डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। देश के वैज्ञानिकों ने 128 साल पुरानी बीमारी का तोड़ तलाश लिया है। पिछले कई वर्षों से चल रहे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने शिगेला बैक्टीरिया से लड़ने वाला पहला स्वदेशी टीका खोजा है, जो बैक्टीरिया के 16 उप स्वरूपों पर असरदार है। पोलियो की तरह इसकी खुराक भी मुंह से दी जा सकती है। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने जानकारी दी है कि भारत में कई साल से नवजात शिशुओं में शिगेलोसिस संक्रमण का जोखिम बना हुआ है जो शिगेला बैक्टीरिया की वजह से होता है। दुनिया में पहली बार 1896 में इस बीमारी की पहचान जापान के माइक्रोबायोलॉजिस्ट कियोशी शिगा ने की थी जिसके चलते इसे शिगेला नाम मिला।
कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण
यह रोटा वायरस के बाद दूसरा और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। यह संक्रमण दूषित भोजन या पानी पीने से हो सकता है।
आईसीएमआर के कोलकाता स्थित
राष्ट्रीय जीवाणु संक्रमण अनुसंधान संस्थान की टीम पिछले कई साल से इस बीमारी के टीके की खोज में जुटी थी जिसमें अब सफलता हासिल हुई है।
फिलहाल आईसीएमआर ने इस टीके के उत्पादन और व्यवसाय के लिए देश की प्राइवेट कंपनियों से प्रस्ताव मांगा है।
जानलेवा बीमारी
दरअसल शिगेला नामक बैक्टीरिया के एक जींस के कारण शिगेलोसिस या फिर शिगेला संक्रमण इंसान की आंतों को चपेट में लेता है। संक्रमित होने के एक से दो दिन के भीतर ही मरीज में लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं। उल्टी, दस्त, कमजोरी जैसे डायरिया के हालात दिखाई पड़ने लगते हैं जिसके गंभीर परिणाम भी मरीजों पर पड़ते हैं। यह स्थिति जानलेवा भी होती है। भारत में बीते कई वर्षों से अलग अलग समय पर इसके मामले सामने आए हैं।
अस्पतालों में सबसे ज्यादा मामले
आईसीएमआर की 2022 में जारी एंटीमाइक्रोबियल सर्विलांस रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में देश के 39 अस्पतालों में जिन बैक्टीरिया के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए उनमें शिगेला भी शामिल है। 49.5 प्रतिशत नमूनों में साल्मोनेला और शिगेला बैक्टीरिया पाया गया। आईसीएमआर ने बताया कि यह टीका शिगेला बैक्टीरिया का एक मल्टी सीरोटाइप विकल्प है जो सभी 16 उप स्वरूपों पर असरदार है।
चार प्रजाति और 50 तरह के सीरो टाइप की पहचान
इनमें एस. डिसेन्टेरिया 1 से लेकर 14 एस. फ्लेक्सनेरी और एस. सोनेई उप स्वरूप शामिल हैं। वैज्ञानिक दल के मुताबिक शिगेला की चार प्रजाति और 50 तरह के सीरो टाइप अब तक दुनिया भर में पहचाने गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा आक्रामक स्वरूपों के खिलाफ भारत का टीका बनाया है।