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नई दिल्ली। भारत का संघीय ढांचा केंद्र और राज्य के ताने-बाने से बना है। बुनावट और कसावट इसका सौंदर्य और विविधताएं-अनेकताएं इसकी विशेषताएं हैं। किसी भी बेहतरीन वस्तु, संगठन, स्वरूप की मूल बनावट में संतुलन कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। केंद्र और राज्यों के बीच यह ताना-बाना कभी-कभी बिखरता सा दिखाई देने लगता है जिसका सीधा असर सामान्य जन पर पड़ता दिखाई देता है। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। जैसे स्वास्थ्य से जुड़ी महत्वपूर्ण योजना आयुष्मान भारत और कई अन्य योजनाओं को दिल्ली, राजस्थान, बंगाल, छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारों ने लागू नहीं किया। ऐसे ही केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई की कुछ राज्यों में नो एंट्री लगा दी गई। नतीजन गंभीर अपराध वाले केसों में जांच का कार्य अवरूद्ध हो गया। फिल्म सेंसर बोर्ड ने फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को स्क्रीनिंग की अनुमति दे दी। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने रिलीज को हरी झंडी दिखा दी। इसके बावजूद बंगाल और तमिलनाडु ने अज्ञात, अनजान, अमूर्त आशंकाओं के चलते फिल्म पर रोक लगा दी। सीबीआई और ईडी को अपना बैरी समझ कर कुछ केंद्रीय व कुछ राज्यों के सियासी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में संयुक्त याचिका दायर की जिसे कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि राजनीतिक दलों के लिए अलग से संहिता नहीं बनाई जा सकती। कई और उदाहरण हैं जो केंद्र-राज्य संबंधों में आए असंतुलन को स्पष्टत: दर्शाते हैं। इससे पहले कि यह असंतुलन और बढ़े अथवा अराजक हो जाए, हमें संविधान के स्तर पर ऐसी स्थिति को रोकने के लिए समुचित उपाय करने की जरूरत है।
लोकतंत्र में केंद्र व राज्यों के बीच मतभेद व मनभेद होना स्वाभाविक है किंतु हमें ऐसा संवैधानिक तंत्र विकसित करना आवश्यक है जो किसी भी कीमत पर देश की जनता के हितों को दांव पर न लगने दे क्योंकि कोई व्यवस्था जनहित से ऊपर नहीं है।
हमारे पास ऐसा तंत्र हो जो सभी के संदेहों, आशंकाओं का निष्पादन कर सके। ऐसी सर्वदलीय कमेटी बनाई जाए जो राष्ट्रहित के प्रयोजनों को पूरा करने में सक्षम हो। ऐसा मंच हो जहां बैठ कर सब अपने मतभेदों को दूर कर सकें। संभव सबकुछ है, जरूरत देश के 1.42 अरब लोगों के हितों को देखते हुए व्यापक संदर्भों में गंभीर मंथन करने और सकारात्मक निष्कर्ष तक पहुंचने की है। भारतीय सभ्यता व संस्कृति की सदियों पुरानी फिलोसाॅफी ‘वसुधैव कुटुम्बकम ्’ को नए संदर्भों, बदले परिवेश में अंगीकार करने की आवश्यकता है। निजी हित को जनहित पर हावी होने से रोकना होगा। देश का संघीय ताना-बाना छिन्न-भिन्न करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। केंद्र व राज्यों के अधिकारों पर पिछले दिनों महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नए आदेश जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट ने संघीय ढांचे पर क्या कहा?
सर्विसेज कंट्रोल किसके हाथ में हो, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा कि चुनी हुई सरकार के पास ब्यूरोक्रेट्स का कंट्रोल होना चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार का कंट्रोल ऑफिसर पर नहीं होगा तो फिर जिम्मेदारी और जवाबदेही खत्म हो जाएगी। केंद्र सरकार का राज्य के मामले में अधिकार सीमित है। यह सुनिश्चित किया गया है कि राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार टेकओवर न करे। फेडरल सिस्टम के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के अधिकार क्षेत्र तय किए गए हैं। संघीय संविधान में दो तरह की सरकार काम करती है एक राष्ट्रीय स्तर पर और दूसरी राज्य स्तर पर।
सरकारिया आयोग
जून 1983 में न्यायाधीश रणजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में सरकारिया आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने जनवरी 1988 में रिपोर्ट प्रस्तुत की जो 4,900 पृष्ठों की थी। रिपोर्ट ने 247 सिफारिशें कीं। ये सिफारिशें केंद्र और राज्यों के वैधानिक, प्रशासनिक और वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं। आयोग पर 150.61 लाख रुपए खर्च हुए। आयोग ने राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की केंद्र की शक्ति को उचित ठहराया, परंतु हिदायत दी कि इस शक्ति का प्रयोग बहुत ही कम और केवल उस समय किया जाए जब स्थायी तथा लोकतांत्रिक सरकार को कायम रखने के लिए दूसरे सभी साधन असफल हो गए हों।
– सरकारिया आयोग ने 1988 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
– 4,900 पृष्ठों वाली इस रिपोर्ट में कुल 247 सिफारिशें।
– ये सिफारिशें केंद्र और राज्यों के वैधानिक, प्रशासनिक और वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
– इस आयोग पर कुल 150.61 लाख रुपए खर्च हुए।
– सरकारिया आयोग ने राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करने की केंद्र सरकार की शक्ति को उचित ठहराया
– केंद्र और राज्य के बीच संबंध में संविधान के प्रावधान में कोई बदलाव न किया जाए
– देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है कि केंद्र मजबूत हो
– लेकिन तमाम अन्य कमीशन की रिपोर्टों की तरह यह रिपोर्ट भी धरातल पर कभी नहीं उतर सकी
भारत एक सहयोगात्मक संघीय ढांचे वाला देश है। यानी केंद्र और राज्य को मिलकर चलना है। अगर समय-समय पर कुछ टकराव होता है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से दुरुस्त किया जाता रहा है। समय के साथ इसमें सुधार होता रहेगा और एक समय के बाद यह आदर्श स्थिति में तब्दील हो जाएगा।