ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। तीसरा ‘वायस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन उन विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुआ है, जो आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं और जो एक मजबूत, न्यायसंगत और संतुलित विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं। इस बार की चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नई और महत्वपूर्ण पहल ‘ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट’ यानी ‘वैश्विक विकास समझौते’ का प्रस्ताव रखा। आइए, विस्तार से समझते हैं कि यह क्या है और इसका महत्व क्यों है।
पहल का उद्देश्य
प्रधानमंत्री मोदी ने इस पहल को लेकर कहा कि इसका उद्देश्य विकासशील और गरीब देशों को विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज के बोझ से मुक्त रखना है। आपको याद होगा कि हाल के कुछ वर्षों में कई विकासशील देश, खासकर ग्लोबल साउथ के देश, भारी कर्ज के जाल में फंस गए हैं।
आर्थिक दबाव में डालने की कोशिशें
इन देशों को विकास के नाम पर भारी-भरकम कर्ज देकर, आर्थिक दबाव में डालने की कोशिशें की गई हैं। खासकर, चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ जैसी योजनाओं के तहत दिए गए कर्ज के कारण, कई देश गंभीर आर्थिक संकट में घिर गए हैं।
चुनौतियों का सामना
इन्हीं चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने ‘ग्लोबल डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट’ का प्रस्ताव रखा, जो विकासशील देशों को उनकी विकास प्राथमिकताओं के आधार पर सस्ता और न्यायसंगत वित्तीय विकल्प प्रदान करेगा।
योजना में भारत का योगदान
प्रधानमंत्री मोदी ने इस पहल के तहत भारत की ओर से 35 लाख डॉलर की शुरुआती मदद की घोषणा की है। यह राशि एक फंड के रूप में दी जाएगी, जिससे विकासशील देशों को कर्ज के बिना, उनकी आवश्यकताओं के अनुसार वित्तीय सहायता मिलेगी। इसके अलावा, भारत ने 25 लाख डॉलर का एक विशेष फंड स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है। इस फंड का उद्देश्य इन देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करना और उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाना है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस कॉम्पैक्ट को ‘मानव केंद्रित’ और ‘बहुआयामी’ पहल बताया। इसका मतलब यह है कि इस योजना के केंद्र में इंसान की भलाई है, न कि सिर्फ आर्थिक लाभ। यह पहल ग्लोबल साउथ के देशों की स्व-निर्धारित विकास प्राथमिकताओं से प्रेरित होगी। पीएम मोदी ने कहा कि यह पहल उन देशों के लिए है, जो अपनी विकास यात्रा में किसी भी प्रकार के बाहरी दबाव के बिना, स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ना चाहते हैं। आपकी जानकारी में यह भी रहना चाहिये कि इस सम्मेलन में भारत ने चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया था।
भारत की कूटनीतिक नीति का हिस्सा
इस पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि यह निर्णय भारत की कूटनीतिक नीति का हिस्सा था और इसका उद्देश्य उन देशों के साथ सहयोग करना है, जो वाकई में विकासशील देशों के सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं।
एकजुट होकर काम करें
जयशंकर ने यह भी कहा कि ग्लोबल साउथ के देशों को एकजुट होकर काम करना चाहिए ताकि वे आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सकें। जयशंकर ने इस मौके पर एक और महत्वपूर्ण बात उठाई, वह थी वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता।