हरेन्द्र कुमार पाण्डेय
पगडंडी में पहाड़’ पुस्तक जयप्रकाश पाण्डेय का यात्रा-वृतांत है, जिसका प्रकाशन 2022 ई. में नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली से हुआ। इस पुस्तक के 18 खण्ड हैं और प्रत्येक खण्ड उत्तराखण्ड की पर्वत श्रृंखलाओं के किसी न किसी लोकप्रिय स्थान की पूरी जानकारी प्रस्तुत करता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौंदर्य, पर्वतीय अंचलों एवं वहां की लोक संस्कृति को उकेरने का प्रयास किया गया है। लेखक के अनुसार हमें अपने भागदौड़ के जीवन से कुछ पल चुराकर इनके साथ बिताने चाहिए।
पुस्तक के प्रथम खण्ड का शीर्षक ‘पहाड़ों की रानी मसूरी’ रखा गया है। लेखक की यात्रा यहीं से प्रारंभ होती है और मसूरी के अनुपम सौंदर्य का भी इसमें उल्लेख है । यहीं से पाठकों को प्रमुख स्थलों की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त होने लगती है।
पुस्तक के दूसरे खण्ड से जानकारी प्राप्त होती हैं कि लेखक पर्यटक के रूप में मसूरी नहीं गये थे बल्कि उनकी ओकग्रोव स्कूल के प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्ति हुई थी। लेखक के अनुसार इस विद्यालय की स्थापना अंग्रेजी अधिकारियों के बच्चों को शिक्षा देने के लिए 1888 ई. में हुई थी।
इस पुस्तक में देवभूमि उत्तराखण्ड को दो भागों में बांटकर यहां के इतिहास का विस्तृत वर्णन किया गया है। उदाहरण के तौर पर कुमायूं का वर्णन इस प्रकार है – “7वीं सदी से ग्यारहवीं सदी तक यहां कत्पुरी शासकों का शासन रहा है। अपने वैभव के चरम पर इस वंश का शासन नेपाल से लेकर अफगानिस्तान तक था। 12वीं सदी में इस वंश का विघटन हो गया और चांद शासकों ने इस क्षेत्र पर शासन किया।
13वीं-14वीं सदी में इस क्षेत्र पर आठ अलग-अलग राजवंशों ने शासन किया।” इस पुस्तक में उत्तराखण्ड की साहित्यिक विरासत का भी विस्तृत वर्णन किया गया है – दिनकर, पंत, हरिवंश राय बच्चन आदि साहित्यकारों ने इस क्षेत्र का साहित्यिक परिचय दिया है।
जयप्रकाश पाण्डेय अपने यात्रा वृतांत ‘पगडंडी में पहाड़’ पुस्तक के माध्यम से पाठकों की सहज कोमल भावनाओं को न केवल जगाते हैं बल्कि हिमालय के मनोहर स्थलों से लेकर देवभूमि उत्तराखण्ड के इतिहास, धर्म, दर्शन, सभ्यता, संस्कृति, प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ पर्वतीय अंचल के गांव और यहां के लोगों से परिचय कराते हैं।
यह पुस्तक पाठकों को देव भूमि उत्तराखण्ड की यात्रा करने को विवश कर देगी। लेखक इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस के अधिकारी हैं। लेखक की मानें तो 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा किए गए हर काम का उद्देश्य अधिक लाभ कमाने से है। लेखक ने इस पुस्तक को 18 अध्यायों में बांटा है।