नीलोत्पल आचार्य
नई दिल्ली। जब तापमान 48 डिग्री से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच घूमता है तो मानव शरीर के लिए कितना खतरनाक हो जाता है, यह हम आपको बताएंगे। ब्रेन से लेकर शरीर के अलग हिस्सों में गर्मी अलग-अलग प्रकार से गंभीर असर डालती है।
सामान्य मानव शरीर का तापमान 98.6 डिग्री फारेनहाइट होता है जो 37 डिग्री सेल्सियस के बराबर होता है । आमतौर पर माना जाता है कि अधिकतम तापमान जिस पर मनुष्य जीवित रह सकता है वह 108.14 डिग्री फारेनहाइट या 42.3 डिग्री सेल्सियस है। 43 डिग्री सेल्सियस या उच्च तापमान शरीर के प्रोटीन को विकृत कर सकता है, मस्तिष्क को जबरदस्त क्षति पहुंचा सकता है। 48-50 डिग्री सेल्सियस तापमान तो मानव शरीर के लिए झेल पाना ही मुश्किल होता है।
भ्रम, दौरे सताएंगे
50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के संपर्क में लंबे समय तक रहने से मस्तिष्क को जबरदस्त क्षति हो सकती है, जिससे भ्रम, दौरे बढ़ने के साथ चेतना खत्म हो सकती है।
46-60 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान पर मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं, क्योंकि मस्तिष्क कोशिकाओं के भीतर प्रोटीन जमना शुरू हो जाता है।
मस्तिष्क कोशिकाओं पर विनाशकारी प्रभाव
40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान विभिन्न प्रकार की मस्तिष्क कोशिकाओं पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। 39 डिग्री सेल्सियस से अधिक उच्च मस्तिष्क तापमान मस्तिष्क को कई तरह से चोट दे सकता है, मसलन अमीनो एसिड बढ़ना, मस्तिष्क से ब्लीडिंग और न्यूरोनल साइटोस्केलेटन के प्रोटियोलिसिस में वृद्धि।
नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती
50 डिग्री सेल्सियस ऐसा काफी ज्यादा तापमान है जो मस्तिष्क कोशिकाओं को तेजी से नुकसान पहुंचाता और फिर इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।
नाटकीय रूप से मस्तिष्क का संतुलन और ऑक्सीजन की खपत को कम कर देता हैं। लिहाजा इस तापमान पर बाहर निकलना घातक साबित होता है। हृदय और खून के प्रवाह तंत्र को भी प्रभावित करता है।
इसके अलावा 50 डिग्री से ज्यादा तापमान हृदय और खून के प्रवाह तंत्र को भी प्रभावित करता है। रक्त प्रवाह को बनाए रखने और शरीर को ठंडा रखने के लिए हृदय गति तेजी से बढ़ जाती है | ये उन लोगों के लिए विशेष रूप से खतरनाक हो सकता है, जिन्हें पहले से हृदय संबंधी कोई बीमारी है। निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के कारण मांसपेशियों में ऐंठन हो सकती है, जिससे सरल काम करना भी मुश्किल हो जाता है ।
चकत्ते और अंदर का खून बाहर आने लगता है
गर्मी के कारण चकत्ते और अंदर का खून बाहर आने लगता है, त्वचा के पास की रक्त कोशिकाएं फट सकती हैं, ऑक्सीजन या पोषक तत्वों की कमी वाले क्षेत्रों में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है। सांस लेने की दर भी बढ़ जाती है, जिससे तेज, उथली सांस लेने की समस्या हो सकती है। निर्जलीकरण और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के कारण मतली, उल्टी और दस्त हो सकते हैं।
ओवरआल असर
50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में लंबे समय तक रहने से गर्मी से थकावट, हीटस्ट्रोक और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है, अगर इसका तुरंत इलाज न किया जाए।
इन प्रभावों को कम करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं-
1. पर्याप्त मात्रा में पानी पीना
2. अधिक मेहनत वाले कामों से बचना
3. जब भी संभव हो छाया या वातानुकूलित स्थान का प्रयोग करना।