दीपक द्विवेदी
नई दिल्ली। वर्ष 2024 की शुरुआत भारत के लिए एक नए युग का संकेत बनकर आई है। देश ने अपने कानूनी ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए भारत को फिरंगी कानूनों की दासता से आजाद कर दिया है। एक प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को नए साल में नए स्वदेशी कानूनों का तोहफा भेंट किया है। नए कानूनों की आत्मा भारतीय है और इसमें से औपनिवेशिक प्रतीकों वाले शब्दों को हटा दिया गया है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के साथ भारतीय न्याय संहिता 2023; भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 का अनुमोदन हो गया है। ये कानून अब न केवल भारत के औपनिवेशिक कानूनों की जगह लेंगे, बल्कि देश को एक आधुनिक और प्रगतिशील कानूनी प्रणाली की ओर भी ले जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल का उद्देश्य भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक पारदर्शी, सुलभ और भ्रष्टाचार-मुक्त बनाना है। उनका यह प्रयास न्याय की पहुंच को सभी तक विस्तारित करने और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए उठाया गया एक उल्लेखनीय कदम है। गृह मंत्री अमित शाह ने इन बिलों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, यह पहली बार है जब भारतीय न्याय प्रणाली को पूरी तरह से भारतीयों द्वारा तैयार और पारित किए गए कानूनों द्वारा संचालित किया जाएगा। इन कानूनों के माध्यम से आतंकवाद, संगठित अपराध और सामाजिक अन्याय के खिलाफ कठोर कदम उठाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, अपराधियों के सुधार के लिए सामुदायिक सेवा की अवधारणा और भीड़ द्वारा हिंसा जैसे मुद्दों पर कठोर रुख भी अपनाया गया है। ये कानून न केवल अपराधों की परिभाषाओं को स्पष्ट करते हैं, बल्कि उनके दंड और न्यायिक प्रक्रियाओं में भी व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
फिर भी, इन कानूनी सुधारों के कार्यान्वयन में कुछ देरी की उम्मीद की जा रही है। इसका कारण आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक सुधारों और संसाधनों की आवश्यकता है। न्याय प्रणाली की संरचना, मानव संसाधनों की मजबूती और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करना आवश्यक है, ताकि ये सुधार प्रभावी रूप से लागू किए जा सकें।
– देश को मिली आधुनिक और प्रगतिशील कानूनी प्रणाली
प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि न्याय सर्वसुलभ तथा पारदर्शिता से पूर्ण होना चाहिए; तभी भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाया जा सकता है। इस पहल से भारतीय न्याय प्रणाली में एक नई जान व स्फूर्ति का संचार होगा। नए कानूनों के इस नए दौर में कदम रखते हुए, भारत अपनी कानूनी पहचान को पुनः परिभाषित कर रहा है और एक नए भविष्य की कल्पना कर रहा है। ये सुधार न केवल कानूनी बदलाव के प्रतीक हैं बल्कि भारत की विकसित सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के साथ ही कानूनी प्रणाली को संरेखित करने का भी प्रयास हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ब्रिटिश राज में लोगों की हत्या और महिलाओं और बहनों के प्रति जघन्य अपराध कोई महत्व नहीं रखते थे। उनके लिए खजाने की लूट, रेल की पटरी में तोड़फोड़, अंग्रेजी शासन के खिलाफ षडयंत्र को ज्यादा तरजीह दी जाती थी। नए कानून की धाराओं में भारतीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखा गया है। मानव वध और महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे मामलों पर कड़े कानून को तरजीह दी गई है। मॉब लिंचिंग पर अब मृत्युदंड तक का प्रावधान है। कांग्रेस ने कभी इस पर कानून नहीं बनाया।
उन्होंने कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाएं सबसे कम मोदी सरकार में हुई हैं। शाह ने कहा कि देश के हजारों करोड़ रुपये लूटकर जो विदेशों में बैठे हैं, अब उनकी अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और सजा भी होगी। अगर आपको इसके खिलाफ अपील करनी है तो यहां आइए, भारत के न्याय के सामने सरेंडर कीजिए और फिर अपील कीजिए। नए कानूनों में राजद्रोह की जगह देशद्रोह लाया गया है। अब शासन सत्ता के खिलाफ बोलने पर राजद्रोह की जगह देश के खिलाफ बोलने, माहौल बनाने, अलगाववाद या साजिश रचने जैसे मामलों में देशद्रोह की धारा के तहत सख्त दंड का प्रावधान है।
आतंकवाद की स्पष्ट व्याख्या इस नए कानून में की गई है। नाबालिग के साथ रेप या गैंग रेप के मामलों में मृत्युदंड तक का प्रावधान है। वैसे आपराधिक कानूनों में बदलाव पर सत्तापक्ष या विपक्ष चाहे कैसी भी राजनीति करें; पर अगर इसमें दंड के बजाय न्याय दिलाने पर फोकस है एवं तीन साल में निर्णय देने पर जोर का प्रावधान हैं तो आम आदमी के लिए इससे अच्छी बात और कुछ नहीं हो सकती है।