विश्लेषण/ विनोद शील
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता-जनार्दन ने जो जनादेश दिया है, उस पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। एक ओर कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने से इस बार उन्हें दबाव में काम करना पड़ेगा और बड़े एवं कड़े फैसले लेने में उनके समक्ष कई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव का यह परिणाम ऐतिहासिक है। इसकी एक खास वजह यह है कि 1962 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के बाद पहली बार यह प्रधानमंत्री मोदी की सरकार है जिसने दो कार्यकाल पूरा होने के बाद लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की है।
यह सत्य है कि भाजपा को पूर्ण बहुमत से बहुत अधिक सीट मिलने की सबको आशा थी जिसमें वह सफल नहीं हो पाई पर उसके नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत से कहीं अधिक 293 सीटें मिली हैं जिसने कहीं न कहीं विपक्षी गठबंधन को बहुत बड़ा आघात पहुंचाया है। यद्यपि विपक्षी गठबंधन इसे अपनी जीत बता रहा है पर राजनीतिक पंडितों का यह भी कथन है कि इसमें विपक्षी गठबंधन के लिए अति खुश होने जैसा कुछ भी नहीं है। गौर करने की बात है कि प्रधानमंत्री मोदी का जादू कई राज्यों में अब भी बरकरार है और उनकी पार्टी वहां सरकार बना रही है। कुछ दक्षिण राज्यों में भी उसे सफलता का स्वाद चखने को मिला है।
सबसे खास बात यह है कि यह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) चुनाव से पहले का गठबंधन है। यानी यह वैसा गठबंधन नहीं है जैसा कि देश में पहले कई चुनावों में देखा जा चुका है; जब चुनाव के नतीजे आने के बाद गठबंधन बने। ऐसे में यह तो साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाले इस गठबंधन की सरकार के स्थायित्व को कोई दिक्क त नहीं आने वाली है, ऐसा विश्वास किया जा सकता है। फिर भी प्रश्न उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को अपने पिछले दो कार्यकालों के विपरीत इस बार सरकार चलाने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों पर समझौता करना पड़ेगा। इन बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी के थर्ड टर्म की सरकार क्या कमजोर सरकार साबित होगी? इन सवालों का जवाब प्रधानमंत्री मोदी के उस पहले भाषण में मिलता है जो उन्होंने चुनाव परिणामों के आने के बाद दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में दिया था।
कैसे काम करेगा गठबंधन
पीएम मोदी ने अपने भाषण में स्पष्ट किया है कि गठबंधन की यह सरकार कैसे काम करेगी। उन्होंने कहा, केंद्र की एनडीए सरकार सभी राज्य सरकारों के साथ, चाहे वे किसी भी दल की क्यों न हों; मिलकर काम करेगी। उन्हें इस बात का भी अहसास है कि गठबंधन के दलों को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं हैं और इन दलों को एक साथ लेकर चलने के लिए गवर्नेंस का ऐसा एजेंडा होना चाहिए जिस पर सभी दल एकमत व सहमत हों। उन्होंने कहा, यह राष्ट्रनीति के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ने का समय है। विकसित भारत के लिए हमें निरंतर बड़े फैसले लेने हैं।
हालांकि देश का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि क्षेत्रीय दलों की अलग-अलग महत्वाकांक्षाएं होती हैं, जिन्हें एक सूत्र में ले कर आना एक कठिन कार्य है जिसके लिए अधिक परिश्रम और आउट ऑफ द बाक्स वाला नेतृत्व चाहिए होगा। पीएम मोदी अपने लंबे राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के कारण गठबंधन की राजनीति में भी इस क्षमता का बखूबी परिचय देने का सामर्थ्य रखते हैं। उन्होंने कहा, मैं देशवासियों के समक्ष दोहराना चाहता हूं, आप 10 घंटे काम करेंगे, तो मोदी 18 घंटे काम करेगा। आप दो कदम चलेंगे, तो मोदी चार कदम चलेगा। हम भारतीय मिलकर चलेंगे, देश को आगे बढ़ाएंगे।
