डा. देवी शेट्टी
2010 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के गवर्निंग बोर्ड के सदस्य के रूप में मैंने और पांच प्रमुख डॉक्टरों ने मिलकर नीट (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) का विचार प्रस्तुत किया। हमारा उद्देश्य था कि छात्रों को कई प्रवेश परीक्षाओं की समस्या से मुक्ति मिले और चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आए लेकिन जब 720 में से सिर्फ 110 अंक लाने वाले छात्र मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने लगे, तो हमें अपनी असफलता का अहसास हुआ।
पारदर्शिता की कमी
पचास साल पहले जब मैं खुद मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने की कोशिश कर रहा था, तब भी मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी। आज इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश की प्रक्रिया साफ और पारदर्शी है क्योंकि इंजीनियरिंग कॉलेज की मुख्य आवश्यकता केवल एक इमारत है और सीटों की भरमार है लेकिन मेडिकल कॉलेज के लिए लगभग 1 लाख सीटों के लिए 24 लाख छात्र आवेदन करते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और घोटालों से बचना मुश्किल हो जाता है।
– गरीब परिवारों के जुनूनी बच्चों को डॉक्टर बनना चाहिए
मेडिकल सीटों की कीमत और विदेशी शिक्षा
पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सीट की कीमत समझने के लिए, कुछ साल पहले रेडियोलॉजी में एमडी की कैपिटेशन फीस 5 करोड़ रुपये से अधिक थी, जबकि बाकी दुनिया में पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा मुफ्त है। भारतीय स्वास्थ्य सेवा को बदलने के लिए, गरीब परिवारों के जुनूनी बच्चों को डॉक्टर बनना चाहिए। अधिकांश उत्कृष्ट डॉक्टर, जिनके हाथों में जादू होता है, वे आम तौर पर वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं।
मेडिकल शिक्षा: एक अभिजात्य वर्ग का मामला क्यों?
मेडिकल कॉलेज बनाने में अत्यधिक लागत आती है। इसके विपरीत, कैरेबियन में एक मेडिकल कॉलेज खरीदने के लिए केवल 14 करोड़ रुपये लगते हैं जो अमेरिका के लिए डॉक्टर तैयार करता है। पश्चिमी देशों में 10 एकड़ जमीन, एक मिलियन वर्ग फुट की इमारत, केंद्रीय एयरकंडीशंड ऑडिटोरियम, पूर्णकालिक क्लिनिकल फैकल्टी की आवश्यकता नहीं होती।
समाधान: मौजूदा कॉलेजों का विस्तार
छोटे मेडिकल कॉलेज 50 से 150 छात्रों के प्रवेश के साथ शिक्षा की लागत कम नहीं कर सकते। हमें पश्चिमी देशों के मॉडल का पालन करते हुए मौजूदा मेडिकल कॉलेजों का विस्तार करना चाहिए। जैसे कि किंग्स कॉलेज लंदन में 450 मेडिकल छात्रों का वार्षिक प्रवेश है, इंडियाना यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल, यूएसए में 360 से अधिक छात्रों का प्रवेश है और यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न मेडिकल स्कूल ऑस्ट्रेलिया में 340 छात्रों के प्रवेश की व्यवस्था है। 705 मौजूदा मेडिकल कॉलेजों को अतिरिक्त 100 सीटें दी जानी चाहिए। इससे बहुत कम लागत पर 70,500 अतिरिक्त मेडिकल सीटें मिलेंगी। अतिरिक्त छात्रों को मौजूदा बुनियादी ढांचे में प्री-क्लिनिकल अध्ययन पूरा करना चाहिए लेकिन क्लिनिकल अध्ययन के लिए मेडिकल कॉलेज को एक सरकारी अस्पताल को अपनाना चाहिए। इससे सरकारी अस्पतालों को एक जीवंत संस्थान में बदलने में मदद मिलेगी। पश्चिमी देशों की तरह प्रैक्टिसिंग मेडिकल स्पेशलिस्ट को मानद शिक्षक के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज
हर साल लगभग 25,000 भारतीय छात्र चीन, रूस और अन्य देशों के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेते हैं हैं, जिनका बुनियादी ढांचा कमजोर होता है।
इससे भारत हर साल 15,000 करोड़ रुपये की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खो देता है। इन छात्रों के माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने का सपना देखते हैं और उन्हें गरीबी से निकालने की कोशिश करते हैं। लेकिन, इनमें से केवल 16 प्रतिशत ही भारत में प्रैक्टिस करने की योग्यता परीक्षा पास कर पाते हैं। 500 बड़े भारतीय अस्पतालों को राष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज के रूप में मान्यता देकर, हम 50,000 अतिरिक्त सरकारी स्वामित्व वाली सीटें जोड़ सकते हैं और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचा सकते हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञों को मानद शिक्षक के रूप में मान्यता देकर शिक्षकों की कमी को दूर किया जा सकता है और मेडिकल शिक्षा की लागत को कम किया जा सकता है। मेडिकल कोर्स पूरा करने के बाद, छात्रों को एक समान एग्जिट एग्जाम देना चाहिए। 1975 में, जब पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा संकट में थी, तब भारतीय सरकार ने ‘नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन’ का गठन किया। आज हमारी सरकार ‘नेशनल मेडिकल कॉलेज’ के रूप में एक समानांतर अंडर ग्रेजुएट मेडिकल शिक्षा प्रणाली बना सकती है। 120,500 अतिरिक्त सरकारी स्वामित्व वाली सीटों के साथ, सरकार के पास कुल 176,405 मेडिकल सीटें होंगी। सीटों की भरमार होगी, तो भ्रष्टाचार कम होगा।
निष्कर्ष
अब समय आ गया है कि हम मेडिकल शिक्षा की लागत के बारे में बात करें, जो मध्यवर्गीय परिवारों को दिवालिया बना रही है। मुझे विश्वास है कि हमारी सरकार इस एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम है, जिससे मेडिकल शिक्षा में योग्यता का उदय होगा और भारतीय स्वास्थ्य सेवा को एक नई दिशा मिलेगी।