ब्लिट्ज ब्यूरो
अयोध्या। अयोध्या में कारसेवकों पर फायरिंग के अगले दिन अखबारों में छपी खबर में बलिदानियों की संख्या 40 बताई गई थी। साथ ही लिखा गया था कि 60 बुरी तरह जख्मी हैं और घायलों का कोई हिसाब नहीं है। मौके पर रहे एक पत्रकार ने मृतकों की संख्या 45 बताई थी।
एक अखबार ने 100 की मौत की बात कही थी तो दूसरे ने यह संख्या 400 बताई थी। आधिकारिक तौर पर बाद में मृतकों की संख्या 17 बताई गई। हालांकि घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना। घटना के फौरन बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आंकड़े तो नहीं दिए थे, लेकिन मीडिया के आंकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। यहां तक कि फैजाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिंग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई थी। उनके पास मृतकों और जख्मी लोगों का आंकड़ा भी नहीं था।
एक अखबार ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा था, “निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियांवाले से भी जघन्य कांड किया है।” कुछ महीने पहले तक एक समुदाय विशेष के लोगों को देश की राजधानी की सड़क पर डेरा जमाए बैठे देखने वाले लोगों को शायद यकीन न हो कि 1990 में इस घटना को तब अंजाम दिया गया था, जब प्रशासन को काफी पहले से अयोध्या में कारसेवकों के जुटान और निश्चित तारीख को कारसेवा की पहले से सूचना थी। यहां तक कि 30 अक्टूबर 1990 के दिन भी कारसेवकों पर गोलियां बरसाई गई थी। आधिकारिक आंकड़े 30 अक्टूबर को 5 रामभक्तों के बलिदान की पुष्टि करते हैं।
असल में 25 सितंबर 1990 को एक रथ यात्रा शुरू हुई थी। सोमनाथ से शुरुआत हुई और 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंच यात्रा खत्म होनी थी। मकसद था- रामजन्मभूमि को वापस पाने के संघर्ष को जन-जन का संघर्ष बनाना। हिंदुओं को अपने गौरव और अपनी पहचान को लेकर जिंदा करना।
उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने का खेल चल रहा था। यात्रा शुरू होते ही मुलायम ने इसे खुद को खास मजहब का सबसे बड़ा मसीहा साबित करने के मौके के तौर पर देखा। लिहाजा रथ के पहियों के साथ ही हिंदुओं को उनका धमकाना शुरू हो गया था। उन्होंने बकायदा एलान किया था कि आडवाणी अयोध्या में घुस कर दिखाएं, फिर वे बताएंगे कानून क्या होता है। उनकी इस बयानबाजी का एक मकसद उत्तेजना पैदा करना भी था।
वीपी, मुलायम की सियासत
इधर वीपी सिंह नहीं चाहते थे कि मुलायम अकेले मजहब के मसीहा बनें। सो उनके इशारे पर तब के बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने आडवाणी को समस्तीपुर में 23 अक्टूबर की सुबह गिरफ्तार करवाया। इससे एक दिन पहले वीपी सिंह की सरकार ने 20 अक्टूबर की रात लागू किया गया अध्यादेश वापस लिया था।
आडवाणी की गिरफ्तारी ने मुलायम का खेल बिगाड़ा
इस अध्यादेश में विवादित ढांचे और उसके चारों तरफ 30 फीट जमीन छोड़कर अधिग्रहित जमीन रामजन्मभूमि न्यास को सौंपने की बात कही थी। हालांकि इसके लिए भी समुदाय के नुमाइंदे राजी नहीं थे और उनका हीरो बनने के लिए मुलायम ने भी अध्यादेश को लागू नहीं करने की धमकी दी थी लेकिन आडवाणी की गिरफ्तारी ने मुलायम का खेल बिगाड़ दिया।