भाग- 2
ईरान नहीं चाहता कि सऊदी अरब और इस्राइल करीब आएं क्योंकि ऐसा उनके रणनीतिक हितों के ख़िलाफ़ है। ऐसे में खामनेई का बयान कई संकेत देता है।
यूक्रेन के बाद क्या अब डिप्लोमेसी की नई पिच तैयार हो रही है
यूक्रेन यूद्ध अभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ है। यूक्रेन के बहाने रूस और चीन ने अपनी पश्चिम विरोधी रणनीति को बहुत धार दी थी। हालांकि यूक्रेन संघर्ष में रूस के लहजे से लगता है कि यह अब समाधान की ओर जा रहा है, क्योंकि रूस मान रहा है उससे वहां गलती हुई और उसे अब पीछे हटना पड़ेगा। ऐसा लगता है कि अब हालिया तनाव पश्चिम विरोध की नई टर्फ होगा, ऐसा ही कुछ अमेरिकी गुट भी करता दिखेगा। नए हालात में रूस और चीन हमास को सपोर्ट करते दिखें, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ये दोनों देश अब बेहद अरब समर्थक और फिलिस्तीन समर्थक अप्रोच दिखा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इसी तरह के कूटनीतिक तेवर अख्तियार किए जा सकते हैं।
हमास को इतने हथियार कहां से मिले
क्या अमेरिका के छोड़े हथियार पाकिस्तान के हाथ लगे हैं। कुछ रिपोर्ट्स कह रही हैं कि ये वो हथियार हैं, जो पश्चिम ने यूक्रेन को दिए थे। इनमें से कुछ ब्लैक मार्केट तक पहुंचे, जहां से ये हमास के पास आ गए, एक सवाल यह भी है कि क्या ऐसा कुछ दक्षिण एशिया में भी हुआ है? क्या ऐसा हुआ है कि अमेरिका ने अफगानिस्तान से निकलते वक़्त इसी तरह हथियारों की बड़ी तादाद वहां छोड़ दी है? कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि पाकिस्तान ने भी इनमें से कुछ हथियार खरीदे हैं। हो सकता है कि यहां भी ये ब्लैक मार्केट में बेचे गए हों।
क्या हिजबुल्ला भी शामिल होगा
यह सोचने वाली बात है। क्या हमास ने यह सब कुछ अकेले किया है। देखना होगा कि क्या हिजबुल्ला भी इस्राइल की ओर से घोषित किए गए युद्ध में शामिल होगा?
इस्राइल पर हमास के हमले के बाद से दुनिया युद्ध जैसे हालात देख रही है। उधर रूस-यूक्रेन तनाव भी अभी ख़त्म नहीं हुआ है और इस वजह से बीते करीब 19 महीनों से दुनिया बहुत उथल-पुथल से गुजर रही है। हालिया संघर्ष का दुनिया के डिप्लोमैटिक पैटर्न और वर्ल्ड ऑर्डर पर क्या असर पड़ सकता है।
इस्राइल को दहलाने वाले इस हमले का मास्टरमाइंड है मोहम्मद डेफ। वह हमास की मिलिट्री विंग का कमांडर है। उसी की निगरानी में हमास के दहशतगर्दों ने इस्राइल पर पूरे हमले को अंजाम दिया। हमले के बाद हमास की ओर से जो विडियो जारी हुआ, उसमें भी आवाज़ डेफ की ही बताई जा रही। डेफ वैसे उसका छद्म नाम है, जिसका मतलब होता है अतिथि। इस नाम की वजह भी दिलचस्प है। वह इस्राइली खुफिया दस्ते से बचने के लिए हर रात उन अलग-अलग फिलिस्तीनियों के घर बिताता है, जो दहशतगर्दों के हमदर्द होते हैं। यही वजह है कि डेफ हमास का इकलौता सैन्य प्रमुख है, जो इतने लंबे वक़्त तक ज़िंदा है।
आतंक का दूसरा नाम कैसे बना डेफ
डेफ के बारे में सार्वजनिक तौर पर काफी कम जानकारियां उपलब्ध हैं। उसका नाम भी एक रहस्य है। कई लोग कहते हैं कि वह हमेशा से डेफ नाम से ही जाना जाता था। वहीं, कुछ लोग दावा करते हैं कि वे उसे जन्म वाले नाम यानी मोहम्मद दीब इब्राहिम अल-मसरी के रूप में जानते थे। मीडिया में उसकी एक ही तस्वीर उपलब्ध है, जो काफी पुरानी है। इस्राइल की खुफिया फाइलें बताती हैं कि डेफ का जन्म 1960 के दशक में गाजा के एक शरणार्थी शिविर में हुआ।
गाजा पर उस समय इजिप्ट का क़ब्ज़ा था। फिर साल 1967 में इस्राइल ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। इस्राइल के कब्जे से बाहर निकलने के लिए फिलिस्तीनियों ने हथियार उठाए। इनमें डेफ भी शामिल था। उसके पिता और चाचा भी 1950 के दशक में इस्राइल के खिलाफ छापामार युद्ध का हिस्सा थे। इस्राइली अधिकारियों ने पहली दफा जब डेफ को पकड़ा, तब उसकी उम्र 20 साल थी। उसे आत्मघाती बम विस्फोट में दर्जनों लोगों की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया था। डेफ की काबिलियत बम बनाना ही थी। साथ ही, फिलिस्तीनी विद्रोहियों के साथ मिलकर गाजा के नीचे सुरंगों का जाल भी बनाता था। जारी…