ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति में कुलाधिपति के तौर पर राज्यपाल निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। शीर्ष अदालत ने कहा है कि राज्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए, न कि मंत्रिपरिषद की सलाह या सहायता पर। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि कुलपति की नियुक्ति में कुलाधिपति का निर्णय अंतिम है।
कुलपति की पुनर्नियुक्ति रद्द
पीठ ने केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर डॉ. गोपीनाथ रवींद्रन की पुनर्नियुक्ति को रद्द करते हुए ये फैसला दिया है। पीठ ने कहा है कि केरल के राज्यपाल, कन्नूर विश्वविद्यालय के पदेन कुलाधिपति होने के नाते, विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति के मसले पर वह केरल सरकार/मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।
पीठ ने फैसले में इस बात पर जोर दिया है कि कन्नूर विश्वविद्यालय अधिनियम 1996 के तहत, कुलपति की नियुक्ति के मसले पर कुलाधिपति यानी राज्यपाल सर्वेसर्वा होता है। पीठ ने कहा कि कुलाधिपति नाममात्र का प्रमुख नहीं है। कुलाधिपति को अधिनियम-1996 के तहत कुलपति की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति करने की शक्ति दी गई है और कोई अन्य व्यक्ति, यहां तक कि प्रो-चांसलर या कोई वरिष्ठ प्राधिकारी भी वैधानिक प्राधिकरण के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि यदि निर्णय किसी वैधानिक प्राधिकार के आदेश पर या किसी ऐसे व्यक्ति के सुझाव पर लिया जाता है जिसकी कोई वैधानिक भूमिका नहीं है, तो यह स्पष्ट रूप से अवैध माना जाएगा।