ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। बच्चों में मोबाइल फोन और गैजेट्स की लत लगातार बढ़ रही है। इससे उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो रही है। परिणामस्वरूप देश में मायोपिया के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसको लेकर नेत्ररोग विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि मुंबई सहित देश के शहरी इलाकों के 5 से 15 आयु वर्ग का हर तीसरा बच्चा वर्ष 2030 तक आंखों के रोग मायोपिया का शिकार हो सकता है। इसको लेकर नेत्ररोग विशेषज्ञों ने सतर्क किया है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि 2050 तक देश में हर दूसरे बच्चे को दूर की चीजें धुंधली नजर आएंगी। विशेषज्ञों ने इसके पीछे की वजह बच्चों द्वारा ज्यादा समय मोबाइल, कंप्यूटर जैसी स्क्रीन के साथ बिताना बताया है।
मुंबई में मिले थे 20 फीसदी मामले
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. बवरिया ने बताया कि मायोपिया को लेकर अस्पताल द्वारा मुंबई के शहरी स्लम क्षेत्र में सर्वे कराया गया था। 3-15 वर्ष की आयु के 1,000 बच्चों पर यह सर्वे किया गया था। इसमें पाया गया कि 1000 में से 200 बच्चों को मायोपिया था।
ये हैं लक्षण
बच्चों में मायोपिया के लक्षणों में दूर की चीजें धुंधली दिखाई देना, आंखों में थकान रहना, सिरदर्द होना शामिल हैं। खासकर ज्यादा देर तक स्क्रीन देखने के बाद ये दिक्क तें बढ़ जाती हैं। एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. स्मित एम. बरिया ने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि 1999 से 2019 तक 20 साल की अवधि में भारत में शहरी बच्चों में मायोपिया के मामले तीन गुना बढ़े हैं।
यह है वजहः डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों का ज्यादा देर बैठे रहना, मोबाइल, कंप्यूटर जैसी स्क्रीन को ज्यादा समय तक देखना और बाहर खेलने के लिए नहीं निकलने से मायोपिया की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों की आंखों, रेटिना और दिमाग पर बहुत जोर पड़ता है। इससे आंखों की रोशनी कमजोर होती है। वहीं बाहर कम निकलने से बच्चों को प्राकृतिक रोशनी नहीं मिल पाती जो आंखों के लिए बहुत जरूरी होती है। नियमित आंखों की जांच और बच्चों को बाहरी गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करने पर डॉक्टर ने जोर दिया है।
विशेषज्ञों के अनुसार अगर नहीं संभले तो शहरी बच्चों में मायोपिया की व्यापकता 2030 में बढ़कर 31.89 प्रतिशत, 2040 में 40 और 2050 में 48.1 प्रतिशत हो जाएगी।