ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। स्वदेशी रूप से विकसित हरित प्रणोदन प्रणाली ने एक प्रमुख मिशन के तहत जारी किए गए पेलोड पर ‘इन-आर्बिट’ कार्यक्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। रक्षा मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इसे अंतरिक्ष रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग बताया। साथ ही कहा कि इस प्रणाली को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) के तहत विकसित किया गया है।
इस नई तकनीक के जरिए ‘लो आर्बिट स्पेस’ के लिए गैर नुकसानदेह और पर्यावरण अनुकूल प्रणोदन प्रणाली तैयार हुई है। इसमें स्वदेशी रूप से विकसित प्रोपेलेंट, फिल और ड्रेन वाल्व, लैच वाल्व, सोलेनाइड वाल्व, कैटलिस्ट बेड, ड्राइव इलेक्ट्रानिक्स शामिल हैं। यह उच्च क्षमता आवश्यकताओं वाले अंतरिक्ष मिशन के लिए आदर्श है। मालूम हो कि टीडीएफ रक्षा मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसे रक्षा और एयरोस्पेस, विशेषकर स्टार्ट-अप और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) में नवोन्मेष के वित्तपोषण के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत डीआरडीओ द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। डीआरडीओ के परियोजना निगरानी और सहायता समूह के मार्गदर्शन में विकास एजेंसी द्वारा इस परियोजना को पूरा किया गया है।
मंत्रालय ने बताया कि इसने पीएसएलवी सी- 58 मिशन द्वारा लांच किए गए पेलोड पर कक्षा में कार्यक्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है। एल्टीट्यूड कंट्रोल और माइक्रो सैटेलाइट को कक्षा में रखने के लिए ग्रीन मोनोप्रोपेलेंट थ्रस्टर नाम के इस प्रोजेक्ट को बंेगलुरु स्थित स्टार्ट-अप बेलाट्रिक्स एअरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (विकास एजेंसी) को दिया गया था। इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क, बंेगलुरु में पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल (पीओईएम) से टेलीमेट्री डेटा को ग्राउंड लेवल साल्यूशन के साथ मान्यता दी गई है और इसने सभी प्रदर्शन मापदंडों से अधिक प्रदर्शन किया है।