पीएम मोदी की सरकार द्वारा देश में किए गए सुधारों से लालफीताशाही का दायरा बहुत कम हुआ है और निवेश के लिए एक बेहतर माहौल बना है। डिजिटल क्रांति भी यहां तेजी से जारी है जिससे देश की तस्वीर में तेजी से परिवर्तन आ रहा है।
वर्तमान में आर्थिक मोर्चे पर आए अच्छे परिणाम के लिए भारत और नरेंद्र मोदी सरकार ही इस समय देश और विदेश में चर्चा के केंद्र में हैं। इस उपलब्धि से दुनिया में भारत की ताकत स्पष्ट दिखाई दे रही है और आंकड़े भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं।
विनिर्माण गतिविधियों, कृषि, खनन,निर्माण क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन एवं निजी निवेश के दम पर देश की अर्थव्यवस्था उम्मीद से बेहतर परिणाम दिखा रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद यानी कि जीडीपी 7.2 फीसदी की दर से बढ़ी है। वहीं जनवरी-मार्च यानी चौथी तिमाही में यह 6.1 फीसदी रही। ऐसा तब हुआ है जब पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी की आहट और विकास की दर घटने का अनुमान लगाया जा रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के विगत दिनों जारी आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में यह 4.5 फीसदी और जुलाई-सितंबर में 6.2 फीसदी रही थी। अप्रैल-जून 2022 में जीडीपी वृद्धि दर 13.1 फीसदी रही थी। इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर चीन की 4.5 फीसदी की वृद्धि दर से आगे निकल गई है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरण ने यह अनुमान व्यक्त किया है कि चालू वित्तीय वर्ष में यह वृद्धि दर 6.5 फीसदी रह सकती है। जीडीपी में 7.2 फीसदी की वृद्धि को भारतीय अर्थव्यवस्था के परिवेश में उम्मीद से बढ़कर कहा जा रहा है।
अमेरिकी फर्म मॉर्गन स्टेनली के अलावा मल्टीनेशनल ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्स ग्रुप हो या ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट, सभी भारत की प्रगति की ओर ही इशारा कर रहे हैं। हाल ही में मॉर्गन स्टेनली रिसर्च की रिपोर्ट ‘इंडिया इक्विटी स्ट्रैटेजी एंड इकोनॉमिक्स : एक दशक से भी कम समय में भारत कैसे बदल गया है’ नाम से जारी हुई है। इसमें कहा गया है कि 10 साल की छोटी सी अवधि में भारत ने दुनिया में अपनी स्थिति अत्यंत मजबूत की है। इस दौरान वृहद व बाजार परिदृश्य के लिए महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
आर्थिक परिदृश्य पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि मजबूत आर्थिक नीतियों और खाने-पीने सहित अन्य मोर्चों पर कीमतों में नरमी के कारण 2023-2024 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.5 फीसदी रह सकती है। आरबीआई के अनुसार महंगाई का खतरा कम हुआ है। हालांकि वैश्विक दृष्टिकोण से घरेलू आर्थिक गतिविधियों को निराशा उत्पन्न करने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है किंतु लचीली घरेलू वित्तीय स्थिति से विकास के नए अवसर भी बने रहने की प्रबल संभावना है। आरबीआई के अनुसार मौद्रिक नीति यह सुनिश्चित करने के लिए है कि वृद्धि को समर्थन देने के साथ ही महंगाई लगातार तय लक्ष्य यानी 2 प्रतिशत की घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के करीब ही रही।
