ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्न की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि क्षेत्र में कृत्रिम मेधा (एआई) के इस्तेमाल को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। खाद्यान्न की उपलब्धता और भूमि की कम उपलब्धता के साथ साथ फसलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल ज्यादातर किसान उत्पादकता समूह (एफपीओ) कर रहे हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) समेत देश के 16 संस्थानों द्वारा एक मंच पर इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है ताकि आगामी वर्षों में फसलों की जरूरतें पूरी हो सकें।
मौसमी बदलावों से निपटने में उपयोग
फसलों के लिए पानी की उपलब्धता, सिंचाई, खाद और कीटाणुनाशक का छिड़काव, मिट्टी की उर्वरता समेत तमाम मौसमी बदलावों से निपटने में कृत्रिम मेधा का उपयोग किया जा रहा है। हालांकि छोटे किसान अक्सर कृषि में कृत्रिम मेधा के जरिए खेती के तरीकों को वंचित रह जाते हैं, क्योंकि नवीनतम प्रौद्योगिकी पर आधारित खेती के लिए जरूरी उपकरणों पर खर्च अपेक्षाकृत अधिक है। इसलिए कृत्रिम मेधा अपनाने वालों में फिलहाल ज्यादातर किसान उत्पादकता समूह शामिल हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के विशेषज्ञ डा आरएन साहू का कहना है कि कृषि क्षेत्र में कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
सेंसर की मदद से निगरानी
सेंसर की मदद से मिट्टी की उर्वरता, पानी की उपलब्धता और फसल की जरूरतों की निगरानी की जाती है। उर्वरकों का छिड़काव, जुताई और ड्रोन के जरिए खेती के तमाम पहलुओं पर निगरानी की जा रही है।
फसलों की बेहतर गुणवत्ता
नवीनतम प्रौद्योगिकी और उपकरणों का इस्तेमाल कर उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही फसलों की बेहतर गुणवत्ता के लिए भी कृत्रिम मेधा का उपयोग किया जा रहा है। खेती में नवाचार के जरिए जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए कृत्रिम मेधा का प्रोत्साहित किया जा रहा है।
कृत्रिम मेधा के जरिए कृषि गतिविधियों के लिए कम वक्त में डिजिटल स्वचालित उपकरणों और प्रणालियों से खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।