दीपक द्विवेदी
तीन नए क्रिमिनल लॉ बिल- भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा से भी पास हो चुके हैं। ये तीनों कानून अंग्रेजी हुकूमत के समय से चले आ रहे भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लाए गए हैं। नए कानूनों में कई कड़े प्रावधान किए गए हैं तो कुछ अनावश्यक कानूनों को हटा भी दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का मत है कि अभी तक चले आ रहे कानून ब्रिटिश हुकूमत की सुरक्षा के मद्देनजर बनाए गए थे। नए कानून देश और नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं, जो भारतीय परिवेश से मेल खाते हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इन बिलों के पारित होने से औपनिवेशिक युग के कानूनों का भी अंत हो जाएगा। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि ये विधेयक औपनिवेशिक युग के कानूनों के अंत का प्रतीक हैं। ये नए कानून सार्वजनिक सेवा और कल्याण पर केन्दि्रत बताए गए हैं जिनसे देश में एक नए युग की शुरुआत हो रही है। ये विधेयक संगठित अपराध, आतंकवाद और ऐसे अपराधों पर कड़ा प्रहार करते हैं, जो प्रगति की हमारी शांतिपूर्ण यात्रा की जड़ पर हमला करते हैं। इनके माध्यम से देशद्रोह की पुरानी हो चुकी धाराओं को भी अलविदा कह दिया गया है और इनका पारित होना देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण कहा जा सकता है।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इन तीनों कानूनों की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए राज्यसभा में कहा था कि नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन से ‘तारीख पे तारीख’ के युग का अंत सुनिश्चित होगा और तीन साल में लोगों को न्याय मिल सकेगा। अब जब ऐसा होने लगेगा तो निश्चित रूप से देश के उन लाखों, करोड़ों लोगों को अदालतों के चक्कर काटने से मुक्ति मिल जाएगी जिनका जीवन मुकदमेबाजी के अनंत काल तक चलने के कारण हलकान-परेशान रहता होगा। यही नहीं, इन सारे लोगों को इस बात से भी राहत पहुंचेगी कि उनको मुकदमा लड़ने के लिए जो धन जुटाना पड़ता है; उसके लिए अपनी जमीन-जायदाद बेचनी अथवा गिरवी नहीं रखनी पड़ेगी क्योंकि मुकदमों का निपटारा तय समय के भीतर ही होने लगेगा। हालांकि अभी तक का जो लेट-लतीफी वाला रवैया न्यायिक प्रक्रिया में चला रहा है, उससे भी जनता को निजात दिलानी पड़ेगी। मुकदमें तय समय पर ही सुनवाई हो कर उनका फैसला हो जाए; यह सुनिश्चित करने के लिए भी सरकार को कड़ा निगरानी तंत्र फिलहाल बनाना पड़ेगा। ऐसे कदम उठाने होंगे ताकि कोई भी पक्ष गवाहों को बुलाने अथवा अन्य बहानों के माध्यम से तारीख पर तारीख की नीति न अपना सके।
यह बात तथ्यपरक है कि ब्रिटिश राज में लोगों की हत्या और महिलाओं और बहनों के प्रति जघन्य अपराध की जगह खजाने की लूट, रेल की पटरी में तोड़फोड़, अंग्रेजी शासन के खिलाफ षडयंत्र को ज्यादा तरजीह दी जाती थी। पर अब नए कानून की धाराओं में भारतीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखा गया है। मानव वध और महिलाओं के विरुद्ध अपराध जैसे मामलों को ज्यादा तरजीह दी गई है। मॉब लिचिंग के खिलाफ मृत्युदंड तक के प्रावधान की व्यवस्था नए कानून में की गई है। यह अपने आप में आश्चर्यजनक है कि आजादी के बाद से अब तक किसी भी सरकार ने मानव वध को लेकर कोई भी कड़ा कानून नहीं बनाया। अब जबकि पीएम मोदी की सरकार ने मॉब लिचिंग पर सख्त कानून बना दिया है तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि लोग मृत्युदंड के भय से मॉब लिचिंग करने से बचेंगे। इससे इस प्रकार के अपराध में कमी भी आएगी। वैसे अगर आंकड़ों पर निगाह डाली जाए तो मोदी सरकार के कार्यकाल में मॉब लिचिंग की सबसे कम घटनाएं हुई हैं।
– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का मत है कि अभी तक चले आ रहे कानून ब्रिटिश हुकूमत की सुरक्षा के मद्देनजर बनाए गए थे। नए कानून देश और नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं।
– अब मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए कानूनों को न्याय की दिशा में बहुत बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है।
दरअसल कानूनों में सुधार समय की मांग थी और देश इस राह पर तेजी से बढ़ भी रहा है। संसदीय समिति की अनुशंसा के बाद ही आपराधिक कानूनों में व्यापक सुधार की भूमिका तैयार हो गई थी। यह अत्यंत संतोषजनक है कि अब एक लंबे अंतराल के बाद भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 तथा मूलतः 1878 में तैयार की गई दंड प्रक्रिया संहिता की जगह नए कानूनों को देश में अपनाया जाएगा जिन्हें हम स्वदेशी कानून कह सकते हैं। देश के आम लोगों की नजर से भी यह खुशी की बात है।
राज्यसभा से भी यह बिल पारित हो चुके हैं और राष्ट्रपति की सहमति के बाद ये पुराने कानूनों की जगह ले चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भारतीय दंड संहिता को अब भारतीय न्याय संहिता कहा जाएगा। इसके पीछे की मंशा यही है कि दंडित करने के बजाय लोगों को न्याय देने के प्रति हमारा ज्यादा ध्यान होना चाहिए। साक्ष्य से जुड़े कानून में वैज्ञानिक पद्धतियों को सुसंगत बनाते हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम से नया कलेवर दिया गया है। आम नागरिक की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए अब दंड प्रक्रिया संहिता में व्यापक सुधार के बाद नए कानून का नाम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता कहलाएगा।
इन कानूनों का मुख्य उद्देश्य आम लोगों को न्याय मुहैया कराना है। चूंकि फौजदारी कानून जनता के मन में न्याय बोध पैदा करने का सबसे सशक्त माध्यम है अत: सरकार का यह उत्तरदायित्व बनता है कि आवश्यकतानुरूप उसमें सुधार किए जाएं। इनमें संशोधन के सुझाव तो पहले भी दिए गए थे पर वे कभी मूर्त रूप नहीं ले सके थे। उदाहरणस्वरूप सन 1971 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इनमें व्यापक सुधारों का प्रस्ताव किया था। उनके लिए सन 1972 तथा उसके बाद 1978 में विधेयक भी पेश किया गया था किंतु दोनों लोकसभा के भंग हो जाने से स्वतः समाप्त हो गए। फिर मलिमथ समिति की स्थापना वर्ष 2000 में गृह मंत्रालय द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करना था। इसने वर्ष 2003 में “आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधार पर समिति की रिपोर्ट” नाम से अपनी रिपोर्ट में सिफारिशें प्रस्तुत कीं थीं। उसमें से कुछ को कानून बनाकर जोड़ा भी गया किंतु वह पैबंद के रूप में ही रहे। अब मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए कानूनों को न्याय की दिशा में बहुत बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है।