भारतीय लोकतंत्र महान भारत के कल्याण के लिए वचनबद्ध है। प्रधानमंत्री चाहे जो रहे हों , सबने अपने-अपने दृष्टिकोण के अनुसार जन-कल्याण और देशोत्थान के कार्य किए। यही कारण है कि देश आगे बढ़ा और आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश औद्योगिक दृष्टि से बहु-विकसित, वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत आगे, टेक्नोलोजीकल दृष्टि से विशिष्ट और राजनीतिक दृष्टि से स्थिर है और देश का चहुंमुखी विकास भारतीय लोकतंत्र की जीवंत उपलब्धि है।
इसकी जीवन्तता को बढ़ा रहा है पी एम मोदी का काम करने का तरीका। पीएम मोदी ने जो कहा, उसे करके दिखाया है। भारत आज लोकतांत्रिक मूल्यों को निभाने की सामर्थ्य भी रखता है। सदियों की विदेशी सत्ता भी भारत और भारतीयों में लोकतंत्र की भावना को खत्म नहीं कर सकी क्योंकि लोकतंत्र इस देश के मन, मस्तिष्क और आचरण में बसने वाली भावना है। दुनिया जानती और मानती है कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ भारत लोकतांत्रिक मूल्यों को निभाने का दम खम भी रखता है। विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारतीय लोकतंत्र के समर्थक हैं, लोकतंत्र के रथ को खींचने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक हैं। अमेरिका द्वारा आयोजित दूसरे डेमोक्रेटिक समिट में 110 राष्ट्राध्यक्षों के सामने पीएम मोदी ने अपने वर्चुअल संबोधन में जिस तरह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती, विराट वैभव और अन्य देशों के लिए अनुकरणीय सोपानों का उल्लेख किया, वह बेमिसाल है, अतुलनीय है। उन्होंने दुनिया को स्मरण कराया कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें 2500 साल पुरानी हैं। इसकी लोकतांत्रिक भावना का जिक्र दसवीं सदी के शिलालेख उत्तरामेरूर में वर्णित है।
पीएम मोदी ने खम ठोंक कर यह भी पूरी दुनिया को बताया कि सदियों की विदेशी सत्ता भी भारतीयों में लोकतंत्र की भावना को खत्म नहीं कर सकी। आजादी के बाद इस भावना ने पिछले 75 साल के दौरान दुनिया में भारतीय लोकतंत्र का डंका बजाया। भारत ने सबको बताया और सिखाया कि लोकतंत्र सिर्फ एक अमूर्त ढांचा नहीं, बल्कि मन, मस्तिष्क और आचरण में बसने वाली भावना है, देश की आत्मा है। पीएम मोदी ने दुनिया को एक बार फिर स्मरण कराया कि यह सबने देखा है कि भारत ने कभी चुनौतियों से हार नहीं मानी, हर विपरीत परिस्थिति को अवसर में बदलना उसे आता है। सरकार का हर निर्णय जनमानस से जुड़ा नजर आता है, सरकार की हर पहल भारत के नागरिकों के सामूहिक प्रयासों से संचालित होती है। आदर्श लोकतंत्र का क्या इससे बेहतर, इससे अनुकरणीय उदाहरण कहीं और मिल सकता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे शिखर सम्मेलन को लोकतंत्र विस्तार के बड़े प्लेटफॉर्म में बदला। विश्व के कई देशों में छिछला लोकतंत्र है, कुछ राष्ट्र अय्यार की तरह छद्म लोकतंत्र के सहारे गुमराह कर रहे हैं। भारत के पड़ोस में तो हालत और भी बुरी है। बात शुरू करते हैं पाकिस्तान से जिसका कभी भी लोकतंत्र से दूर दूर तक का नाता नहीं रहा। छमाही या वार्षिक त्योहार की तरह वहां चुनाव होते हैं, सरकार बनती है, सेना और आईएसआई की कठपुतली सामने आती है, थोड़े दिन लोकतंत्र की नौटंकी दिखा कर सेना पिटारा समेट लेती है यानी लोकतंत्र का शेष अगले एपिसोड में। अगली कड़ी के लिए पांच से दस साल इंतजार कीजिए।
अमेरिका ने लोकतंत्र पर दूसरे डेमोक्रेटिक समिट के लिए कई देशों को निमंत्रण नहीं दिया। कारण यह बताया कि वहां लोकतांत्रिक स्थिति अच्छी नहीं है जबकि पाकिस्तान को आमंत्रित करने से अमेरिका को यह बताना चाहिए था कि वहां लोकतंत्र की स्थिति कब अच्छी रही। उसे तो पिछले साल भी सम्मेलन का न्योता दिया था, पर पाकिस्तान न पिछली बार आया और न इस बार। पिछली बार चीन से डर कर वह सम्मेलन से किनारा कर गया था। इस बार भी चीन और तुर्की के आगे घुटने टेकते हुए सम्मेलन से दूर रहा। पाकिस्तान के कदम पीछे खींचने पर चर्चाओं का दौर गर्म है। कहा जा रहा है कि मानवाधिकार पर विश्व भर की आलोचनाओं का लगातार केंद्र बनने वाले पाकिस्तान में विश्व समुदाय का सामना कर पाने की हिम्मत नहीं थी।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं, मूल्यों, मानकों, मान्यताओं पर पाकिस्तान से विश्व को कभी कोई अपेक्षा ही नहीं करनी चाहिए क्योंकि अलग देश बनने के बाद पाकिस्तान में लोकतंत्र के नाम पर सिर्फ मजाक ही हुआ है। वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था कभी पनप ही नहीं पाई।
डेमोक्रेटिक मीट के लिए अमेरिका ने चीन और तुर्की को आमंत्रित नहीं किया। आज के दौर में ये दोनों देश पाकिस्तान के घोषित आका, गॉडफादर माने जाते हैं। दोनों को हमारा पड़ोसी किसी कीमत पर नाराज नहीं कर सकता। सम्मेलन के तीन मुख्य बिंदुओं, लोकतंत्र को मजबूत बनाना और अधिनायकवाद से बचाना, भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई और मानवाधिकारों के प्रति सम्मान, को पूरी अहमियत मिलनी चाहिए। भ्रष्टाचार मुक्त लोकतंत्र और मानवाधिकारों को वही गौरव पूरी दुनिया में मिलना चाहिए जो भारत में मिलता है। वही गौरव पूरी दुनिया में मिलना चाहिए, जो भारत में मिलता है।
तभी डेमोक्रेसी पर वार्ता या शिखर सम्मेलन का प्रयोजन सार्थक होगा। इस कार्य में आयोजक महत्वपूर्ण नहीं, अहम यह है कि इस विषय पर रोल मॉडल कौन है, कौन अनुकरणीय है, कौन ऐसा है जो व्यवस्था को दिशा प्रदान करने में सक्षम है, कौन लोकतंत्र के रथ को द्रुतगति से खींच सकता है।
पीएम मोदी जो कहते हैं, उसे करके दिखाते हैं। उनके प्रभावशाली नेतृत्व में भारत ने विकास और लोकतंत्र, दोनों मोर्चों पर लंबी छलांग लगाई है। भारत में लोकतंत्र इस बात पर आधारित है कि हर इंसान की जरूरतें और आकांक्षाएं समान रूप से महत्वपूर्ण हैं, सबका साथ-सबका विश्वास उसका दर्शन है। समावेशी विकास के लिए एक साथ प्रयास करना भारतीय लोकतंत्र की खास पहचान है।