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जयपुर। राजस्थान के सत्यनारायण पांडेय ने रामलला के बाल स्वरूप की तीन में से एक मूर्ति तैयार की है। उन्होंने मंदिर के लिए गरुण व हनुमानजी सहित अन्य मूर्तियां भी बनाई हैं, जिन्हें स्थापित कर दिया गया है। उनका दावा है कि रामलला की मूर्ति बनाने से पहले उन्हें हनुमानजी ने स्वप्न में दर्शन दिए। इतना ही नहीं मूर्ति जब तैयार हो गई तो वेदपाठ सुनाने वाले युवा ब्राह्मण को भगवान ने स्वप्न में दर्शन देते हुए और अपने लिए पानी की मांग की।
सत्यनारायण बताते हैं, मैं 2022 में दीपावली के समय अयोध्या आया था। कारसेवकपुरम में विहिप के एक नेता से मिला। मैं रामलला को दो छोटी मूर्तियां सीएम योगी आदित्यनाथ को भेंट करने के लिए लाया था। वहां दोनों मूर्तियां भेंट की। उनसे रामलला की मूर्ति बनाने पर बात हुई। वह जयपुर आए तो पिताजी के समय के पुराने पत्थर दिखाए। 10 फुट लंबा, चार फुट चौड़ा व तीन फुट मोटा अत्यंत सुंदर पत्थर था। ऐसा करोड़ों पत्थरों में एक निकलता है। वह उस पत्थर का एक टुकड़ा लेकर चले गए। चंपत राय व अन्य ने उसे पसंद किया। संदेश मिलते ही पत्थर भेज दिया। फिर मुझे बुलाया। निर्देश हुआ कि कनक भवन में भगवान के दर्शन कर आएं। वहां देखा कि श्रीराम सरकार की मूर्ति जिस पत्थर से बनी है, मेरा पत्थर भी उसी खान का है। राजस्थान के मकराना में पाड़कुआं बेल्ट का यह पत्थर है। कनक भवन में भगवान की 15 वर्ष उम्र वाली मूर्ति है। राम-सीता की शादी 14-15 वर्ष की उम्र में हुई थी। उसी मूर्ति का 5 वर्ष का बाल स्वरूप अवतरित करना था।
– मंदिर के लिए हनुमानजी सहित अन्य मूर्तियां भी बनाईं
छह माह में तैयार कर निशुल्क दी
सत्यनारायण बताते हैं, जहां हम मूर्ति बनाते हैं, उसी के नजदीक विवेक-सृष्टि में पढ़ाई करने वाले कुछ लड़के रहते हैं। उनमें एक त्रिपुरारी शरण त्रिपाठी हैं। वह मूर्ति की पूजा करने आता-जाता था। रामलला सुबह चार बजे उसके सपने में आए और बोले कि मेरी मूर्ति के आगे आज पानी नहीं रखा। उसने सुबह आकर यह बात बताई और कहा कि आपके रामलला को मैंने सपने में देखा है। वास्तव में प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्राकट्य की यही स्थिति होती है। छह महीने में मूर्ति बनाई। दो सहयोगी साथ थे। 12 से 18 घंटे काम किया। मैंने यह मूर्ति निशुल्क दी है।
रामलला में दिव्यता के लिए की शिव की मनोदशा की कल्पना
सत्यनारायण बताते हैं कि तुलसीदासजी ने श्रीराम के जिस स्वरूप का वर्णन किया, उसका ध्यान किया। ऐसा स्वरूप जिसे देखकर भक्त अपलक निहारता रहे। सुध-बुध खो दे। भगवान शिव जिस तरह मां पार्वती को लंका से लौटने पर हनुमान के अपने प्रभु श्रीराम से मिलन की कथा सुनाते हुए सुध-बुध खो बैठे थे, उसी मनोदशा को ध्यान में रखकर रामलला की मूर्ति तैयार की।
मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व वाली दिव्यता लाने में सफल रहा। वह कहते हैं, तीन मूर्तिकार जहां मूर्तियां बना रहे थे, वहां नौ वेदपाठियों की पूजा के लिए ड्यूटी थी। हम तीन-तीन लोगों के समूह में सुबह-शाम जाते थे और बनाई जा रही मूर्तियों की पूजा के बाद बाद वेद मंत्र सुनाते थे। 15-15 मिनट पूजा का तय था।