गठबंधन सरकार के तौर-तरीके
गठबंधन की राजनीति में सरकार में निर्णय लेने के तौर-तरीकों पर उन्होंने कहा, आने वाला समय ग्रीन एरा (हरित युग) का है। आज भी हमारी सरकार की नीतियां प्रगति-प्रकृति और संस्कृति के समागम की हैं। हम ग्रीन इंडस्टि्रलाइजेशन (हरित औद्यौगीकरण) पर निवेश बढ़ाएंगे। ग्रीन एनर्जी हो या ग्रीन मोबिलिटी। हम भारत को सबसे आगे ले जाएंगे। भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनाने के लिए एनडीए सरकार पूरी शक्ति से काम करेगी।
गठबंधन सरकार का एजेंडा
प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण में कहा, हम अपने युवाओं को शिक्षा, रोजगार-स्वरोजगार हर क्षेत्र में सशक्त करते रहेंगे। किसानों के लिए बीज से बाजार तक आधुनिक नीतियों को बनाने का काम और प्राथमिकता पर होगा। दलहन से लेकर खाद्य तेल तक, हम हमारे किसानों को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करते रहेंगे। लेकिन देश में रोजगार और स्वरोजगार तभी पैदा होंगे, जब भारत दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बने और इसके लिए आवश्यक है कि वैश्विक कंपनियां बड़े पैमाने पर निवेश करें तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या गठबंधन की सरकार के दौर में वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश करेंगी?
इस आशंका का भी जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, भारत, ग्लोबल सप्लाई चेन को स्थायित्व और विविधता देना भी अपना दायित्व समझता है। इसलिए भारत आज विश्वबंधु के रूप में सबको गले लगा रहा है। मुझे विश्वास है, मजबूत भारत, मजबूत दुनिया का मजबूत स्तंभ सिद्ध होगा।
इस चुनाव के दौरान भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रिया पर इन्डी गठबंधन और उसके वैश्विक इकोसिस्टम ने न सिर्फ जमकर सवाल उठाए, बल्कि उसे बदनाम भी किया लेकिन चुनाव परिणामों ने जिस तरह से चुनाव आयोग और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की निष्पक्षता को साबित किया, उस पर विपक्ष के किसी भी नेता ने एक भी बयान नहीं दिया। इन्डी गठबंधन के किसी भी नेता ने चुनाव आयोग को शाबासी नहीं दी, लेकिन प्रधानमंत्री ने इस भाषण में साफ कर दिया कि भारत का लोकतंत्र कितना मजबूत और निष्पक्ष है।
गठबंधन सरकार की चुनौती एक अवसर
18वीं लोकसभा में गठबंधन सरकार चलाने की जो चुनौती देश की जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के सामने रखी है, उसे लेकर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं क्योंकि 23 साल से लगातार सरकार चलाने के दौरान यह पहला मौका है, जब नरेंद्र मोदी ऐसी भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसके पास पूर्ण बहुमत नहीं है। नरेंद्र मोदी पर 2014 में भी यह सवाल उठाया गया था कि एक मुख्यमंत्री कैसे पीएम बनने पर देश की विदेश नीति और आर्थिक नीति को दिशा देगा, जिसके पास देश चलाने का कोई अनुभव नहीं है पर 2014 से 2024 तक के दौर में भारत की विदेश नीति और आर्थिक नीति सभी सरकारों से न सिर्फ बेहतर और ताकतवर रही, बल्कि भारत के लिए लाभकारी और हितकारी भी साबित हुई। ऐसे में गठबंधन सरकार की चुनौती भी नरेंद्र मोदी के लिए गठबंधन की सरकारों के लिए एक बड़ी लकीर खींचने का अवसर बनकर आई है और अब तक के उनके फैसले यह साबित करते हैं कि पीएम मोदी चुनाैतियों को अवसर में बदलने की पूर्ण क्षमता रखते हैं।