ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। ब्लिट्ज इंडिया की ओर से आपको ऐसी जानकारी दी जा रही है जिसे पढ़ते ही आप चौंक जाएंगे। आपको जीवन में एक बड़ी सीख भी मिलेगी कि जीवन के हर कदम पर सच्चाई और प्रमाण को अपनी आंखों से जरूर देखो। बग़ैर देखे किसी पर बात की सच्चाई या व्यक्ति पर भरोसा कभी मत करना।
अब आपको बताते हैं सुप्रीम कोर्ट के हाल के ही एक फैसले के बारे में । सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के एक अस्पताल की भारी लापरवाही पर कठोर कार्रवाई की है। ये मामला उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो अस्पतालों में अपने प्रियजनों के इलाज और देखभाल के लिए जाते हैं।
30 दिसंबर 2009 का मामला
मामला 30 दिसंबर 2009 का है। केरल के एरनाकुलम जिले के एक बड़े अस्पताल में पुरुषोत्तम नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। मौत का कारण कुछ भी हो, लेकिन जो घटना इसके बाद हुई, वह अस्पताल की भारी लापरवाही को उजागर करती है। अगले ही दिन, उसी अस्पताल में एक और मरीज, एपी कांति की भी मौत हो गई।
अस्पताल की गंभीर गलती
अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें असामान्य क्या है। असली क़िस्सा तो यहां से शुरू होता है। अस्पताल ने एक गंभीर गलती करते हुए पुरुषोत्तम का शव एपी कांति के परिवार को सौंप दिया। कांति के परिवार ने बिना किसी संदेह के उस शव को अपना मानकर अंतिम संस्कार भी कर दिया।
पिता का शव अब उपलब्ध नहीं, किसी और का सौंप दिया
वहीं, जब पुरुषोत्तम के परिवार वाले अस्पताल पहुंचे, तो उन्हें यह कहकर चौंका दिया गया कि उनके पिता का शव अब उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, उन्हें एपी कांति का शव सौंप दिया गया। ज़रा सोचिए, ऐसे समय में जब परिवार पहले से ही गहरे दुख में होता है, उस पर यह गलत शव सौंपने की घटना कितनी आहत देने वाली हो सकती है। इस असहनीय लापरवाही से पीड़ित, पुरुषोत्तम के बेटे ने अस्पताल के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू की।
स्टेट कंज्यूमर फोरम का सहारा लिया
सबसे पहले, उन्होंने इस मामले को स्टेट कंज्यूमर फोरम में उठाया। स्टेट कंज्यूमर फोरम ने पुरुषोत्तम के परिवार को पूरा न्याय दिलाने के लिए अस्पताल को 25 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया। यह फैसला महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे अस्पतालों को यह संदेश मिला कि वे अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते।
अस्पताल ने इस फैसले को नेशनल कंज्यूमर फोरम में चुनौती दी, जहां मुआवजे की राशि को घटाकर 5 लाख कर दिया गया। जरा सोचिए, एक परिवार जिसने इतनी बड़ी गलती का सामना किया, उसे मुआवजा भी कम मिल रहा था। स्वाभाविक था कि पुरुषोत्तम का परिवार इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
नेशनल कंज्यूमर फोरम का फैसला रद किया
अब, यहां पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। जस्टिस कोहली की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को गहराई से समझा और अंततः नेशनल कंज्यूमर फोरम के फैसले को रद कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट कंज्यूमर फोरम के निर्णय को बहाल करते हुए अस्पताल को 25 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अस्पताल ने जो किया, वह सेवा में घोर लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण है।
अस्पताल अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता
उन्होंने कहा, अस्पताल ने याचिकाकर्ता के पिता का शव किसी और परिवार को दे दिया, जिसने अंतिम संस्कार भी कर दिया।
ऐसी स्थिति में अस्पताल अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
इस बयान से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है और सुनिश्चित किया है कि न्याय हो।
इस फैसले का महत्व सिर्फ इस मामले तक सीमित नहीं है।
यह एक बड़ा संदेश है कि अस्पतालों को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना चाहिए।
एक छोटी सी गलती भी किसी परिवार के जीवन को पूरी तरह बदल सकती है।
यह फैसला स्वास्थ्य सेवाओं में जवाबदेही को और भी सुदृढ़ करता है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
न्यायिक व्यवस्था कितनी सजग, सत्य और न्यायपूर्ण
इस जानकारी के बाद आपको यह समझने में जरा भी देर नहीं लगेगी की हमारे देश में न्यायिक व्यवस्था कितनी सजग , सत्य और न्यायपूर्ण है।
ऐसे फैसले अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति और अधिक सजग बनाएंगे।