ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। हार्ट फेल्योर (हृदय की कार्य क्षमता कम होना) नाम सुनकर ही लोग सदमे में आ जाते हैं और एक आम धारणा है कि इसके बाद जिंदगी नहीं बचती या हृदय प्रत्यारोपण ही इलाज का विकल्प होता है। हार्ट फेल्योर की बीमारी पर एम्स में आयोजित एक कार्यक्रम में संस्थान के डाक्टरों ने कहा कि हृदय यदि पूर्ण क्षमता से काम करना कम कर दे, तब भी जिंदगी चलती रह सकती है। अब ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं, जिनसे हृदय की कार्यक्षमता 20 से 50 प्रतिशत बढ़ाई जा सकती है। इसलिए हृदय खराब होने की बीमारी से पीड़ित मरीजों को उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। वैसे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित व हार्ट अटैक होने पर जल्दी इलाज सुनिश्चित होने पर हृदय खराब होने की बीमारी से बचाव संभव है।
एम्स में मनाया गया प्रत्यारोपण दिवस
एम्स ने 29 वर्ष पहले देश का पहला हृदय प्रत्यारोपण किया था। इसके मद्देनजर एम्स में राष्ट्रीय हृदय प्रत्यारोपण दिवस मनाया गया। जिसमें डाक्टरों ने हृदय खराब होने की बीमारी और इलाज के विकल्पों पर चर्चा की। साथ ही मरीजों ने भी अपने अनुभव साझा किए। एम्स के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. अंबुज राय ने कहा कि हृदय खराब होने के दो तिहाई मामलों का कारण हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक है।
एक तिहाई लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित
दिल्ली में हुए सर्वे में देखा है गया है कि करीब एक तिहाई लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं। इसका इलाज आसान और दवाएं सस्ती होने के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी में भी सिर्फ दस से 20 प्रतिशत मरीज ही अपना ब्लड प्रेशर नियंत्रित रख पाते हैं। एक तिहाई मरीजों को मालूम ही नहीं होता कि उन्हें ब्लड प्रेशर है। कुछ लोग जानकारी होने के बावजूद दवा ठीक से नहीं लेते। देश में करीब 30 करोड़ लोगों को ब्लड प्रेशर की बीमारी है। इसमें करीब 24 करोड़ लोग ब्लड प्रेशर को नियंत्रित नहीं रखते। हार्ट अटैक होने पर यदि जल्द इलाज न हो तो हृदय की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। यदि लोग अपना ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखें और हार्ट अटैक के मरीजों का जल्द इलाज हो तो हृदय खराब होने की बीमारी बहुत कम हो जाएगी।
जीवनशैली में सुधार जरूरी
सहायक प्रोफेसर डा. सतवीर यादव ने कहा कि दवा के साथ-साथ मरीजों को जीवनशैली में सुधार और नियमित व्यायाम भी करना जरूरी होता है।
कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. संदीप सेठ ने कहा कि हृदय खराब होने की बीमारी से पीड़ित पांच प्रतिशत मरीजों को ही महंगे इंप्लांट या हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। बाकी मरीज दवाओं से भी लंबे समय तक ठीक रहते हैं। कार्यक्रम में पहुंचे एक व्यक्ति ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उनकी पत्नी को यह बीमारी है।
वर्ष 2018 से उनका इलाज चल रहा है। जब वह एम्स में भर्ती हुई थीं तब उनका हृदय 23 प्रतिशत काम कर पा रहा था। नियमित दवाओं की बदौलत अब हृदय की कार्यक्षमता बढ़कर 41 प्रतिशत हो गई है। एक महिला ने बताया कि उन्हें 29 वर्ष की उम्र में हृदय कमजोर होने की बीमारी सामने आई थी। उस समय इलाज के विकल्प सीमित थे लेकिन एम्स में इलाज शुरू हुआ। अब आठ वर्ष हो चुके हैं। अब वह अपना सारा काम खुद करती हैं। साथ में नौकरी भी करती हैं।