ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। मैं संसद हूं। मेरी उमर 95 बरस हो चुकी है। अब वक्त आ गया है, जब अपने सभी अधिकार नई-नवेली संसद को सौंप दूं। मेरे लिए यह क्षण जितना सुखद है, उतना ही भावुक भी। आज वो हर लम्हा याद आ रहा है, जब मेरी गोद बैठकर कानून निर्माताओं ने देश की तस्वीर बदलने वाले फैसले लिए। मेरी पैदाइश 1927 में हुई।
मुझे डिजाइन करने वाले हर्बर्ट बेकर और उद्घाटन करने वाले ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड इरविन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि दो बरस बाद 8 अप्रैल 1929 को देश की आजादी के दीवाने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त, बहरी अंग्रेज सरकार को देशवासियों की आवाज विस्फोट करके सुनाएंगे। उस वक्त मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। हालांकि, मेरे कानों में छेद हो गया, वंदे मातरम की गूंज सुनने के लिए 18 साल इंतजार करना पड़ा। आखिर, 15 अगस्त 1947 को वो दिन आ ही गया।
पं. जवाहरलाल नेहरू का संबोधन पूरी दुनिया के दिलोदिमाग को संवेदनाओं से भर देने वाला था। 26 जनवरी, 1950 को जब भारतीय गणराज्य की घोषणा हुई तो मेरा रोम-रोम खिल उठा। वहीं मेरे जेहन में दर्द और वेदना के वो क्षण भी जस के तस हैं, जब तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की घोषणा की। युद्धकाल में लाल बहादुर शास्त्री द्वारा देशवासियों से एक समय का भोजन बचाने की अपील वाला दिन भी याद है। वह भी गर्व का पल था जब इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को आजाद कराने और सिक्कि म के भारत में विलय का एलान किया। मुझे 21 जुलाई 1975 की वो तारीख भी अच्छी तरह याद है, जब इसी लोकसभा में आपातकाल की घोषणा हुई।
यह भी याद है जब अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत को ‘परमाणु हथियार संपन्न देश’ से गौरवान्वित किया। हर संस्कृति व परंपराओं को सहेजने वाली मैं संसद, कैसे भूल सकती हूं उन दिनों को जब वीपी सिंह, एचडी देवेगौड़ा और अटल विहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के रूप में संसद का विश्वास खोना पड़ा था। यह सही है कि इनमें से अटल बिहारी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो बाद में चुनाव जीतकर फिर मेरा साथ पाने में कामयाब रहे। 13 दिसंबर 2001 की वो मनहूस घड़ी याद करके मैं आज भी सिहर जाती हूं, जब आतंकियों ने मुझ पर हमला किया और मुझे बचाने के लिए मेरे गार्ड समेत 9 लोगों को शहीद होना पड़ा। 21वीं सदी का वह दिन भी मेरी यादों में तरोताजा रहेगा, जब पक्ष-विपक्ष की जोरदार बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करा दिया। मैं 144 खम्भों वाली इमारत हूं और आज मैं लगभग 143 करोड़ लोगों की आवाज हूं।
अपनी लंबी यात्रा में मैंने देश-दुनिया में कई बदलाव देखे हैं और आगे भी हर बदलाव के लिए तैयार हूं। सच यही है कि वर्षों से अपने केंद्रीय सभाकक्ष के प्रवेश द्वार पर लिखे इस वाक्य ‘अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम ्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम ्।।’ (यानी यह मेरा है, यह पराया है, ऐसी गणना छोटी मानसिकता वाले करते हैं, जबकि उदार चित्त वाले तो पूरे विश्व को ही अपना परिवार मानते हैं) को चरितार्थ करते हुए देशवासियों के साथ-साथ दुनिया की बेहतरी की कामना करती हूं और आगे भी करती रहूंगी। जय हिन्द, जय भारत ।