ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि वोटरों ने मतदान करते वक्त राज्य सरकार के बजाय केंद्र सरकार के प्रदर्शन को प्रमुखता दी और एनडीए सरकार की वापसी की राह खोल दी। हालांकि राजस्थान और हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा। चुनाव परिणामों को लेकर सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के तहत हुए सर्वेक्षण की अंतिम कड़ी में ये तथ्य सामने आए हैं। सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि सामाजिक समीकरणों ने भी जनादेश तय करने में अहम भूमिका निभाई। गुजरात में भाजपा ने पिछले चुनाव के समान बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन उसका वोट शेयर कम हो गया।
दिल्ली में भाजपा को उच्च जातियों और ओबीसी से बड़ा समर्थन मिला। इस लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा के मत प्रतिशत में मामूली गिरावट आई है। वहीं 2019 की तुलना में इंडिया गठबंधन के संयुक्त वोट शेयर में कुछ सुधार हुआ।
दिल्ली में भाजपा को उच्च जातियों और ओबीसी से बड़ा समर्थन मिला। दलितों के बीच भाजपा का वोट शेयर गठबंधन के बराबर है। भाजपा को मुस्लिम समुदाय के वोटों का सातवां हिस्सा (14 प्रतिशत) मिला। यह मुस्लिमों के बीच उसके पूरे भारत के औसत वोट शेयर से दोगुना है। गठबंधन का संयुक्त वोट शेयर मुस्लिमों (83 प्रतिशत) में काफी अधिक है। मतदाताओं ने राज्य सरकार के प्रदर्शन की तुलना में केंद्र सरकार के प्रदर्शन पर अधिक ध्यान दिया। लगभग दो तिहाई (63 प्रतिशत) मतदाताओं ने भाजपा को एक और मौका देने में रुचि दिखाई।
राजस्थान में भाजपा की हैट्रिक रोकी
राजस्थान में इंडिया गठबंधन ने 11 सीटें जीतीं। भाजपा को 2019 के मुकाबले नौ प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ और कांग्रेस का मत प्रतिशत तीन प्रतिशत से अधिक बढ़ गया। कांग्रेस ने राज्य के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में शानदार प्रदर्शन किया। ये क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़े हैं। यहां उसने 8 में से 7 सीटें जीतीं। इस क्षेत्र में लोगों ने किसान आंदोलन में सक्रियता दिखाई थी और अग्निवीर योजना का भी प्रभाव पड़ा था। भाजपा ने पश्चिमी और दक्षिण- पूर्वी हिस्सों में अपना गढ़ बरकरार रखते हुए 12 में से नौ सीटें जीतीं।
हरियाणा में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन
गैर-जाट वोटों को एकजुट करने के लिए चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलने के बावजूद, हरियाणा में कांग्रेस ने भाजपा को मात दे दी। चुनाव में भाजपा को वोट शेयर गिरकर 46 प्रतिशत रह गया। वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 44 प्रतिशत तक बढ़ गया। कांग्रेस ने बनिया, उच्च जातियों (ब्राह्मण, राजपूत, पंजाबी) और ओबीसी (यादव और गुज्जर) सहित भाजपा के गैर-जाट मतदाता आधार को अपने पक्ष में किया, जबकि भाजपा ने अपने उच्च जाति के वोटों को बरकरार रखा। चुनावों में आधे से ज्यादा ओबीसी ने कांग्रेस को वोट दिया। जाट वोटरों ने भी कांग्रेस का पक्ष लिया।
केरल में भाजपा ने खाता खोला
वर्ष 2019 के चुनाव की तरह कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने केरल में 2024 के चुनाव में 20 में से 18 सीटें जीत लीं। भाजपा के लिए राज्य में चुनावों में अपना खाता खोलना ऐतिहासिक उपलब्धि रही। लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने सिर्फ एक सीट जीती।
सत्ता विरोधी लहर
