ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण व धन की बचत, दोनों मोर्चों पर हाइड्रोजन ट्रेन का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है। हाइड्रोजन ट्रेन के क्या फायदे और क्या नुकसान हो सकते हैं? इस बारे में हम विस्तार से जानेंगे। विश्व की पहली हाइड्रोजन ट्रेन कोराडिया आईलिंट जर्मनी की है।
यह अपने नाम के अनुरूप हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन है। यह काफी हद तक रेल के डीजल इंजन (लोकोमोटिव) जैसी है। हाइड्रोजन ट्रेन को समझने से पहले हमें डीजल ट्रेन को समझ लेना होगा। डीजल लोकोमोटिव में डीजल भरा जाता है और यह डीजल इंजन में हवा के साथ मिलकर जलता है जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है और इंजन से लगा हुआ जनरेटर घूमने लगता है। रेल का डीजल लोकोमोटिव हकीकत में डीजल-इलेक्टि्रक लोकोमोटिव होता है।
डीजल और हवा का संयोग
इसमें एक बहुत बड़ा – 6000 हॉर्स पावर का डीजल जनरेटर होता है जो डीजल और हवा के संयोग से बिजली उत्पन्न करता है और यह बिजली कंट्रोल सिस्टम के माध्यम से पहियों में लगी हुई मोटर तक पहुंचती है जिससे मोटर और उसके संग-संग पहिए भी घूमने लगते हैं और ट्रेन आगे या पीछे बढ़ती है।
फ्यूल-सेल-स्टैक
हाइड्रोजन ट्रेन में इस डीजल जनरेटर की जगह फ्यूल-सेल-स्टैक होते हैं, जो कि बिजली उत्पन्न करते हैं। यह बिजली कंट्रोल सिस्टम के माध्यम से पहियों में लगे हुए मोटर को घुमाती है जिससे ट्रेन चलने लगती है।
फ्यूल-सेल-स्टैक में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोग होता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है, साथ ही ताप ऊर्जा भी उत्पन्न होती है और सह उत्पाद के रूप में पानी भी निकलता है।
यानी समीकरण कुछ ऐसा होता है –
हाइड्रोजन+ऑक्सीजन=बिजली+पानी+हीट
उत्सर्जित हीट का प्रयोग
इस के लिए हाइड्रोजन को छत पर लगे उच्च दाब के टैंक में रखा जाता है और ऑक्सीजन (सामान्य हवा) को वायुमंडल से कंप्रेशर द्वारा प्राप्त किया जाता है। उत्सर्जित हीट का प्रयोग एयर कंडीशनिंग के लिए किया जाता है ।