विनोद शील
नई दिल्ली। नई यानी 18वीं लोकसभा के लिए देश ने अपना जनादेश दे दिया है। जनता ने इस बार नरेंद्र मोदी सरकार की जगह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार को चुना है जिसे कुल 293 सीट मिली हैं। इसकी वजह से नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले देश के दूसरे नेता के रूप में उभरे हैं। यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू।
भारत में अब एक बार फिर गठबंधन सरकार की गूंज सुनाई दे रही है। इस बार के चुनाव में न कोई बड़ी जीत है और न कोई बड़ी हार। न कोई बड़ी लहर है, न कोई बड़ी निराशा। लोकसभा चुनाव के मिले-जुले परिणाम सामने आए हैं एवं नतीजों को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया जा रहा है।
हालांकि इसमें भी कोई दोराय नहीं कि विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए. (इंडिया) गठबंधन ने खुद के दम पर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के भाजपा के सपने को बिखेर दिया है। यद्यपि 240 सीटें जीतकर भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई है पर सरकार बनाने के लिए उसे तेलुगू देशम, जदयू, शिवसेना (शिंदे) और लोजपा जैसे 12 सहयोगियों पर निर्भर रहना ही होगा। भाजपा के सहयोगियों ने कुल मिलाकर 51 सीटें जीती हैं। इसके अलावा दक्षिण ने भी कुछ साथ भाजपा का दिया है जिसकी वजह से वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खुद को बरकरार रख सकी।
विपक्षी इंडिया गठबंधन को कुल 204 सीटें मिलीं। इसमें 99 सीटों पर जीत ने कांग्रेस को नई संजीवनी प्रदान की है। वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिल कर भाजपा व उसके राजग को बड़ा झटका देते हुए खुद 37 सीटों पर जीत हासिल की।
अखिलेश ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्परसंख्यपक गठजोड़ बना कर भाजपा को करारी चोट पहुंचाई है। बंगाल में भी ममता बनर्जी ने 29 सीटों पर जीत दर्ज कर भाजपा को अपने दम पर सरकार बनाने के प्रयासों को करारी चोट पहुंचाई है।
चुनाव में जनता ने पिछले दो चुनावों की तरह अकेले भाजपा पर इनायत नहीं बरसाई है। भाजपा का अपने लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार सीटों का लक्ष्य इस बार पूरा नहीं हो पाया।
विपक्षी गठबंधन इंडिया ने एग्जिट पोल्स के अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। 4 जून को आए नतीजों में विपक्ष की ओर से कांग्रेस की 99 सीटों के साथ सपा ने 37, तृणमूल कांग्रेस ने 29, डीएमके ने 22 और शिवसेना (उद्धव) ने 9 सीटें जीतीं। वैसे तो पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा था, मगर उसे शामिल करने से इंडिया गठबंधन की कुल सीटें 234 हो जाती हैं। हालांकि सत्ता से दूर रहने के बावजूद इन नतीजों पर पूरे विपक्ष में खुशी की लहर है। विपक्ष ने संकेत दिए हैं कि वे एनडीए के घटक दलों के साथ संपर्क में हैं और संभव हुआ, तो सरकार बनाने का प्रयास करेंगे।
बीते दो चुनाव की तरह इस बार ऐसा लगता है कि न तो ब्रांड मोदी का पुराना और व्यापक असर दिखा और न ही राममंदिर, समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद-370 जैसे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे अपना व्यापक असर छोड़ पाए। इन मुद्दों पर इंडिया गठबंधन की आरक्षण और संविधान बचाओ की मुहिम कहीं न कहीं भारी पड़ती दिखी है। स्मृति इरानी, महेंद्र नाथ पांडे समेत 19 मंत्री इस चुनावी जंग में धराशायी हो गए। भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ, जहां उसे पिछली बार की 62 सीटों के मुकाबले इस बार सिर्फ 33 पर ही संतोष करना पड़ा। वहीं, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र में औसत और संभावना वाले प. बंगाल, तेलंगाना जैसे राज्यों में खराब प्रदर्शन ने भाजपा की बड़ी जीत हासिल करने के प्रयास को गहरा आघात पहुंचाया है।