ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने ‘स्थगन की संस्कृति’ और लंबी छुट्टियों का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने की न्यायपालिका की क्षमता के लिए जरूरी है कि वह चुनौतियों को पहचाने और ‘कठिन संवाद’शुरू करे। उन्होंने हाशिए पर मौजूद वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने और पहली पीढ़ी के वकीलों को समान अवसर प्रदान करने पर भी जोर दिया।
प्रधान न्यायाधीश शीर्ष अदालत की स्थापना के हीरक जयंती वर्ष के उद्घाटन के अवसर पर उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि थे।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भारत में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि कानूनी पेशे में पारंपरिक रूप से महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहता था, लेकिन अब जिला न्यायपालिका के कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी 36.3 प्रतिशत है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अब भारत में महिलाओं को महत्वपूर्ण पदों पर देखा जा सकता है।
उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में शामिल करने का आह्वान किया। उन्होंने रेखांकित किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व ‘‘बार और पीठ दोनों में काफी कम है।”
उच्चतम न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया था। वर्तमान भवन में स्थानांतरित होने से पहले यह संसद भवन से कार्य करता था। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘परंपरागत रूप से कानूनी पेशा कुलीन पुरुषों का माना जाता था। अब समय बदल गया है। पेशे में परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाली महिलाएं, अब जिला न्यायपालिका की कामकाजी ताकत का 36.3 प्रतिशत हिस्सा हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि स्थगन संस्कृति से पेशेवर संस्कृति की ओर बढ़ने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लंबी मौखिक दलीलों के कारण न्यायिक परिणामों में असीम देरी न हो। तीसरा, कानूनी पेशे में आए पहली पीढ़ी के वकीलों चाहे पुरुष हो या महिलाएं या हाशिए पर रहने वाले अन्य लोगों को समान अवसर प्रदान करना चाहिए, जिनके पास इच्छाशक्ति और सफल होने की क्षमता है।”
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘चौथा, लंबी छुट्टियों पर बातचीत शुरू करें और इस पर चर्चा करें कि क्या वकीलों और न्यायाधीशों के लिए लचीले समय जैसे विकल्प संभव हैं।
राज्यों का दिया हवाला
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में आयोजित जूनियर सिविल जजों की भर्ती परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों में से 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं थीं।
ये रहे शामिल
सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के सेवारत और सेवानिवृत्त न्यायाधीश और वकील और कानून के छात्र भी शामिल हुए। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश सी अग्रवाल ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम में बांग्लादेश, भूटान, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका के प्रधान न्यायाधीश भी शामिल हुए।