं और बच्चों का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सज़ा मिले, ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अधिकारों का दुरुपयोग न कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं।
सीआरपीसी
गृह मंत्री ने कहा कि सीआरपीसी की जगह लेने वाले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक में अब 533 धाराएं होंगी। कुल 160 धाराएं बदली गई हैं, नौ नई धाराएं जोड़ी गई हैं और नौ धाराएं निरस्त की गई हैं।
आईपीसी
भारतीय न्याय संहिता विधेयक, जो आईपीसी की जगह लेगा, उसमें पहले की 511 धाराओं के बजाय 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में संशोधन किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराएं निरस्त की गई हैं।
साक्ष्य अधिनियम
साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य विधेयक में अब पहले के 167 के बजाय 170 खंड होंगे। शाह ने कहा कि 23 खंड बदले गए हैं, एक नया खंड जोड़ा गया है और पांच निरस्त किए गए हैं।