ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अकेले बहुमत लाने में कामयाब नहीं हो पाई। उसे सबसे ज्यादा नुकसान उसका गढ़ कहे जाने वाली हिंदी बेल्ट में ही हुआ।
यूपी में उसे सबसे ज्यादा 29 सीटों का नुकसान हुआ । 2019 में उसे 62 सीटें मिली थीं, जबकि इस बार पार्टी 33 पर सिमट गई। दूसरा सबसे बड़ा राज्य राजस्थान है, जहां उसे 10 सीटों का नुकसान हुआ। 2019 की 24 के मुकाबले इस बार उसे 14 सीटों पर ही जीत मिल सकी है।
बिहार में भाजपा 2019 के मुकाबले 5 सीटों के नुकसान में रही। यहां उसकी सीटें 17 से घटकर 12 रह गईं। इसी तरह झारखंड में पिछली बार की 12 के मुकाबले उसे 8 सीटें ही मिलीं। यानी कुल 4 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं हरियाणा में पार्टी 10 से घटकर 5 सीटों पर सिमट गई।
हिंदी बेल्ट से इतर महाराष्ट्र में भी भाजपा को जबर्दस्त झटका लगा है। 2019 की 23 के मुकाबले इस बार 9 सीटें ही मिली हैं। यानी वहां भाजपा को पूरी 14 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। कुल मिलाकर भाजपा को इस बार 20 प्रतिशत सीटों का नुकसान हिंदी बेल्ट में हुआ है। वहीं कांग्रेस को 90 प्रतिशत सीटों का फायदा हुआ है।
भाजपा ने पश्चिम-दक्षिण साधा, हिंसाग्रस्त मणिपुर की दोनों सीटें हारीं
उत्तरप्रदेश: 80 में से 43 सीटें सपा और कांग्रेस ने जीतीं। 80 सीटों में से 37 सपा, 33 भाजपा, 6 कांग्रेस, 2 रालोद और 1 अपना दल और एक निर्दलीय को मिली। भाजपा की 29 सीटें घटीं, सपा की 32 बढ़ीं। इसके पीछे की वजह रही कि भाजपा का राम मंदिर का नरेटिव फेल हो गया। भाजपा अयोध्या नगरी की लोकसभा सीट फैजाबाद 50 हजार से ज्यादा वोटों से हारी। भाजपा ने यहां के 7 सांसदों को इस बार टिकट नहीं दिया। इसका नुकसान भी हुआ। दूसरी तरफ बसपा का 80-90 प्रतिशत वोट बैंक इंडिया की पार्टियों को शिफ्ट हो गया।
राजस्थान: 25 में से 14 भाजपा को, 8 कांग्रेस ने छीनीं। अन्य के खाते में 3 सीटें गई। 2019 में भाजपा ने यहां 24 सीटें जीती थीं। 1 सीट रालोपा के पास थी। इस बार जातीय समीकरण ने भाजपा का गणित बिगाड़ दिया। आरक्षण को लेकर एससी,एसटी में नाराजगी का असर वोटों पर हुआ। जाट-राजपूतों का गुस्सा और गुर्जर-मीणा का एक होना भी फैक्टर रहा। भाजपा का वोट शेयर 60प्रतिशत से घटकर 49 प्रतिशत पर आ गया।
हरियाणा: भाजपा 10 में से 5 ही सीटें बचा पाई। उसकी 5 सीटें छिन गईं। 2019 में भाजपा ने यहां 10 सीटें जीती थीं। इसकी सबसे बड़ी वजह किसान आंदोलन, एंटी इन्कम्बेंसी और पहलवानों के विद्रोह का असर रहा। यही कारण था कि भाजपा को अपनी आधी सीटें गंवानी पड़ीं।
बिहार: जदयू के साथ से भाजपा बड़े झटके से बच गई। इंडिया का वोट शेयर 9 प्रतिशत तक बढ़ गया। कुल 40 सीटों में से 12 जदयू, 12 भाजपा, 5 लोजपा, 4 राजद, 3 कांग्रेस, 2 सीपीआई (एमएल), 1-1 हम व निर्दलीय को मिलीं। 2019 में भाजपा 17, जदयू 16, लोजपा 6 और एक कांग्रेस ने जीती थी। इस बार यहां एनडीए का वोट शेयर 2 प्रतिशत घट गया। चुनाव से पहले जदयू को साथ लाकर भाजपा बड़े नुकसान से बच गई।
दक्षिण: केरल में भाजपा की एंट्री, तेलंगाना में दोगुनी, आंध्र में 3 सीटें जीतीं। कर्नाटक में 8 सीटें गवां दीं। दक्षिण की कुल 129 सीटों में भाजपा को 29, कांग्रेस को 40 सीटें गईं। तमिलनाडु की 39 में से 22 द्रमुक ने, 9 कांग्रेस और 8 सीटें अन्य पार्टियों ने जीतीं। कर्नाटक की 28 में से 17 भाजपा, 9 कांग्रेस, 2 जेडीएस को।
आंध्र की 25 में 16 टीडीपी, 4 वाईएसआर व भाजपा को 3 मिलीं। केरल में कांग्रेस को 14, भाजपा को 1 सीट मिली। तेलंगाना में भाजपा, कांग्रेस को 8-8 और अन्य ने एक सीटें जीतीं। इस जीत की वजह आंध्र में टीडीपी से भाजपा का गठबंधन रहा। केरल में चर्चित चेहरे सुरेश गोपी ने भाजपा का खाता खुलवाया।
तेलंगाना में बीआरएस का वोट भाजपा को ट्रांसफर होने से उसकी सीटें 4 से 8 हो गईं। तमिलनाडु में भाजपा को सीटें नहीं मिलीं, पर वोट शेयर बढ़ गया।
बंगाल: भाजपा की यहां 6 सीटें घटीं। तृणमूल की 7 सीटें बढ़ीं। 42 सीटों में से 29 पर दीदी का दबदबा रहा। भाजपा 12 पर सिमटी। कांग्रेस को एक सीट। 2019 में भाजपा ने 18 व टीएमसी ने 22 जीती थी। बंगाल में एनडीए का वोट शेयर करीब 2 प्रतिशत घटा और तृणमूल का 2 प्रतिशत बढ़ गया। संदेशखाली का मुद्दा बेअसर रहा। इंडिया का हिस्सा होने के बाद भी कांग्रेस से अलग होकर लड़ने से तृणमूल को फायदा मिला।