सचिन गुप्ता
असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, मोहन लाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर (राजस्थान)
हथकरघा कपड़ा उद्योग, भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग व देश का सबसे पुराना उद्योग है। हथकरघा उद्योग कपड़ा बुनाई की पारंपरिक और अनूठी कला का प्रतिनिधित्व करता है और भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हथकरघा वस्त्रों में पारंपरिक कला और कौशल की झलक देखी जा सकती है। इन कपड़ों का निर्माण कुशल बुनकरों द्वारा किया जाता है । वर्तमान में करघे की उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप बुनकरों को हानि एवं बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए देश के सबसे पुराने कपड़ा उद्योग और पारंपरिक बुनाई कला को संरक्षण की जरूरत है।
हथकरघा उद्योग को अन्य बिजली मिलों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता है, उद्योग के अस्तित्व के लिए उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ प्रौद्योगिकी और डिजाइन में बदलाव करने की सख्त जरूरत है, ताकि उत्पादों को नवीनतम रूप में ढाला जा सके। मशीन से बने उत्पाद सस्ते होते हैं जबकि मानव श्रम के कारण हाथ से बुने हुए कपड़े अपेक्षाकृत अधिक महंगे होते हैं। हथकरघा कपड़ों में नई तकनीकों को अपनाना जरूरी है ताकि हाथ से बुने कपड़ों को पावरलूम और मिलों में बने कपड़ों के बराबर लाया जा सके।
हथकरघा वस्त्रों के प्रचार, विपणन और बुनाई का कार्य मुख्य रूप से बुनकरों, बिचौलियों, सहकारी समितियों और विपणन संगठनों द्वारा किया जाता है। इसके अंतर्गत एपेक्स वीवर सोसायटीज, हैंडलूम हाउस, ऑल इंडिया हैंडलूम फैब्रिक मार्केटिंग सोसायटीज, हैंडीक्राफ्ट सेल्स सेंटर और हैंडलूम एक्सपोर्ट कॉर्पोरेशन आदि शामिल हैं। वर्तमान में हथकरघा वस्त्रों का विपणन सोशल नेटवर्किंग साइटों के माध्यम से भी किया जा रहा है। विपणन नीतियों का उपयोग करके हथकरघा बुनकरों के हितों की रक्षा की जा सकती है। बाजार में अपने उत्पादों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेचने के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर प्रदान करके और विपणन नीतियों में सुधार करके जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है।
भारत में हथकरघा उद्योग एक आर्थिक गतिविधि के रूप में लोगों को रोजगार प्रदान करता है और हस्तशिल्प कला और शिल्प को बड़े पैमाने पर वैश्विक बाजार में विस्तारित करने में मदद करता है लेकिन हथकरघा उद्योग को अप्रचलित प्रौद्योगिकियों, असंगठित उत्पादन प्रणाली, कम उत्पादकता, अपर्याप्त कार्यशील पूंजी, पारंपरिक उत्पाद श्रृंखला, कमजोर विपणन प्रणाली, उत्पादन और बिक्री की समग्र स्थिरता और पावरलूम क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। समय के साथ काफी हद तक, इसका पूरे देश में विस्तार हुआ है, लेकिन अधिकांश हथकरघा इकाइयां या तो एकल स्वामित्व या साझेदारी के आधार पर चलती हैं, मालिकों के पास अपनी इकाइयों का समग्र प्रबंधन करने के लिए आवश्यक पेशेवर दृष्टिकोण का अभाव है। इसलिए उनमें से बहुत से लोग विपणन की आधुनिक तकनीकों जैसे उत्पाद विकास, ब्रांड प्रचार, पैकेजिंग, विज्ञापन, बाजार सर्वेक्षण और मांग पूर्वानुमान आदि से अवगत नहीं हैं।
बिक्री की मात्रा को अधिकतम करने के लिए विपणन प्रथाओं, विभिन्न विपणन रणनीतियों का अध्ययन और कार्यान्वयन करने की आवश्यकता है तथा निर्यात बढ़ाने की आवश्यकता है। हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए तथा विरासत को संरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं, इसके तहत ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी परियोजनाएं हथकरघा उद्योग और बुनकरों के लिए फायदेमंद साबित हुई हैं।