ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। राष्ट्रपति ने संसद से पास चार बिलों को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद ये अब कानून बन गए हैं। इसमें सबसे खास है डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल। प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने के छह साल बाद ये कानून बना है। संसद में केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश करते हुए कहा कि यह देश के 140 करोड़ लोगों के पर्सनल डाटा की सुरक्षा के लिए लाया गया है।
देश में इस वक्त करीब 90 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट एक्सेस है। ऐसे में डिजिटल होती दुनिया में ये बिल डिजिटल प्राइवेसी को सुनिश्चित करेगा। डाटा उल्लंघन को रोकने में नाकाम रहने पर कंपनियों पर 250 करोड़ तक का जुर्माना लग सकता है।
अब किसी शख्स की मंजूरी के बाद ही उसके पर्सनल डाटा को प्रोसेस किया जा सकेगा। लोगों के पास अपने डाटा कलेक्शन, स्टोरेज और प्रोसेसिंग के बारे में डिटेल मांगने का हक भी होगा। कंपनियों को यह बताना होगा कि वे कौन-सा डाटा ले रही हैं और उसका क्या इस्तेमाल कर रही हैं। यूजर के डाटा का इस्तेमाल कर रही कंपनियों पर इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है। चाहे वो फिर किसी थर्ड पार्टी डाटा प्रोसेसर के पास ही क्यों न हो।
डाटा उल्लंघन के मामले में कंपनियों को डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड को बताना होगा। बच्चों और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के डाटा का इस्तेमाल उनके अभिभावकों की मंजूरी के बाद ही किया जा सकेगा। कंपनियों को डाटा प्रोटेक्शन ऑफिसर को नियुक्त करना होगा और इसकी जानकारी उन्हें यूजर्स को देनी होगी। नागरिकों को सिविल कोर्ट में जाकर मुआवजे का दावा करने का अधिकार होगा। इस मामले को एक डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड देखेगा। इसकी संरचना व नियुक्ति जैसे अधिकार भारत सरकार को सौंपे गए हैं। बोर्ड का काम होगा डाटा इकट्ठा करने वालों की निगरानी करना और जुर्माना लगाना।