विनोद शील
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सप्ताह दो देशों- यूक्रेन और पोलैंड की ऐतिहासिक यात्रा पर रहे। यूक्रेन की उनकी आधिकारिक यात्रा को ‘शांति मिशन’ की संज्ञा दी जा रही है। मोदी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो 1991 में सोवियत संघ के विघटन से यूक्रेन के अस्तित्व में आने के 30 वर्ष बाद पहली बार यूक्रेन के दौरे पर गए हैं। तब से किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन का दौरा नहीं किया। यूक्रेन से पहले पीएम मोदी 21 अगस्त को पोलैंड की दो दिवसीय यात्रा पर वारसा पहुंचे थे। पिछले 45 वर्षों में यह भी किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा है।
पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा ऐसे समय में हुई है जब रूस और यूक्रेन में महीनों से भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है। इसीलिए अनेक विचारक यूक्रेन की यात्रा को भारत के हितों के लिहाज से बेहद सटीक करार दे रहे हैं। उनका मत है कि भारत यूक्रेन और रूस, दोनों देशों को एक साथ साधने में सक्षम है। यही नहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त कराने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर भारत के पास है जो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अलग मुकाम तक पहुंचा सकता है। वहीं दूसरी ओर इस यात्रा के समय को लेकर कुछ विशेषज्ञों को आशंका है कि यह यात्रा रूस को रास नहीं आएगी।
पीएम मोदी से दुनिया को आस
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी पिछले महीने 8-9 जुलाई को रूस में थे। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 22वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में भाग लिया था। पश्चिमी देशों को पीएम मोदी का यह रुख नहीं भाया था। हालांकि मोदी ने अब यूक्रेन का दौरा किया है। रूस और यूक्रेन के बीच पीएम मोदी के दौरे में सिर्फ डेढ़ माह का अंतर है। तो क्या इसके पीछे कोई बड़ा संकेत है? क्या प्रधानमंत्री मोदी ने ढाई साल पहले शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के अंत की कोई स्कि्रप्त तैयार कर ली है? क्या रूसी राष्ट्रपति पुतिन से किसी सहमति पर मोदी ने मुहर लगवा ली है जिसे अब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के सामने रख कर कोई एग्रीमेंट बनाया जाएगा? ये प्रश्न इसलिए भी खास है क्योंकि दुनिया पीएम मोदी से पहले भी उम्मीद लगा चुकी है।
– पिछले 45 वर्षों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पोलैंड यात्रा
वैश्विक मंच पर यह मत है कि मोदी चाहें तो रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करवाने की राह तैयार कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस हों या अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी समेत कई ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्ष, सभी ने वक्त-वक्त पर यह इच्छा जरूर जताई कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करवाने की पहल कूटनीतिक भाषा में कर सकते हैं। सभी ने प्रधानमंत्री मोदी को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य और रूस-यूक्रेन के बीच मध्यस्थता के लिए पूरी तरह मुफीद माना है क्योंकि दुनियाभर के ताकतवर नेता बेलाग स्वीकारते हैं कि मोदी विश्व पटल पर एक प्रभावी व्यक्तित्व हैं।
यूक्रेन भी मानता है, शांति ला सकते हैं मोदी
20 फरवरी, 2022 को शुरू हुए युद्ध के बाद से कभी फोन पर बात तो कभी अन्य कार्यक्रमों में मोदी की भेंट यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से हुई है लेकिन मोदी कभी यूक्रेन नहीं गए। पिछले महीने जेलेंस्की के चीफ ऑफ स्टाफ एंद्री यरमक ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के साथ फोन पर हुई बातचीत में कहा था कि पीएम मोदी यूक्रेन में शांति स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पुतिन को शांति का संदेश दे चुके हैं मोदी
रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख हमेशा साफ रहा है। दोनों देशों की आपसी बातचीत से निकला कोई ऐसा रास्ता ही एकमात्र समाधान हो सकता है जो दोनों को स्वीकार्य हो। इसीलिए विदेश मंत्रालय कह रहा है कि भारत मध्यस्थता नहीं करेगा लेकिन एक-दूसरे के संदेश एक-दूसरे से साझा जरूर करेगा। पीएम मोदी ने रूस में राष्ट्रपति पुतिन से साफ-साफ शब्दों में कहा था कि युद्ध के मैदान में समाधान नहीं ढूंढ़ा जा सकता। अब वो राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी दोटूक अंदाज में अपनी बात रख देंगे। जेलेंक्सी के ऑफिस की तरफ से जारी संदेश में कहा गया है कि हमारे द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला दौरा है। इस दौरान हम द्विपक्षीय और परस्पर सहयोग के मुद्दों पर बातचीत करेंगे।क्रेन और भारत के बीच कई दस्तावेजों पर हस्ताक्षर की भी उम्मीद है।
क्या रूस और यूक्रेन को भारत एक साथ साध सकता है?
भारत के रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। भारत रक्षा जरूरतों के मामले में रूस पर लंबे समय से निर्भर रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय रूस को भारत का दीर्घकालिक और समय की कसौटियों पर खरा उतरने वाला साझेदार बताता रहा है। सोवियत यूनियन ने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध खत्म कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। 1971 में पाकिस्तान के साथ भारत की जंग हुई तो सोवियत यूनियन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के समर्थन में वीटो का इस्तेमाल किया था। और भी अनेक उदाहरण हैं जब दोनों ने संकट में एक दूसरे का साथ दिया है।
रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत किसी एक तरफ नहीं दिखता है। एक तरफ भारत रूस से संबंध बनाए रखता है, दूसरी तरफ वो यूक्रेन की मदद भी जारी रखता है। रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देश यूक्रेन के साथ हैं। इन देशों को बाकी देशों से भी यही उम्मीद है। मगर बीते ढाई साल में भारत इस बात के दबाव में नहीं दिखा है। युद्ध के दौरान भारत रूस के बीच बढ़ा कारोबार इसका गवाह है। ऐसे अनेक सैन्य उपकरण हैं जो सोवियत संघ के विघटन के बाद अब यूक्रेन में बनते हैं और उनकी जरूरत भारत को है। जैसे भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए गैस टरबाइन इंजन और भारतीय वायुसेना द्वारा संचालित एएन – 32 विमानों को अपग्रेड किया जाना। भारत अपने हितों के हिसाब से यूक्रेन हो या रूस संबंधों को आगे बढ़ा रहा है।
मोदी के दौरे पर ब्रिटिश नेता और पूर्व पीएम टोनी ब्लेयर के सलाहकार रह चुके पीटर मंडेलसन एक ऑर्टिकल में लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा भारत के लिए विश्व पटल पर छा जाने का एक ऐतिहासिक अवसर है। भारत अपनी गुटनिरपेक्ष विरासत को आगे बढ़ा कर वैश्विक शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन की यात्रा एक अच्छा संकेत है और इसकी सराहना की जाएगी। जाहिर है कि भारत अपना नुकसान करके यह यात्रा नहीं करेगा। कुछ तो ऐसी परिस्थितियां अवश्य हैं जिनमें भारत के लिए यह यात्रा मील का पत्थर साबित हो सकती है और यह बात तो समय ही बताएगा।