इस बीच विश्व आर्थिक मंच का भी कहना है की भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6 फीसदी रह सकती है। यह दुनिया में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज होगी। देश में बहुत अधिक निवेश आएगा और बड़े स्तर पर नौकरियां भी पैदा होंगी। विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष बोर्गे ब्रेंडे के अनुसार भारत इस समय ‘स्नो-बॉल’ प्रभाव का सामना कर रहा है। इसका मतलब यह होता है कि किसी एक घटना की वजह से कई बड़ी घटनाओं का होना। ‘स्नो-बॉल’ जब लुढ़कती है तो यह बड़ी होती जाती है। भारत के साथ भी इस समय यही हो रहा है। इस प्रभाव से भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बड़ी होती जाएगी। इस प्रक्रिया में बहुत अधिक निवेश और बहुत अधिक नौकरियां पैदा होंगी। विश्व आर्थिक मंच के अध्यक्ष के अनुसार वह भारत की आर्थिक वृद्धि के बारे में अत्यधिक आशावादी हैं। हालांकि वैश्विक वृद्धि को लेकर उनकी राय इसके विपरीत है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि विकासशील देशों को भारत से बहुत कुछ सीखना है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां एक ऐसा खुला समाज है जिसमें उद्यमियों और नवप्रवर्तकों के लिए जगह है और खुलकर अपनी बात रखने की आजादी भी है।
भारत के आर्थिक परिवेश के संदर्भ में आईं रिपोर्टों में इस बात की भी प्रशंसा की गई है कि भारत इस समय जी20 का अध्यक्ष और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। पीएम मोदी की सरकार द्वारा देश में किए गए सुधारों से लालफीताशाही का दायरा बहुत कम हुआ है और निवेश के लिए एक बेहतर माहौल बना है। डिजिटल क्रांति भी यहां तेजी से जारी है जिससे देश की तस्वीर में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था को तेजी प्रदान करने के लिए भारत में स्टार्टअप का व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र भी विद्यमान है और यह तेज गति से आगे बढ़ रहा है। इस तरह भारत में किसी भी अन्य विकासशील देशों की तुलना में तरक्क ी एवं विकास करने का एक बिल्कुल अलग ही माहौल है।
इसके अलावा विकास की गति को कायम रखने के लिए किसी भी देश को अन्य बातों पर भी ध्यान देना होता है। किसी भी देश के सतत विकास में निरंतरता बनाए रखने के लिए कई अन्य व्यवस्थाओं पर भी समुचित निवेश करने की जरूरत होती है। इसके लिए निकट भविष्य में भारत को विशेष रूप से जिन अन्य बातों पर ध्यान देना चाहिए वे हैं- बुनियादी ढांचा, विभिन्न क्षेत्रों को बेहतर तरीके से जोड़ना और शिक्षा एवं कौशल विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना। तभी देश और उसके नागरिक इन सुधारों का पूरी तरह से लाभ उठा सकेंगे।
साथ ही अब यह भी कहा जा रहा है कि ‘यह भारत 2013 की तुलना में बिल्कुल अलग भारत है। भारत ने मैक्रो और माइक्रो स्तर पर मार्केट आउटलुक के लिए महत्वपूर्ण सकारात्मक परिणामों के साथ विश्व व्यवस्था में स्थान हासिल किया है। मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में जीएसटी संग्रह की अहम भूमिका है जिसके ग्राफ में पिछले कुछ वर्षों में लगातार वृद्धि दिखी है। डिजिटल लेनदेन अब सकल घरेलू उत्पाद का 76 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। चेतन अहया, डेरिक वाई काम, क्यूशा पेंग और जोनाथन चेउंग द्वारा लिखित ‘एशिया इकोनॉमिक्स : द व्यूपॉइंट: एड्रेसिंग द पुशबैक टू आवर कंस्ट्रक्टिव व्यू’ नामक एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को चक्रीय और संरचनात्मक दोनों तरह से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘हम देख रहे हैं कि घरेलू मांग में मजबूत रुझानों को बनाए रखने के लिए अच्छी बैलेंस शीट है। वृहद स्थिरता में सुधार का मतलब है कि मौद्रिक नीति को प्रतिबंधात्मक नहीं होना पड़ेगा, जिससे आर्थिक विस्तार जारी रहेगा।