संजय द्विवेदी
लखनऊ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश के चित्रकूट-सतना सीमांकन क्षेत्र में करीब 140 करोड़ वर्ष पूर्व तीव्र भूकंप के प्रमाण खोज निकाले हैं। चित्रकूट धाम से लगभग 3.5 किमी दूर स्थित हनुमानधारा पहाड़ (विंध्यपर्वत) पर कई ऐसी विकृत संरचनाएं मिली हैं, जो उस समय के भूमिगत परिवर्तनों को दर्शाती हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय प्रायोगिक खनिज विज्ञान एवं पेट्रोलाजी केंद्र (एनसीईएमपी) के निदेशक प्रो. जयंत कुमार एवं फेलो अनुज कुमार सिंह के अनुसार इन विकृत संरचनाओं का गठन भूकंपीय झटकों द्वारा उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण अस्थिरता, तरलीकरण एवं द्रवीकरण समेत कई अन्य प्रक्रियाओं के संयोजन से संबंधित है।
पांच से अधिक की तीव्रता
वर्तमान अध्ययन (विकृत संरचनाओं के प्रकार एवं उनकी जटिलता, भूगतिकीय वितरण, विन्ध्यनसंघीय का भू-भौगोलिक ढांचा) इस बात की पुष्टि करता है कि रिक्टर पैमाने पर इस भूकंप की तीव्रता पांच से अधिक रही होगी। यह शोध प्रतिष्ठित एल्सेवियर जर्नल (जर्नल आफ पेलियोजियोग्राफी) के प्री-प्रिंट संस्करण पर ऑनलाइन प्रकाशित है।
प्रो. जयंत के अनुसार लंबे समय से मध्य भारत क्षेत्र को भूकंपीय दृष्टिकोण से काफी सुरक्षित माना गया है। इस शोध ने भूमिगत परिवर्तनों को एक नए रूप से अध्ययन करने पर बल दिया है। अब जबलपुर की तरह ये कतई नहीं माना जाना चाहिए कि मध्य भारत के इस भू-भाग में तीव्र भूकंपीय झटके नहीं आ सकते।
भू-भाग भी हो सकते हैं प्रभावित
हिमालय के टकराव जोन की तरह, मध्य भारत के ये भू-भाग भी भूकंपीय झटकों से प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि प्राचीन विंध्यन बेसिन में विभिन्न विकृति संरचनाएं एवं उनकी संरचनात्मक विशेषताएं, भूकंपीयता की प्रासंगिकता का प्रकटीकरण करती हैं। इस इलाके में हल्के भूकंप आए हैं जो यह संकेत दे रहे हैं कि यहां जमीन के भीतर कुछ ऐसे भ्रंश हैं, जो भविष्य में भूकंप का कारण बन सकते हैं।
टेक्टोनिक्स-भूकंपीय गतिविधियां
यह अध्ययन विंध्यन बेसिन के निरंतर विकास के क्रम में सक्रिय टेक्टोनिक्स-भूकंपीय गतिविधियों को भी सुझाता है जो कि पूर्व अवधारणा के विपरीत है। शोधकर्ताओं ने कहा कि हम भूकंपों को नहीं रोक सकते लेकिन सरकार की गाइडलाइन का सावधानीपूर्वक पालन करके मजबूत इमारतों का निर्माण किया जाना चाहिए।