आस्था भट्टाचार्य
बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से नेविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-01 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
इसरो ने सुबह 10 बजकर 42 मिनट पर 51.7 मीटर ऊंचे रॉकेट से इसे लॉन्च किया। लॉन्च के 18 मिनट बाद रॉकेट से पेलोड अलग हो गया। इसने एनवीएस-01 सैटेलाइट को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित किया। इसके बाद इंजीनियरों ने सैटेलाइट को सही ऑर्बिट में प्लेस करने के लिए ऑर्बिट-रेजिंग मैनुवर परफॉर्म किए।
इससे हमारा नेविगेशन सिस्टम और मजबूत होगा। सैटेलाइट से हमारी सेनाओं को दुश्मनों के ठिकानों की सटीक जानकारी मिलेगी। इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने बताया कि हमने पांच नेक्स्ट जेनरेशन ‘नाविक’ सैटेलाइट्स एनवीएस छोड़ने की तैयारी की है जिसमंें एनवीएस-01 उनमें से एक है।
3 फायदे जो ‘नाविक’ से भारत को मिलेंगे
जोमैटो और स्विगी जैसे फूड डिलीवरी और ओला-उबर जैसी सर्विसेज नेविगेशन के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करती हैं। ‘नाविक’ इन कंपनियों के लिए नेविगेशन सब्सक्रिप्शन कॉस्ट को कम कर सकता है और एक्यूरेसी बढ़ा सकता है। ‘नाविक’ से अमेरिका के जीपीएस पर निर्भरता कम होगी और इंटरनेशनल बॉर्डर सिक्योरिटी ज्यादा बेहतर होगी। चक्रवातों के दौरान मछुआरों, पुलिस, सेना और हवाई/जल परिवहन को बेहतर नेविगेशन सिक्योरिटी मिलेगी। यह ट्रैवल और टूरिज्म इंडस्ट्री को मदद कर सकती है।
7 सैटेलाइट का कॉन्सटेलेशन है ‘नाविक’
इसरो ने नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (एनएवीआईसी) नाम के एक रिजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को डेवलप किया है। 7 सैटेलाइट का कॉन्सटेलेशन 24×7 ऑपरेट होने वाले ग्राउंड स्टेशनों के साथ मिलकर काम करता है। ‘नाविक’ को पहले इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम के रूप में जाना जाता था। नाविक का अभी का वर्जन एल5 और एस बैंड के साथ कॉम्पेटिबल है। यह इंटरनेशनल फ्रीक्वेंसी कोऑर्डिनेशन और कॉम्पेटिबिलिटी के अनुसार है। एल1 बैंड सिविलियन सेक्टर में तेजी से पैठ बनाने में मदद करेगा। एनवीएस-01 और आगे के सभी सैटेलाइट में एल1 बैंड होगा।
नाविक दो सर्विसेज प्रोवाइड करता है-
1. सिविलियन के लिए स्टैंडर्स पोजीशन सर्विस यानी एसपीएस
2. स्ट्रैटजिक यूजर्स के लिए रेस्टि्रक्टेड सर्विस यानी आरएस
‘नाविक’ को क्यों डेवलप किया गया?
देश में सिविल एविएशन सेक्टर की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए ये सिस्टम डेवलप किया गया है। ये नेटवर्क भारत और उसकी सीमा से 1500 किमी तक के क्षेत्र को कवर करता है। इसका इस्तेमाल टेरेस्टि्रयल, एरियल और मरीन ट्रांसपोर्टेशन, लोकेशन बेस्ड सर्विसेज, पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग और साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जाता है। ‘नाविक’ की पोजीशन एक्यूरेसी सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर और सैन्य उपयोग के लिए 0.5 मीटर है। इसकी मदद से एनिमी टारगेट पर ज्यादा एक्यूरेसी से अटैक किया जा सकता है। वहीं ये एयरक्राफ्ट और शिप के साथ रोड पर चलने वाले यात्रियों की मदद कर सकता है। गूगल की तरह विजुअल और वॉइस नेविगेशन फीचर भी इसमें मिलते हैं।
कारगिल युद्ध में अमेरिका ने मदद करने से कर दिया था इनकार
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत सरकार ने घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की पोजीशन जानने के लिए अमेरिका से मदद मांगी थी। तब अमेरिका ने जीपीएस सपोर्ट देने से मना कर दिया था। इसके बाद से ही भारत अपना नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम बनाने में जुट गया था।
इंडिया: नाविक
अमेरिका: जीपीएस
यूरोप: गैलीलियो
रूस: ग्लोनास
चीन: बेईडोऊ
जापान: क्यूजेडएसएस