आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। भारत ने दुनिया में पहली बार ड्रोन के जरिए प्राथमिक अस्पतालों तक रक्त पहुंचाने व टीबी इलाज अवधि को कम करने में कामयाबी हासिल की है। अब तक पांच परीक्षणों में कामयाबी हासिल करने वाला यह दुनिया का इकलौता देश है।
ग्रामीण, खासकर दुर्गम स्थल के निवासियों में टीबी इलाज अवधि को कम करने में ड्रोन ने अहम भूमिका निभाई है। ये दो पायलट प्रोजेक्ट सरकार की उस चार लेयर नीति का हिस्सा हैं जिसे ड्रोन परीक्षण के लिए कुछ ही समय पहले अनुमति दी गई। अब केंद्र की ओर से राज्यों के मार्गदर्शन के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में ड्रोन प्रयोग के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं।
अप्रैल माह में शुरू हुआ ट्रायल
जानकारी के अनुसार भारत में पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल कर 2020 व 2021 में कोरोना टीके और दवाओं को दुर्गम स्थानों तक पहुंचाया गया। इसमें सफलता के बाद सरकार ने चार और नए कामों के लिए ड्रोन परीक्षण का फैसला लिया। इसके तहत वैज्ञानिकों की टीम भी गठित हुई। इनका पहला कार्य एक से दूसरे अस्पताल तक रक्त पहुंचाना था। रक्त में प्लेटलेट्स सहित सभी घटकों को नुकसान पहुंचाए बगैर ड्रोन से आपूर्ति के लिए दिल्ली और नोएडा को चुना गया। इस साल अप्रैल माह में ट्रायल शुरू हुआ जिसके परिणाम हाल ही में जारी हुए हैं।
– हर अध्ययन के बाद तैयार हो रही एसओपी
दूसरा परीक्षण तेलंगाना के यद्रादी इलाके में इसी साल शुरू हुआ। यहां के दूरदराज गांव से टीबी संदिग्ध मरीज का सैंपल लेकर बड़े अस्पताल में जांच के लिए ड्रोन से भेजा गया। एक ही दिन में सैंपल जाने के बाद शाम तक रोगी को रिपोर्ट आई और तीन माह की दवाएं भी ड्रोन से प्राप्त हुईं। तीन से चार महीने तक रोज यह अभ्यास किया गया। इसके आंकड़े वैज्ञानिकों तक पहुंच गए हैं।
आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुमित अग्रवाल ने बताया, ‘भारत में ऐसे कई गांव हैं, जहां से जिले तक पहुंचने में लोगों को 20 से 30 घंटे तक का समय लगता है। इसी समय को कम करने, आखिरी छोर तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने, मरीज की तुरंत जांच व इलाज शुरू करने के लिए ड्रोन की एक बड़ी भूमिका सामने आई है।’
टीबी पर सबसे अनूठा प्रयोग
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि टीबी और ड्रोन को लेकर यह अनूठा प्रयोग है। एक गांव में आशा कर्मचारी किसी संदिग्ध को टीबी की जांच कराने की सलाह देती है तो अमूमन बड़े शहर तक जाने और जांच कराने में कम से कम तीन-चार दिन का समय लगता है। साथ ही उसका खर्च भी बढ़ता है। इसके अलावा, जांच कराने के लिए वह अपना मन बनाने में भी समय लेता है। तीन से चार महीने तक चलने वाले इस ड्रोन परीक्षण में इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रखा गया और अब हमारे पास प्रारंभिक आंकड़े हैं। इनका हमारी टीम अध्ययन कर रही है। फिलहाल इतना काफी है कि दुर्गम स्थल या ग्रामीणों में ड्रोन के जरिए टीबी की इलाज अवधि को कम करने में कामयाबी मिली है।
जानकारी मिली है कि ड्रोन के बाकी दो परीक्षण के लिए दिल्ली से वैज्ञानिकों का दल हिमाचल प्रदेश के केलांग जाएगा। लाहौल स्पीति जिला स्थित सात से आठ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और केलांग जिला अस्पताल के बीच ड्रोन परीक्षण होगा। यह पूरा इलाका दुर्गम है, जहां हवा का दबाव भी कम रहता है।