ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। दिल्ली-मेरठ जैसे कॉरिडोर की मांग देश के कई हिस्सों में उठने लगी है। इनमें दक्षिण भारत के राज्य सबसे आगे हैं, लेकिन ऐसी परियोजनाएं तब पूरी होती हैं जब राज्य सरकारें सहयोग के लिए तैयार हों। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में सबसे पहले शहरी परिवहन के लिए रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) के रूप में एनसीआर के शहरों को आपस में जोड़ने के लिए इस तरह के माध्यम की परिकल्पना की गई थी, लेकिन इसे धरातल पर उतरने में 25 साल लग गए। योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर 2017 से इस प्रोजेक्ट में नहीं दिखाई होती तो ‘नमो भारत’ अभी भी दूर की कौड़ी होती।
इस प्रोजेक्ट की टाइम लाइन के अहम पड़ावों की अगर बात की जाए तो 2006 में एक टास्कफोर्स का गठन हुआ, इसके तीन साल बाद परियोजना के लिए 2009 में स्पेशल पर्पज व्हीकल का गठन किया गया, अगले साल डीपीआर के लिए एजेंसी का चयन किया गया, 2011 में केंद्र सरकार ने अपनी सैद्धांतिक सहमति दी, 2013 में एनसीआर परिवहन निगम अस्तित्व में आया, 2019 में पीएम ने शिलान्यास किया और इसके चार साल बाद पीएम ने दिल्ली-मेरठ के प्राथमिकता वाले खंड का उद्घाटन कर दिया।
पीएम ने अपने संबोधन में पहले चरण में दो और कारिडोर दिल्ली-गुरुग्राम-अलवर और दिल्ली-पानीपत पर काम तेज होने की सूचना दी। माना जा रहा है कि पीएम की ओर से इन तीनों कारिडोर का जिक्र किए जाने के बाद ये सभी प्रोजेक्ट गति पकड़ेंगे।