ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को जाति उत्पीड़न (एट्रोसिटी) से जुड़े मामले की सुनवाई करने वाली सभी अदालतों को वीडियो रिकॉर्डिंग (वीआर) की सुविधा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। कानून के तहत वीआर की सुविधा उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है।
लिहाजा वह शीघ्रता से ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाले सभी कोर्टों को यह सुविधा उपलब्ध कराए। अब भले ही एट्रोसिटी से जुड़े केस की सुनवाई ओपन कोर्ट में चलेगी, लेकिन उसकी रिकॉर्डिंग करना अनिवार्य होगा। हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि जिन अदालतों में अभी यह सुविधा उपलब्ध नहीं है, वे बिना विडियो रिकार्डिंग के सुनवाई को जारी रख सकती हैं। खास कर जब किसी आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दाव पर लगी हो। कोर्ट का यह फैसला तत्काल प्रभाव (प्रोस्पेक्टिव इफेक्ट) से लागू होगा।
‘विक्टिम के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी’
कोर्ट ने यह फैसला नायर अस्पताल की मेडिकल स्टूडेंट पायल तडवी की आत्महत्या से जुड़े केस की सुनवाई के दौरान वीआर के मुद्दे का समाधान करते हुए सुनाया है। चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सारंग कोतवाल की बेंच ने साफ किया कि एट्रोसिटी एक्ट की धारा 15 (ए 10) से जुड़े अपराध की विडियो रिकार्डिंग कोई मार्गदर्शक तत्व (डायरेक्टरी) नहीं बल्कि बाध्यकारी है। अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार प्रतिबंधक) अधिनियम के अर्तगत इस धारा के तहत अदालत में चलने वाली कार्यवाही को न्यायिक कार्यवाही माना जाएगा।
विक्टिम और गवाहों के अधिकारों से जुड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए रिकॉर्डिंग की व्यवस्था आवश्यक है। एट्रोसिटी अधिनियम के अंतर्गत बेल की सुनवाई को भी न्यायिक कार्यवाही माना जाएगा। फैसले के बाद राज्य के महाधिवक्ता बिरेंद्र सराफ ने कहा कि मौजूदा मामला समाज कल्याण और हित से जुड़ा है। इसलिए सरकार शीघ्रता से विडियो रिकॉर्डिंग की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाएगी।
क्या है तडवी केस
2019 में तडवी की आत्महत्या का मामला सामने आया था। तडवी ने कथित रूप से जातिसूचक टिप्पणी से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी।
मामले में अस्पताल के तीन डॉक्टरों हेमा आहूजा, अंकिता खंडेलवाल और भक्ति मेहरे को गिरफ्तार किया गया था। तीनों आरोपी फिलहाल ज़मानत पर हैं। ज़मानत पर सुनवाई के दौरान यह प्रश्न हुआ था कि एट्रोसिटी के केस के किसपड़ाव पर विडियो रिकॉर्डिंग की जाए। क्या यह अनिवार्य है। इन तमाम प्रश्नों के उत्तर के लिए मामले को बड़ी बेंच के सामने रेफर किया गया था।