लोकनीति-सीएसडीएस पोस्ट पोल में केंद्र सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नजर आती है। अध्ययन में, हर दस में से सात उत्तरदाताओं ने कहा कि एनडीए सरकार को एक और मौका नहीं दिया जाना चाहिए। वोट देते समय एक चौथाई (26 प्रतिशत) उत्तरदाताओं ने केंद्र सरकार द्वारा किए गए कामों पर विचार किया, जबकि एक चौथाई (24 प्रतिशत) ने राज्य सरकार के कामों पर ध्यान दिया। हालांकि, एक तिहाई (32 प्रतिशत) उत्तरदाताओं का मानना था कि किसे वोट देना है, यह तय करते समय केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के कामों को ध्यान में रखा गया था।
गुजरातः भाजपा को 13 फीसदी वोट की हानि
गुजरात का सियासी रंग भाजपा के रंग में रहा। पिछले दो आम चुनावों में भाजपा ने यहां से सभी 26 सीटें जीती थीं। इस बार उसे एक सीट पर कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा है। वोट शेयर की बात करें तो भाजपा को 2019 की तुलना में 13 प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ है। इसका कारण भाजपा से क्षत्रियों की नाराजगी बताई जा रही है। सर्वेक्षण के अनुसार, कांग्रेस ने खुद को ग्रामीण क्षेत्रों के साथ क्षत्रियों, दलितों और आदिवासी मतदाताओं के बीच मजबूत किया है। आंकड़ों के अनुसार दलित, आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा को बहुत कम वोट दिया है। दलितों का 46 जबकि आदिवासियों का 41 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिला है। भाजपा की रीढ़ माने जाने वाले 80 प्रतिशत पाटीदारों ने पार्टी को वोट दिया है। क्षत्रिय भाजपा से भले नाराज थे लेकिन उन्होंने भी 58 प्रतिशत वोट भाजपा को दिया है। दस में से चार क्षत्रियों ने कांग्रेस को अपना वोट दिया है। गुजरात के सियासी रण में मोदी फैक्टर का जादू खूब चला है।
छत्तीसगढ़ःभाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ाई
छत्तीसगढ़ में मुख्य सियासी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच रहती है। हाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार से हवा भाजपा के पक्ष में रही। इस बार के आम चुनाव में भाजपा ने यहां से दस सीटें जीती हैं जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। सबसे बड़ी बात ये रही कि भाजपा का वोट प्रतिशत विधानसभा चुनाव की तुलना से भी ज्यादा रहा। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 47 फीसदी वोट मिला था, आम चुनाव में ये बढ़कर 53 फीसदी हो गया है। वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत पिछले कई चुनावों से 42 फीसदी के आसपास रहा है।
भाजपा को मिले महिला वोट
छत्तीसगढ़ में रोचक बात ये देखने को मिली है कि यहां गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई उम्मीदवारों को पुरुष मतदाताओं का खुलकर समर्थन मिला है। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद महतारी वंदन योजना लागू हुई। इसके तहत महिलाओं को हर माह एक हजार रुपये मिलने थे। राज्य सरकार ने वादा किया था कि आम चुनाव से पहले ये पैसा महिलाओं के बैंक खाते में जाएगा। संभव है कि इस वजह से भी भाजपा के पक्ष में महिलाओं का वोट जमकर पड़ा।
पंजाब ः वोटरों तक पहुंचने का माध्यम बना सोशल मीडिया
पंजाब में सर्वेक्षण में शामिल 51 प्रतिशत लोगों ने बताया, राजनीतिक दलों ने उनसे व्हाट्सऐप, मैसेज, फेसबुक और एक्स के माध्यम से संपर्क साधा। इसके अलावा दलों ने चुनावी सभा व नुक्क ड़ नाटक के जरिए भी वोटरों को साधने की कोशिश की।
मतदाताओं से जब पूछा गया कि क्या वे चुनावी सभा या नुक्क ड़ नाटक का हिस्सा बने। दस में से नौ ने इसका जवाब नकारात्मक रूप में दिया। 51 फीसदी लोग केंद्र सरकार से असंतुष्ट दिखे।
सर्वेक्षण के तथ्य
इस सर्वेक्षण में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और हरियाणा समेत 23 राज्यों के कुल 19,663 लोग शामिल थे। सर्वेक्षण 772 मतदान केंद्रों पर किया गया जो 191 संसदीय क्षेत्रों के 193 विधानसभा सीटों से जुड़े हैं। सर्वेक्षण में लोगों से हुई सीधी बात के आधार पर ही नतीजे पर पहुंचा गया है।