ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। 370 मीटर व्यास वाला एक खतरनाक क्षुद्रग्रह पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। इसके पृथ्वी से टकराने की भी प्रबल संभावना है। उसके 13 अप्रैल 2029 को धरती के पास से गुजरने की संभावना है।
ग्रह रक्षा की दिशा में काम
आपको बता दें कि दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियां पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों से बचाने के लिए ग्रह रक्षा क्षमताओं का निर्माण करने की दिशा में काम कर रही हैं। इसरो ने भी अपने मजबूत कंधों पर इसकी जिम्मेदारी ली है। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने इसकी ताजा जानकारी दी है।
उन्होंने कहा, हमारा जीवनकाल 70-80 साल का होता है और हम अपने जीवनकाल में ऐसी कोई आपदा नहीं देखते हैं। इसलिए हम यह मानकर चलते हैं कि ऐसा होने की संभावना नहीं है। अगर आप दुनिया और ब्रह्मांड के इतिहास को देखें तो ग्रहों की ओर क्षुद्रग्रह के पहुंचने की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। मैंने एक क्षुद्रग्रह को शूमेकर-लेवी से टकराते देखा है। अगर पृथ्वी पर ऐसी कोई घटना होती है तो हम सभी विलुप्त हो जाएंगे। उन्होंने आगे कहा, ये वास्तविक संभावनाएं हैं। हमें खुद को तैयार करना चाहिए। हम नहीं चाहते कि यह धरती के साथ हो। हम चाहते हैं कि मानव और सभी जीव यहां सुरक्षित रहें लेकिन हम इसे रोक नहीं सकते। हमें इसके विकल्प खोजने होंगे।
इसलिए हमारे पास एक तरीका है जिससे हम इसे विक्षेपित कर सकते हैं। हम पृथ्वी के निकट आने वाले क्षुद्रग्रह का पता लगा सकते हैं और उसे दूर ले जा सकते हैं। कभी-कभी यह असंभव भी हो सकता है। इसलिए प्रौद्योगिकी विकसित करने की आवश्यकता है। इसे विक्षेपित करने के लिए वहां भारी प्रॉप्स भेजने की क्षमता, अवलोकन में सुधार और एक प्रोटोकॉल के लिए अन्य देशों के साथ संयुक्त रूप से काम करने की जरूरत है।
मानवता एक साथ मिलकर काम करेगी
इसरो प्रमुख ने कहा, “यह आने वाले दिनों में आकार लेगा। जब खतरा वास्तविक हो जाएगा, तो मानवता एक साथ मिलकर इस पर काम करेगी। एक अग्रणी अंतरिक्ष राष्ट्र के रूप में हमें जिम्मेदारी लेने की जरूरत है। यह केवल भारत के लिए ही नहीं है, यह पूरी दुनिया के लिए है कि हमें तकनीकी क्षमता, प्रोग्रामिंग क्षमता और अन्य एजेंसियों के साथ काम करने की क्षमता तैयार करने और विकसित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।” आपको बता दें कि वह विश्व क्षुद्रग्रह दिवस पर इसरो द्वारा आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
30 जून 1908 को भी टकराया था क्षुद्र ग्रह
इससे पहले 30 जून 1908 को साइबेरिया के सुदूर स्थान तुंगुस्का में एक क्षुद्रग्रह के टकराने के कारण हुए विशाल हवाई विस्फोट ने लगभग 2200 वर्ग किलोमीटर घने जंगल को तहस-नहस कर दिया था। इसके कारण 8 करोड़ पेड़ नष्ट हो गए थे।
प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं
ऐसा कहा जाता है जब-जब यह धरती से टकराती है तो कई प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं। इस बात की भी परिकल्पना है कि इसी के कारण धरती से डायनासोर विलुप्त हो गए थे।