भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़कर दुनिया में पहली पायदान पर पहुंच गया है। देश की आबादी की औसत आयु चीनियों की तुलना में 10 वर्ष कम है, यानी कि हिंदुस्तानी ज्यादा जवान हैं। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक भारत की जनसंख्या 142 करोड़ 86 लाख हो गई है जबकि सदियों से इस मामले में पहले नंबर पर रहे चीन की आबादी अब हमसे 29 लाख कम यानी 142 करोड़ 57 लाख है। इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘एट बिलियन लाइव्स, इनफिनिट पॉसिबिलिटीज द केस फॉर राइट्स एंड चॉइस’ है। वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स के अनुसार भारत में अब दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा युवा हैं और चीन भी हमसे पीछे है। गत 19 अप्रैल को जारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या की औसत आयु 28.2 वर्ष है, इसका मतलब है कि भारतीय जनसंख्या की औसत उम्र चीन की जनसंख्या से औसत में 10 वर्ष कम है।
आबादी बढ़ने के संकेत बहुत महत्वपूर्ण हैं और इसके अनेक मायने भी हैं। अब हम एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत आबादी वाले देश हो गए हैं। यूरोप और अफ्रीका या अमेरिका की जनसंख्या से भी हमारी आबादी ज्यादा है। यही नहीं, भारत की आधी आबादी 30 वर्ष से कम उम्र की है जिसका लाभ देश को यह मिलेगा कि ये सारे युवा भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनेंगे। कृषि प्रधान भारत हर क्षेत्र में दुनिया भर में अपना लोहा मनवाने की राह पर अग्रसर होगा। आंकड़ों पर गौर करें तो ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या वर्ष 2018 – 19 में 19.7 फीसदी थी जो 2020 – 21 में बढ़कर 27 .7 फीसदी हो गई थी। भारत में करीब 50 करोड़ कामगार हैं। 15 साल से अधिक उम्र के कामगारों को अगर जोड़ लें तो यह आंकड़ा 100 करोड़ से भी अधिक होगा। देश की तकनीकी कंपनियों में लगभग 54 लाख लोग काम कर रहे हैं। पिछली तीन तिमाही में डेढ़ करोड़ नए कामगार जुड़े हैं। यही नहीं भारत दक्ष कामगारों की बदौलत साल 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। युवाओं के संदर्भ में इस रिपोर्ट के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 25 फीसदी आबादी की उम्र 14 साल तक है। वहीं 10 से 19 साल के लोगों की भागीदारी 18 फीसदी जबकि 10 से 24 वर्ष के लोगों की संख्या 26 फीसदी है। 15 से 64 साल के बीच के लोगों की जनसंख्या में भागीदारी कुल 68 फीसदी है। हालांकि दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देशों की सूची में पिछड़ने के बाद से चीन बिफर गया है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि जनसंख्या के साथ हुनर भी होना जरूरी है। वांग ने कहा कि चीन में कामगारों की संख्या 90 करोड़ से अधिक है। चीन का दावा है कि वह अपने अच्छे कामगारों की बदौलत दुनिया की एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आगे बढ़ता रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र ने 1950 से जनसंख्या के आंकड़े एकत्र करना शुरू किया था और उसके बाद भारत पहली बार दुनिया में आबादी के मामले में सबसे आगे निकल गया है। हालांकि, भारत अभी युवा बहुल देश है, जबकि चीन में बूढ़ों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वहां 20 करोड़ से ज्यादा लोगों की आयु 65 वर्ष से अधिक है। अपने यहां जीवन स्तर को सुधार कर चीन ने अपनी आबादी को नियंत्रित किया है। आबादी पर नियंत्रण के लिए स्वास्थ्य सेवाओं का विकास सबसे जरूरी है और भारत को भी इस दिशा में प्रयास करने होंगे।
हमने एक देश के तौर पर सर्वाधिक जनसंख्या की उपलब्धि तो हासिल कर ली है पर इस उपलब्धि को कायम रखते हुए अभी से सजग होना होगा कि हमारी जनसंख्या इतनी भी न बढ़ जाए कि हमारे देश में संसाधनों की कमी हो जाए। हम आज विकसित भारत की कल्पना में लगे हैं किंतु इसके लिए हमें अपनी जनसंख्या पर भी नियंत्रण रखना होगा ताकि देश बढ़ी आबादी का सदुपयोग विकास और समस्याओं के समाधान के लिए कर सके, जैसा कि कोविड काल में हमने किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड काल के दौरान जब देश में टीकाकरण अभियान का शुभारंभ किया था तो वह दुनिया का सबसे बड़ा अभियान था। इस मौके पर पीएम मोदी ने भारत और भारतवासियों की उपलब्धियों को भी गिनाया था। पीएम मोदी ने कहा था कि जिस बड़ी आबादी को लोग भारत की सबसे बड़ी कमजोरी बता रहे थे, वही सबसे बड़ी ताकत बन गई। आज हर क्षेत्र में अपनी कुशलता का लोहा मनवा चुके भारतवासी एक बार फिर दुनिया को यह दिखाने के लिए तैयार हैं कि बड़ा आकार कितने बड़े-बड़े काम कर सकता है।
वैसे भारत में रिप्लेसमेंट अथवा फर्टिलिटी रेट पर गौर करें तो यह इतनी “चिंतनीय” महसूस नहीं होती क्योंकि जन्म दर में गिरावट का ट्रेंड साफ है। रिप्लेसमेंट रेट का मतलब प्रति महिला औसत जन्म दर है। जनसंख्या विशेषज्ञों के मुताबिक अगर किसी समाज में यह दर 2.1 हो, तो उस समाज में आबादी स्थिर रहेगी। भारत में अब ये दर सबसे ज्यादा बिहार में है लेकिन ऐसे अनेक राज्य हैं, जहां यह दर अपेक्षित दर से भी काफी घट चुकी है। अगर पूरे भारत पर गौर करें तो 2022 के अंत में रिप्लेसमेंट दर 2.159 तक गिर गई थी। यानी राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने अपेक्षित रिप्लेसमेंट दर को लगभग हासिल कर लिया है। जन्म दर में गिरावट का सीधा संबंध मानव विकास की स्थितियों से है। शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता, महिलाओं का सशक्तिकरण और पारिवारिक जीवन स्तर में सुधार वो पहलू हैं, जिनसे लोग स्वतः ही छोटा परिवार रखने के लिए प्रेरित होते हैं। इस दिशा में पीएम मोदी की सरकार उल्लेखनीय प्रयास कर रही है। मुद्दे की बात यह है कि हमें आबादी को सक्षम और स्वस्थ रख कर देश के विकास के नए अवसरों में बदलना होगा और हम अनेक अवसरों पर ऐसा कर के दिखा भी चुके हैं। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि नया विराट भारत अब मानव संसाधन यानी कि ह्यूमन रिसोर्स का पॉवर हाउस बन चुका है।