नई दिल्ली। इतिहास में हम सभी ने वास्को डी गामा और कोलम्बस को तो पढ़ा है और बहुत अच्छी तरह से जानते भी हैं। लेकिन क्या आप ने कभी पंडित नैन सिंह रावत के बारे में सुना है? कुछ जानते हैं उनके बारे में ?
आइये आज विस्तार से जानते है उनके बारे में
पंडित नैन सिंह रावत का जन्म 21 सितम्बर, 1830 को कुमाऊं (उत्तराखंड) के जोहार घाटी के एक गांव में हुआ था । नैन सिंह रावत वह व्यक्ति थे, जिन्होंने काठमांडू से लेकर ल्हासा और मानसरोवर झील का नक्शा पैदल दूरी नापकर बनाया तथा तिब्बत को विश्व मानचित्र पर लेकर आए।
सर्वेयर के पद पर कार्यरत थे
मुन्सियारी के एक छोटे से गांव निवासी नैन सिंह रावत एक सर्वेयर के पद पर ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट में कार्यरत थे ।
दोनों पैरों के बीच में साढ़े 33 इंच लंबी रस्सी बांधते थे
उनकी खासियत ये थी कि – वह दोनों पैरों के बीच में साढ़े 33 इंच लंबी रस्सी बांधते थे। चलते हुए जब दो हजार पग पूरे हो जाते तो उसे एक मील माना जाता था। वो उन व्यक्तियों में से थे जिन्होंने अंग्रेजों के लिये हिमालय के अनेक क्षेत्रों की खोजबीन की।
– मील नापने का भी अपना ही तरीका, 16 साल पैदल घूमते रहे
मुख्य नदी त्सांगपो के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया
उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया। उन्होंने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊंचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया।
यह नैन सिंह की समझदारी का ही नतीजा है कि यह सटीक नक्शा तैयार हुआ। ये सब करने में उनको लगभग 16 साल का समय लग गया था ।
16 साल तक घर नहीं लौटने पर लोगों ने उन्हें मृत तक मान लिया गया था, लेकिन उनकी पत्नी को विश्वास था कि वह एक दिन ज़रूर लौटेंगे। वह हर साल उनके लिए ऊन का एक कोट व पैजामा बनाती थीं। जब 16 साल बाद वह वापस लौटे, तो पत्नी ने उन्हें एक साथ 16 कोट व पैजामे भेंट किए।
गुमनाम क्यों हैं रावत
बड़े अफसोस की बात है कि दुनिया की खोज करने वालों में हमें बस कोलंबस और वास्को डी गामा जैसे नामों के बारे में जानकारी दी जाती है, नैन सिंह रावत के बारे में कोई नहीं बताता।