नीलोत्पल आचार्य
नई दिल्ली। ‘डिजिटल अरेस्ट’ के रूप में अपराध का एक नया रूप तेजी से सामने आ रहा है। ऐसे क्राइम में वे शातिर अपराधी शामिल हैं जो धन वसूली की खातिर व्यक्तियों को डराने के लिए सरकारी एजेंसियों और कानून, प्रवर्तन आदि विभिन्न विभागों के अधिकारियों के रूप में पेश होते हैं। घोटाला आम तौर पर एक वीडियो कॉल से शुरू होता है जहां घोटालेबाज पीड़ित पर अवैध गतिविधियों में शामिल होने का झूठा आरोप लगाते हैं। ये आरोप दहशत पैदा करने और पीड़ित को वित्तीय मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर करने के लिए लगाए जाते हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अपराधियों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामान्य चालबाजी एक जैसा ही होती है। वे ऐसे देते हैं अपने ठगी के प्लान को अंजाम –
पहला कदम : फोन या वीडियो काल में अपने शिकार को यह कह कर धमकाया जाता है कि वह मादक पदार्थों की तस्करी या अवैध वस्तुओं को रखने जैसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल है।
दूसरा कदम : ‘शिकार’ को बताया जाता है कि उसका कोई प्रियजन पुलिस या ईडी आदि की हिरासत में है या उसने कोई बड़ी दुर्घटना की है।
तीसरा कदम : संबंधित व्यक्ति को बुरी तरह भयभीत कर उसे तुरंत पैसे का इंतजाम करके किसी खाते में ट्रांसफर करने के लिए कहा जाता है।
हाल ही में डॉ. पूजा गोयल से इसी तरह ठगी की गई। रिपोर्टों के अनुसार नोएडा स्थित एक प्रमुख चिकित्सक डॉ. पूजा गोयल को भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अधिकारियों के रूप में प्रस्तुत करने वाले अपराधियों ने निशाना बनाया था। जालसाजों ने उन पर अवैध सामग्री वितरित करने के लिए उनके फ़ोन नंबर का उपयोग करने का आरोप लगाया। घोटाले का एहसास होने से पहले दबाव में डॉ. गोयल ने 60 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए।
डिजिटल गिरफ्तारी
साइबर क्रिमिनल्स डिजिटल अरेस्ट विधि को नार्मल एवं नेचुरल दिखाने के लिए कई प्रकार का चक्रव्यूह रचते हैं और लगातार वीडियो से अपने शिकार पर नजर रखते हैं। वे प्रौद्योगिकी का उपयोग भी करते हैं ,अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल सेटअप-गेटअप का भी उपयोग करते हैं, जैसे-
नकली कार्यालय : पुलिस स्टेशन या सरकारी कार्यालय जैसा नकली सेट तैयार करवाते हैं।
वर्दी : असली दिखने के लिए सरकारी जैसी दिखने वाली वर्दी भी पहनते हैं।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग उपकरण : स्काइप जैसे प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग इंटरैक्टिव प्रभाव डालने के लिए किया जाता है।
सरकार के क्या कदम
भारत सरकार ने नागरिकों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटाले को पहचानने और उसका शिकार होने से बचने में मदद करने के लिए चेतावनियां और दिशानिर्देश जारी किए हैं।
रिपोर्टिंग तंत्र : नागरिकों को साइबर अपराध हेल्पलाइन नंबर 1930 या वेबसाइट www.cybercrime.gov.in के माध्यम से संदिग्ध कॉल की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। गृह मंत्रालय के अधीन I4सी, साइबर अपराध से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धोखाधड़ी वाले, घोटाले से जुड़े 1,000 से अधिक स्काइप आईडी को ब्लॉक कर दिया गया है। धोखाधड़ी वाले खातों को बंद करने और उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले सिम कार्ड और मोबाइल उपकरणों को ब्लॉक करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के साथ मिलकर काम किया जा रहा है। सबसे अहम, जनता को शिक्षित करने के लिए ‘साइबर दोस्त’ जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से जानकारी का प्रसार किया जा रहा है।
ऐसे करें अपना बचाव
सबसे अहम है सावधानी और संयम से ऐसे धोखेबाजों से निपटना। कॉल करने वाले की पहचान सत्यापित करें, आधिकारिक एजेंसियों का दावा करने वाले व्यक्तियों की पुष्टि करें।
तत्काल भुगतान से बचें अनचाही कॉल या वीडियो अनुरोध के आधार पर धन हस्तांतरित न करें।
सहायता लें
यदि आपको संदिग्ध संचार प्राप्त होता है तो स्थानीय अधिकारियों या विश्वसनीय व्यक्तियों से फौरन संपर्क करें।