विनोद शील
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस और ऑस्टि्रया के अपने तीन दिवसीय दौरे के बाद स्वदेश लौट आए। स्वयं पीएम मोदी के शब्दों में कहें तो रूस और ऑस्टि्रया की ये यात्राएं इन देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने का एक शानदार अवसर साबित हुई हैं जिनके साथ भारत की पुरानी दोस्ती है। इन देशों में रहने वाले भारतीयों के साथ मोदी की बातचीत से यह दौरा और खास बन गया क्योंकि पीएम ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर किए गए पोस्ट के माध्यम से कहा था, “मैं स्वयं इन देशों में रहने वाले भारतीय समुदाय के साथ बातचीत करने के लिए भी उत्सुक हूं।”
रूस के यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू करने के बाद से पीएम मोदी की यह रूस तथा उनके तीसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा थी। पीएम मोदी ने अपनी यात्रा के अंतिम चरण में ऑस्टि्रया में भारत और ऑस्टि्रया की साझा विरासत का जिक्र किया। भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि हजारों सालों से हम दुनिया के साथ ज्ञान साझा करते रहे हैं। भारत ने दुनिया को शांति का संदेश दिया है। हम सीना तानकर दुनिया से कह सकते हैं कि हमने ‘युद्ध’ नहीं ‘बुद्ध’ दिए हैं। उल्लेखनीय है कि गत 41 सालों में पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री ऑस्टि्रया के दौरे पर गया।
इसके अलावा रूस में यूक्रेन युद्ध को लेकर भी पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को फिर बड़ी नसीहत दी। उन्होंने कीव में शिशु अस्पताल पर रूसी हमले में कई बच्चों की मौत होने पर गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब निर्दोष बच्चे मारे जाते हैं तो दिल दहल जाता है। इससे पहले भी उन्होंने कहा था-यह युग युद्ध का नहीं है। इस बार भी मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से साफ शब्दों में कहा कि युद्ध और गोलियों के बीच किसी समस्या का समाधान नहीं निकाला जा सकता। रूस दौरे की खास बात यह भी रही कि पीएम मोदी को रूस के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द अपोस्टल’ से सम्मानित किया गया। यही नहीं राष्ट्रपति पुतिन ने रूसी सेना में धोखे से भर्ती किए गए भारतीयों को भी स्वदेश भेजने पर सहमति जताई।
जिनपिंग के लिए भेजा था निचले स्तर का नेता
इससे पहले पीएम मोदी के 8 जुलाई को दो दिवसीय यात्रा के लिए रूस पहुंचने पर एयरपोर्ट पर स्वागत के दौरान ही जो विशेष तवज्जो दी गई, उससे चीन को भी साफ संदेश पहुंच गया जो संभवत: शी जिनपिंग को अच्छा न लगे। पीएम मोदी का व्यक्तिगत रूप से स्वागत करने के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री मांतुरोव उन्हें कार में साथ लेकर होटल तक गए। ये प्रोटोकॉल इस बात का एक मजबूत संकेत देता है कि भारत के साथ रूस अपने संबंधों को कितना महत्व देता है जबकि चीनी राष्ट्रपति की यात्रा के समय निचले स्तर के उप प्रधानमंत्री ने शी जिनपिंग का स्वागत किया था।
संतुलन पर ध्यान
निश्चित रूप से पीएम मोदी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी मॉस्को यात्रा पर पश्चिम की पैनी नजर थी। ऐसे में मोदी सरकार ने संतुलन स्थापित करने की कोशिश की है। ये बताता है कि भारत शायद अमेरिका को नाराज नहीं करना चाहता। अमेरिका में एक बहुत बड़ा भारतीय प्रवासी समुदाय रहता है, जो मोदी का तगड़ा समर्थक है और एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है। मोदी का मॉस्को दौरा तीसरी बार प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद हुआ है, तो वहीं पुतिन पांचवीं बार राष्ट्रपति चुने गए हैं।
भारत के लिए रूस में मौका
दरअसल भारतीय व्यवसायों को रूस में नए अवसरों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। भारत से दोस्ती का असर रूस की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक पड़ा है। ‘रशिया टुडे’ की रिपोर्ट के अनुसार प्रतिबंधों का सामना करने के बाद भी रूस उच्च-मध्यम आय से उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गया है। विश्व बैंक ने वृद्धि के कारण रूस को शीर्ष आय की श्रेणी में रखा है। इन कारकों ने असल सकल घरेलू उत्पाद में 3.6 व नॉमिनल जीडीपी में 10.9 प्रतिशत की वृद्धि में योगदान दिया।
– अपनी सेना में धोखे से भर्ती भारतीय वापस भेजेगा रूस
चीनी मीडिया ने की भारत की तारीफ
ची न के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत की विदेश नीति की जमकर तारीफ की है। उसने कहा कि भारत ने अमेरिका की परेशान करने वाली हरकतों के बावजूद रूस के साथ संबंधों को मजबूत किया है। एक लेख में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की कुशल कूटनीति की सराहना की गई है। अखबार ने लिखा, यह काफी आश्चर्यजनक है कि अमेरिका का दुनिया भर में इतना प्रभाव है, जबकि वह वैश्विक आबादी का 5 प्रतिशत से भी कम प्रतिनिधित्व करता है। उसके शक्तिशाली होने की वजह फूट डालो और राज करो की नीति है। उसकी यह शक्ति अब तेजी से कम हो रही है, जैसा कि पीएम मोदी की रूस यात्रा सहित कई भू-राजनीतिक घटनाओं से स्पष्ट है।
रूस के लिए भारत संकटमोचक
दौरे के पहले दिन पीएम मोदी जब निजी मुलाकात के लिए रूसी राष्ट्रपति के सरकारी निवास पर पहुंचे तो व्लादिमीर पुतिन ने गले लगाकर उनका स्वागत किया। पीएम मोदी ने उन्हें अपना परम मित्र बताया। पुतिन के लिए भी मोदी बहुत खास हैं क्योंकि पीएम मोदी को पुतिन यूं ही गले नहीं लगा रहे थे। इसकी एक बड़ी वजह तो यह है कि भारत एक प्रकार से रूस के लिए संकटमोचक बन गया है। 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से रूस कठोर पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझ रहा है। रूसी गैस के सबसे बड़े आयातक यूरोप ने अपने हाथ समेट लिए हैं।
रूस के साथ व्यापार करने पर प्रतिबंध के खतरे हैं। इसने पहले से ही कमजोर रूसी अर्थव्यवस्था को और मुश्किल में डाल दिया है। रूस की अर्थव्यवस्था के लिए भारत संजीवनी बनकर आया, जब उसने पश्चिमी दबाव के आगे न झुकते हुए रूसी तेल और कोयले के आयात में वृद्धि करने का फैसला किया। इससे भारत में रूसी निर्यात 50 अरब डॉलर को पार कर गया। इसका फायदा भारत ने उठाया है। रूस के सस्ते तेल ने भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही मोदी सरकार को जनता की नाराजगी दूर करने में भी मदद की। लंबे समय से भारत में पेट्रोलियम की कीमतों को स्थिर रखने में रूसी तेल की बड़ी भूमिका रही है। खासकर, इसने चुनाव के समय में मोदी सरकार को बड़ी राहत दी। यही नहीं, हर स्तर पर भारत और रूस के संबंध सदियों पुराने हैं और मुश्किल समय में रूस हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है।