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हमास का हमला, कैसे नाकाम हो गई मोसाद?

by Blitzindiamedia
November 10, 2023
in दृष्टिकोण
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Hamas attack, how did Mossad fail?

sunil dangइस्राइल पर हमास के हमले से पूरी दुनिया हैरान रह गई। इस्राइली भी भौंचक रह गए। वजह साफ थी। दुनिया में इस्राइल की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद की ताकत का हवाला दिया जाता था लेकिन वह गुब्बारा फट गया। इससे इस्राइल के काफी लोग सदमे में हैं। वे देश और अपने जान-माल की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता में डूब गए हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की गलतियों के चलते ऐसा हुआ?

1996 से 1999 तक और फिर 2009 से 2021 तक प्रधानमंत्री रहने के बाद नेतन्याहू ने 2022 में एक बार फिर इस्राइल की बागडोर संभाली थी। अब हमास के हमले के बाद उनकी लोकप्रियता काफी घट गई है। 7 अक्टूबर को हमास ने हमला किया था। उसके बाद इस्राइल के रिसर्च इंस्टिट्यूट्स की ओर से ओपीनियन सर्वे कराया गया। इस पोल का नतीजा 13 अक्टूबर को इस्राइल के अखबार ‘मारिव’ में प्रकाशित किया गया। इसमें कहा गया कि अगर अभी इस्राइल में चुनाव हो जाएं तो विपक्ष भारी बहुमत से जीत दर्ज करेगा। नेतन्याहू की लोकप्रियता काफी घट गई है और विपक्ष के नेता बेनी गैंट्ज को ज्यादा लोग पसंद करने लगे हैं।

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पोल के इस नतीजे का मतलब यह नहीं है कि नेतन्याहू हमास के हमले से पहले लोकप्रियता के शिखर पर थे। अपनी नीतियों के चलते वह सवालों में घिरे हुए थे। उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे और कहा जा रहा था कि नेतन्याहू के फैसलों के चलते इस्राइल में डेमोक्रेसी खत्म हो सकती है। हमास के हमले ने अब उन सवालों को सतह पर ला दिया है। आइए देखते हैं कि नेतन्याहू ने कौन से ऐसे काम किए, जिनके चलते उन पर सवाल उठ रहे हैं?

दरअसल इस सवाल के दायरे में सिर्फ नेतन्याहू नहीं हैं। नेतन्याहू की पूरी लिकुड पार्टी इसके दायरे में है। लिकुड पार्टी दक्षिणपंथी और कट्टर विचारों वाली पार्टी है। इसके नेता फिलिस्तीनियों को बिल्कुल भी बर्दाश्त करने के मूड में नहीं रहते। उनका वश चले तो फिलिस्तीन का नामोनिशान मिटा दें।

हाल के वर्षों में उभरे ज्यूइिश पावर पार्टी के नेता इतामार बेन गवीर जैसे लोग और भी कट्टर विचारों वाले हैं। नेतन्याहू की सरकार बेन गवीर जैसे नेताओं की सपोर्ट पर टिकी है। फिलिस्तीनी कहते हैं कि उनकी जमीन पर इस्राइल ने कब्जा किया। इस कब्जे के खिलाफ वे कई दशकों से लड़ रहे हैं। 1964 में बनाए गए फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) और उसके सबसे बड़े नेता यासिर अराफात ने शुरू में सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना लेकिन 1993 में ओस्लो शांति समझौता हुआ। पीएलओ ने हथियार रख दिए और इस्राइल को उसे मान्यता देनी पड़ी, फिलिस्तीनियों के प्रतिनिधि संगठन के रूप में।

हालांकि फिलिस्तीनियों के बीच पीएलओ का असर घटाने के लिए इस्राइल काफी पहले से काम कर रहा था। 1967 के अरब-इस्राइल युद्ध में इजिप्ट की हार होने और गाजा पर इस्राइल का कब्जा होने के बाद वहां मुस्लिम ब्रदरहुड को बढ़ावा दिया जाने लगा। उसके नेता और फिलिस्तीनी मौलवी शेख अहमद यासीन के संगठन को इस्राइल ने 1978 में चैरिटी ऑर्गनाइजेशन के रूप में मान्यता भी दे दी। वही संगठन बाद में हमास बन गया। इस्राइल ने उसकी खूब मदद की, जिसकी तस्दीक गाजा में ही तैनात रहे इस्राइल के अधिकारियों ने बाद में की। ट्यूनीशिया में जन्मे यहूदी एवनर कोहेन दो दशक से अधिक समय तक गाजा में धार्मिक मामलों के प्रभारी थे। ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोहेन ने कहा था, ‘मुझे यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि हमास को इस्राइल ने ही खड़ा किया था।’

फिलिस्तीनियों के बीच शांति की आवाजों को दबाने और कट्टरता को बढ़ावा देने में बेंजामिन नेतन्याहू ने भी योगदान दिया। इसकी गवाही देता है नेतन्याहू का वह बयान, जो उन्होंने लिकुड पार्टी के सांसदों के बीच मार्च 2019 में दिया था। इस्राइल अखबार ‘हारेज’ की रिपोर्ट के अनुसार नेतन्याहू ने कहा था, ‘जो कोई भी फिलिस्तीन स्टेट बनाने की कोशिशों को ध्वस्त करना चाहता है, उसे हमास को मजबूत बनाने और उसे पैसा दिए जाने का समर्थन करना होगा। गाजा के फिलिस्तीनियों को वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनियों से अलग-थलग किया जाए, यह हमारी रणनीति है।‘ नेतन्याहू ने हमास के बारे में अपनी पिछली नीति को मौजूदा कार्यकाल में भी जारी रखा। गाजा में हमास का दबदबा बढ़ने में उन्हें फायदा दिखा। नेतन्याहू की रणनीति यह रही है कि वेस्ट बैंक में नरम रुख वाली फतह पार्टी के मुकाबले गाजा में हमास के ताकतवर होने से फिलिस्तीनी आपस में ही बंटे रहेंगे और अलग फिलिस्तीन देश बनाने की उनकी मांग जोर नहीं पकड़ पाएगी।

अब सवाल उठता है कि क्या नेतन्याहू सरकार की नीतियों से इस्राइल की सुरक्षा कमजोर हुई? दरअसल हमास के ताजा हमले के बाद जिस तरह के विडियो आ रहे हैं, उनमें दिख रहा है कि हमास के लोग गाजा में खुलेआम ट्रेनिंग ले रहे थे। इस्राइल की सेना और खुफिया एजेंसी की नजरों के सामने ऐसा कैसे हो रहा था, इस्राइल के लोग ही यह सवाल पूछने लगे हैं। हालिया कुछ बातें इन सवालों को मजबूती दे रही हैं। नेतन्याहू ने जब सरकार बनाई तो वह अपना पद बचाए रखने की जुगत में जुट गए।

नेतन्याहू ने अब भले ही युद्ध का एलान कर दिया हो, इस वक्त उनकी सरकार पर कोई बड़ा खतरा भी न दिख रहा हो, लेकिन अपने लोगों के मारे जाने से इस्राइली बेहद नाराज हैं।

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